नज़्मों, ग़ज़लों, क़तआत और कुछ अन्य रचनाओं के इस संकलन में फ़ैज़ की बेहद मशहूर नज़्मों में से एक ‘आज बाज़ार में पा-ब-जौलाँ चलो’ भी शामिल है। इस नज़्म को उन्होंने 1959 में लिखा था। लाहौर की गलियों से उन्हें मय ज़ंजीरों के घोड़ागाड़ी से क़िला लाहौर की टॉर्चर सेल ले जाया गया था। इस नज़्म के पीछे उनका वही अनुभव है। हर हाल में आज़ादी के शैदाई फ़ैज़ की यह नज़्म उनकी शख़्सियत और शायरी दोनों की ऊँचाई को बयान करती है। 1960 के दशक के शुरुआती सालों में प्रकाशित ‘दस्ते-तहे-संग’ में उस दौर में लिखी हुई अन्य नज़्में, ग़ज़लें और क़तआत भी संकलित हैं जिनमें से कुछ मास्को, बम्बई और लन्दन में भी लिखी गईं। कविताओं के अलावा इस संकलन का ख़ास आकर्षण फ़ैज़ की एक तक़रीर है जो उन्होंने अन्तरराष्ट्रीय लेनिन शांति पुरस्कार ग्रहण करते हुए उर्दू में दी थी। ‘फ़ैज़... अज़ फ़ैज़’ शीर्षक से उन्हीं का लिखा हुआ एक और आलेख भी यहाँ आप पाएँगे जिसमें वे अपने शुरुआती दिनों के बारे में बताते हैं और उस दौरान लिखी गई कविताओं की पृष्ठभूमि से भी हमें अवगत कराते हैं।
Language | Hindi |
---|---|
Binding | Paper Back |
Translator | Abdul Bismillah |
Editor | Not Selected |
Publication Year | 2024 |
Edition Year | 2024, Ed. 1st |
Pages | 80p |
Publisher | Rajkamal Prakashan |
Dimensions | 20 X 13 X 1 |