‘नील छवि’ महाश्वेता देवी का लीक से हटकर लिखा गया रोचक उपन्यास है। यह उपन्यास वस्तुतः हमारे आधुनिक नागर समाज की खोखली होती नैतिक मान्यताओं और बीभत्स स्थितियों का बड़ा ही मार्मिक चित्रण प्रस्तुत करता है।
शहरी उच्च मध्यवर्ग और निम्न मध्यवर्ग किस प्रकार ग़लत महत्त्वाकांक्षाओं और विलासिता के आकर्षण में अपने को नैतिक तथा मानवीय स्तर से गिराकर उपभोक्ता संस्कृति का शिकार होता है और सब कुछ खो बैठता है, इसका यह उपन्यास गहराई में जाकर विश्लेषण करता है। ‘ड्रग्स’ और ‘ब्लू फ़िल्म’ किस तरह हमारे आधुनिक समाज की जड़ों को खोखला कर रहे हैं, इसका बेहद तीखा और यथार्थपरक चित्रण इस कृति में किया गया है। इसके अलावा पत्रकारिता, कला-जगत, और तथाकथित उच्चवर्गीय जीवन की विषमताओं और विडम्बनाओं को बेहद रचनात्मक रूप से इस कथा-रचना का विषय बनाया गया है।
गुंडा शरीफ़ज़ादों और शरीफ़ गुंडों के बीच फलती-फूलती अपराध की दुनिया के साथ राजनीति और कला-जगत् की मिलीभगत का यहाँ अच्छा पर्दाफ़ाश हुआ है। कथा में उत्तेजना, जिज्ञासा और आतंक का वातावरण अन्तिम पृष्ठ तक व्याप्त रहता है। एक अत्यन्त पठनीय, रोचक तथा विचारोत्तेजक कृति।
Language | Hindi |
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Binding | Hard Back, Paper Back |
Publication Year | 1993 |
Edition Year | 2008, Ed. 2nd |
Pages | 198p |
Translator | Maheshwar |
Editor | Not Selected |
Publisher | Radhakrishna Prakashan |
Dimensions | 18 X 12.5 X 1.5 |