Kabeer

Edition: 2023, Ed. 27th
Language: Hindi
Publisher: Rajkamal Prakashan
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Kabeer

“कबीर धर्मगुरु थे। इसलिए उनकी वाणियों का आध्यात्मिक रस ही आस्वाद्य होना चाहिए, परन्तु विद्वानों ने नाना रूप में उन वाणियों का अध्ययन और उपयोग किया है। काव्य-रूप में उसे आस्वादन करने की प्रथा ही चल पड़ी है, समाज-सुधारक के रूप में, सर्वधर्म-समन्वयकारी के रूप में, हिन्दू-मुस्लिम ऐक्य-विधायक के रूप में, विशेष सम्प्रदाय के प्रतिष्ठाता के रूप में और वेदान्त-व्याख्याता दार्शनिक के रूप में भी उनकी चर्चा कम नहीं हुई है। यों तो ‘हरि अनन्त हरि कथा अनन्ता, विविध भाँति गावहिं श्रुति-सन्ता’ के अनुसार कबीर-कथित हरि-कथा का विविध रूपों में उपयोग होना स्वाभाविक ही है, पर कभी-कभी उत्साह-परायण विद्वान ग़लती से कबीर को इन्हीं रूपों में किसी एक का प्रतिनिधि समझकर ऐसी-ऐसी बातें करने लगते हैं जो असंगत कही जा सकती हैं।”

आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी पहले विद्वान हैं, जिन्होंने इस प्रकार के एकांगी दृष्टिकोण से बचकर कबीर के बहुमुखी व्यक्तित्व एवं कृतित्व का समग्र रूप में सन्तुलित और सम्यक् मूल्यांकन किया है। उनका मत है कि कबीरदास में इन सभी रूपों का समन्वय था, किन्तु उनका वास्तविक रूप भक्त का ही था और अन्य सारे रूपों को उन्होंने भक्ति के साधन के रूप में स्वीकार किया था।

आचार्य द्विवेदी की प्रस्तुत कृति आज भी कबीर विषयक आलोचना-साहित्य में अद्वितीय मानी जाती है और कबीरदास के व्यक्तित्व तथा कृतित्व को समग्र रूप में हृदयंगम करने के लिए यह अकेली पुस्तक पर्याप्त है, ऐसा विद्वानों का मत है।

पुस्तक के अन्त में उपयोगी समझकर ‘कबीर-वाणी’ नाम से कुछ चुने हुए पद्य संग्रह किए गए हैं। उनके शुरू के सौ पद आचार्य क्षितिमोहन सेन के संग्रह के हैं। इन्हीं को कविवर रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने अंग्रेज़ी में अनूदित किया था।

More Information
Language Hindi
Binding Hard Back
Publication Year 1971
Edition Year 2023, Ed. 27th
Pages 280p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 22 X 14.5 X 2
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Hazariprasad Dwivedi

Author: Hazariprasad Dwivedi

हजारीप्रसाद द्विवेदी

जन्म :  श्रावणशुक्ल एकादशी सम्वत् 1964 (1907 ई.)। जन्म-स्थान : आरत दुबे का छपरा, ओझवलिया, बलिया (उत्तर प्रदेश)।

शिक्षा : संस्कृत महाविद्यालय, काशी में। 1929 ई. में संस्कृत साहित्य में शास्त्री और 1930 में ज्योतिष विषय लेकर शास्त्राचार्य की उपाधि।

8 नवम्बर, 1930 को हिन्दी शिक्षक के रूप में शान्तिनिकेतन में कार्यारम्भ; वहीं अध्यापन 1930 से 1950 तक; सन् 1950 में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में हिन्दी प्राध्यापक और हिन्दी विभागाध्यक्ष; सन् 1960-67 में पंजाब विश्वविद्यालय, चंडीगढ़ में हिन्दी प्राध्यापक और विभागाध्यक्ष; 1967 के बाद पुन: काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में; कुछ दिनों तक रैक्टर पद पर भी।

राजभाषा आयोग के राष्ट्रपति-मनोनीत सदस्य (1955); जीवन के अन्तिम दिनों में उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान के उपाध्यक्ष रहे। नागरी प्रचारिणी सभा, काशी के हस्तलेखों की खोज (1952) तथा ‘साहित्य अकादेमी’ से प्रकाशित ‘नेशनल बिब्लियोग्राफ़ी’ (1954) के निरीक्षक।

प्रकाशन : ‘बाणभट्ट की आत्मकथा’, ‘चारु चन्द्रलेख’, ‘अनामदास का पोथा’, ‘पुनर्नवा’ (उपन्यास); ‘हिन्दी साहित्य की भूमिका’, ‘हिन्दी साहित्य : उद्भव और विकास’, ‘नाथ सम्प्रदाय’, ‘साहित्य सहचर’, ‘नाट्यशास्त्र की भारतीय परम्परा और दशरूपक’, ‘संदेश रासक’, ‘कालिदास की लालित्य योजना’, ‘मेघदूत : एक पुरानी कहानी’, ‘कबीर’, ‘सूर-साहित्य’, ‘सहज साधना’, ‘मध्यकालीन बोध का स्वरूप’, ‘प्राचीन भारत के कलात्मक विनोद कला’, ‘महामृत्युंजय रवींद्र’ (आलोचना); ‘सिक्ख गुरुओं का पुण्यस्मरण’, ‘महापुरुषों का स्मरण’ (स्मरण); ‘अशोक के फूल’, ‘कुटज’, ‘आलोक पर्व’, ‘कल्पलता’, ‘विचार प्रवाह’, ‘मध्यकालीन धर्म-साधना’ (निबन्ध); ‘हिन्दी भाषा का वृहत् ऐतिहासिक व्याकरण’ (व्याकरण); ‘हजारीप्रसाद द्विवेदी ग्रन्थावली’—12 खंडों में (सम्पूर्ण रचनाएँ)।

सम्मान : लखनऊ विश्वविद्यालय से सम्मानार्थ ‘डॉक्टर ऑफ़ लिट्रेचर उपाधि’ (1949), ‘पद्मभूषण’ (1957), पश्चिम बंग ‘साहित्य अकादेमी’ का ‘टैगोर पुरस्कार’ तथा ‘केन्द्रीय साहित्य अकादेमी पुरस्कार’ (1973)।

निधन : 19 मई, 1979

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