Bharat Mein Bandhua Mazdoor

Discourse
Translator: Anand Swaroop Verma
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Bharat Mein Bandhua Mazdoor

देश की जिन गम्भीर समस्याओं पर मुख्यधारा का मीडिया ख़ामोश रहता है और सरकार उदासीन, उनमें बँधुआ मज़दूरों की समस्या भी एक है। सरकारी घोषणाओं में यह समस्या ख़त्म हो चुकी है और मीडिया के लिए इसमें सनसनी नहीं रही। लेकिन समस्या अभी जहाँ की तहाँ है। 1975 में राष्ट्रपति के एक अध्यादेश के ज़रिए औपचारिक तौर पर बँधुआ मज़दूरी पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया था, लेकिन देश के लगभग सभी राज्यों में आज भी यह प्रथा बिना किसी रोक-टोक के जारी है। बीच-बीच में सरकारें बँधुआ तौर पर काम कर रहे मज़दूरों की मुक्ति और पुनर्वास का स्वाँग भी रचती हैं, लेकिन मुक्त कराए गए मज़दूरों को पुन: एक नई तरह की बँधुआ मज़दूरी का शिकार होना पड़ा है। न तो उनकी जीविका के लिए पर्याप्त साधन मुहैया कराए गए और न ही शक्तिशाली भूमिपतियों से उनकी हिफ़ाज़त का कोई विश्वसनीय इन्तज़ाम हो पाया।

‘भारत में बँधुआ मज़दूर’ इस समस्या का सर्वांग अध्ययन प्रस्तुत करती है। प्रख्यात बांग्‍ला लेखिका महाश्वेता देवी यहाँ पूर्णतया एक शोधकर्मी के तौर पर प्रकट हुई हैं, ज़ाहिर है, उत्पीड़ितों-उपेक्षितों के लिए अपनी सर्वज्ञात संवेदना के साथ। शोधकर्म की निर्मम असंलग्नता से बचते हुए, विषय के साथ नितान्त मानवीय लगाव के साथ यह शोध किया गया है।

More Information
Language Hindi
Format Hard Back
Publication Year 1981
Edition Year 2013, Ed. 3rd
Pages 158p
Translator Anand Swaroop Verma
Editor Not Selected
Publisher Radhakrishna Prakashan
Dimensions 22 X 14 X 1
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Editorial Review

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Mahashweta Devi

Author: Mahashweta Devi

महाश्वेता देवी

जन्म : 1926; ढाका।

पिता श्री मनीष घटक सुप्रसिद्ध लेखक थे।

शिक्षा : प्रारम्भिक पढ़ाई शान्तिनिकेतन में, फिर कलकत्ता विश्वविद्यालय से अंग्रेज़ी साहित्य में एम.ए.।

अर्से तक अंग्रेज़ी का अध्यापन।

कृतियाँ अनेक भाषाओं में अनूदित।

हिन्दी में अनूदित कृतियाँ : ‘चोट्टि मुण्डा और उसका तीर’, ‘जंगल के दावेदार’, ‘अग्निगर्भ’, ‘अक्लांत कौरव’, ‘1084वें की माँ’, ‘श्री श्रीगणेश महिमा’, ‘टेरोडैक्टिल’, ‘दौलति’, ‘ग्राम बांग्ला’, ‘शाल-गिरह की पुकार पर’, ‘भूख’, ‘झाँसी की रानी’, ‘आंधारमानिक’, ‘उन्तीसवीं धारा का आरोपी’, ‘मातृछवि’, ‘सच-झूठ’, ‘अमृत संचय’, ‘जली थी अग्निशिखा’, ‘भटकाव’, ‘नीलछवि’, ‘कवि वन्द्यघटी गाईं का जीवन और मृत्यु’, ‘बनिया-बहू’, ‘नटी’ (उपन्यास); ‘पचास कहानियाँ’, ‘कृष्ण द्वादशी’, ‘घहराती घटाएँ’, ‘ईंट के ऊपर ईंट’, ‘मूर्ति’ (कहानी-संग्रह); ‘भारत में बँधुआ मज़दूर’ (विमर्श)।

सम्मान : ‘जंगल के दावेदार’ पुस्तक पर ‘साहित्य अकादेमी पुरस्कार’। ‘मैगसेसे अवार्ड’ तथा ‘ज्ञानपीठ  पुरस्कार’ से सम्मानित।

निधन : 28 जुलाई, 2016 (कोलकाता)।

 

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