Kalidas Ki Lalitya Yojana

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Kalidas Ki Lalitya Yojana
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कालिदास का स्थान भारतीय वाङ्मय में ही नहीं, अपितु विश्व-साहित्य में अप्रतिम माना गया है। उनके काव्य में उपमा का वैशिष्ट्य विलक्षण है। आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी ने इस पुस्तक के निबन्धों में कालिदास के काव्य का विशद विवेचन करते हुए उसके गुणों पर मौलिक प्रकाश डाला है। कालिदास के साहित्य में अवगाहन कर अमूल्य मणियों को खोज निकालना साधारण कार्य नहीं है। द्विवेदी जी ने यह असाधारण साध्य कर प्रकांड पांडित्य का परिचय दिया है कालिदास के काव्य की सूक्ष्म-से-सूक्ष्म विशेषता को पंडित जी ने पूर्ण कला-कौशल के साथ उपस्थित किया है। सर्वत्र श्लोकों के उद्धरण देकर उन्होंने महाकवि की लालित्य-योजना को उजागर कर दिया है। कालिदास के काव्य का रसास्वादन करनेवाले विद्वानों को ‘कालिदास की लालित्य-योजना’ पढ़कर अपनी सुखानुभूति द्विगुणित करने का लाभ सहज ही प्राप्त होगा।

More Information
Language Hindi
Format Hard Back
Publication Year 1970
Edition Year 2022, Ed. 5th
Pages 176p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 22 X 14.5 X 1.5
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Hazariprasad Dwivedi

Author: Hazariprasad Dwivedi

हजारीप्रसाद द्विवेदी

जन्म :  श्रावणशुक्ल एकादशी सम्वत् 1964 (1907 ई.)। जन्म-स्थान : आरत दुबे का छपरा, ओझवलिया, बलिया (उत्तर प्रदेश)।

शिक्षा : संस्कृत महाविद्यालय, काशी में। 1929 ई. में संस्कृत साहित्य में शास्त्री और 1930 में ज्योतिष विषय लेकर शास्त्राचार्य की उपाधि।

8 नवम्बर, 1930 को हिन्दी शिक्षक के रूप में शान्तिनिकेतन में कार्यारम्भ; वहीं अध्यापन 1930 से 1950 तक; सन् 1950 में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में हिन्दी प्राध्यापक और हिन्दी विभागाध्यक्ष; सन् 1960-67 में पंजाब विश्वविद्यालय, चंडीगढ़ में हिन्दी प्राध्यापक और विभागाध्यक्ष; 1967 के बाद पुन: काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में; कुछ दिनों तक रैक्टर पद पर भी।

राजभाषा आयोग के राष्ट्रपति-मनोनीत सदस्य (1955); जीवन के अन्तिम दिनों में उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान के उपाध्यक्ष रहे। नागरी प्रचारिणी सभा, काशी के हस्तलेखों की खोज (1952) तथा ‘साहित्य अकादेमी’ से प्रकाशित ‘नेशनल बिब्लियोग्राफ़ी’ (1954) के निरीक्षक।

प्रकाशन : ‘बाणभट्ट की आत्मकथा’, ‘चारु चन्द्रलेख’, ‘अनामदास का पोथा’, ‘पुनर्नवा’ (उपन्यास); ‘हिन्दी साहित्य की भूमिका’, ‘हिन्दी साहित्य : उद्भव और विकास’, ‘नाथ सम्प्रदाय’, ‘साहित्य सहचर’, ‘नाट्यशास्त्र की भारतीय परम्परा और दशरूपक’, ‘संदेश रासक’, ‘कालिदास की लालित्य योजना’, ‘मेघदूत : एक पुरानी कहानी’, ‘कबीर’, ‘सूर-साहित्य’, ‘सहज साधना’, ‘मध्यकालीन बोध का स्वरूप’, ‘प्राचीन भारत के कलात्मक विनोद कला’, ‘महामृत्युंजय रवींद्र’ (आलोचना); ‘सिक्ख गुरुओं का पुण्यस्मरण’, ‘महापुरुषों का स्मरण’ (स्मरण); ‘अशोक के फूल’, ‘कुटज’, ‘आलोक पर्व’, ‘कल्पलता’, ‘विचार प्रवाह’, ‘मध्यकालीन धर्म-साधना’ (निबन्ध); ‘हिन्दी भाषा का वृहत् ऐतिहासिक व्याकरण’ (व्याकरण); ‘हजारीप्रसाद द्विवेदी ग्रन्थावली’—12 खंडों में (सम्पूर्ण रचनाएँ)।

सम्मान : लखनऊ विश्वविद्यालय से सम्मानार्थ ‘डॉक्टर ऑफ़ लिट्रेचर उपाधि’ (1949), ‘पद्मभूषण’ (1957), पश्चिम बंग ‘साहित्य अकादेमी’ का ‘टैगोर पुरस्कार’ तथा ‘केन्द्रीय साहित्य अकादेमी पुरस्कार’ (1973)।

निधन : 19 मई, 1979

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