Sare-Wadiye-Seena

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ग़मे-ज़माना के गहरे अहसास से पगी नज़्मों-ग़ज़लों और क़तआत के इस संग्रह में फ़ैज़ की 1965 से 1971 के दौरान लिखी रचनाएँ शामिल हैं। ‘लहू का सुराग़’ और ‘ज़िन्दाँ-ज़िन्दाँ शोरे-अनल-हक़’ शीर्षक वे नज़्में भी इसी संकलन में शामिल हैं जिन्हें फ़ैज़ ने कराची में विरोध-प्रदर्शन कर रहे लोगों पर हुई फायरिंग के बाद लिखा था। युद्ध की पृष्ठभूमि में लिखी गई दो प्रसिद्ध नज़्में भी इस किताब का हिस्सा हैं—‘ब्लैक आउट’ और ‘सिपाही का मर्सिया’। शीर्षक कविता ‘सरे-वादिए-सीना’ का विषय तो है ही अरब-इसरायली युद्ध। साल 1967 में पाकिस्तान के स्वतंत्रता दिवस पर लिखी गई उनकी बेहद चर्चित नज़्म ‘दुआ’ इस संकलन को ख़ासतौर पर आकर्षक बनाती है जिसमें फ़ैज़ ने मुल्क के अवाम की पीड़ा और स्वप्नों को शब्द दिए थे—‘जिनके सर मुंतज़िरे-तेग़े-जफ़ा हैं उनको/दस्ते-क़ातिल को झटक देने की तौफ़ीक़ मिले।’ हार्ट अटैक शीर्षक कविता उन्होंने 1967 में पड़े दिन के दौरे के बाद लिखी थी। रसूल हम्ज़ातोव की कुछ कविताओं के उनके द्वारा किए गए अनुवाद भी इसी संकलन में आप पढ़ेंगे। उनके व्यक्तित्व और रचनाधर्मिता पर लिख गए दो आलेख भी आप यहाँ पाएँगे जिन्हें उनके नज़दीक रहे विदेशी आलिमों ने लिखा है। इनमें से एक आलेख अलेक्जेंडर सरकोफ़ का भी है जो 1962 में फ़ैज़ की कविताओं के रूसी अनुवाद की भूमिका के रूप में छपा था।

More Information
Language Hindi
Format Paper Back
Publication Year 2024
Edition Year 2024, Ed. 1st
Pages 112p
Translator Abdul Bismillah
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 20 X 13 X 1
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Faiz Ahmed 'Faiz'

Author: Faiz Ahmed 'Faiz'

फ़ैज़ अहमद ‘फ़ैज़’

जन्म : 1911, गाँव काला कादर, सियालकोट।

शिक्षा : आरम्भिक धार्मिक शिक्षा मौलवी मुहम्मद इब्राहिम मीर सियालकोटी से प्राप्त की। मैट्रिक स्कॉच मिशन स्कूल और स्नातकोत्तर मुरे कॉलेज, सियालकोट से। वामपंथी विचारधारा के जुझारू पैरोकार फ़ैज़ ने 1936 में ‘प्रगतिशील लेखक संघ’ की एक शाखा पंजाब में आरम्भ की। 1935 में एम.इ.ओ.कॉलेज, अमृतसर और बाद में हेली कॉलेज ऑफ़ कॉमर्स, लाहौर में अध्यापन। 1938-1942 के दौरान उर्दू मासिक 'अदबे लतीफ़' का सम्पादन। कुछ समय तक फ़ैज़ ब्रिटिश इंडियन आर्मी में भी रहे जहाँ 1944 में उन्हें लेफ्टिनेंट कर्नल के पद पर पदोन्नत किया गया था। 1947 में सेना से इस्तीफ़ा देने के बाद 'पाकिस्तान टाइम्स' के पहले प्रधान सम्पादक बने। 1959 से 1962 तक पाकिस्तान आर्ट्स काउंसलिंग के सचिव रहे। 1964 में लन्दन से वापस आने के बाद फ़ैज़ कराची में अब्दुल्लाह हारुन कॉलेज के प्रिंसिपल नियुक्त हुए। 1951 में फ़ैज़ को रावलपिंडी षड्यंत्र केस में चार साल की जेल भी हुई, जहाँ उन्होंने जीवन की कड़वी सच्चाइयों से सीधा साक्षात्कार किया।

प्रमुख रचनाएँ : ‘नक़्शे-फ़रियादी’ (1941), ‘दस्ते-सबा’ (1953), ‘ज़िन्दाँनामा’ (1956), ‘मीज़ान’ (1956), ‘दस्त तहे-संग’ (1965), ‘सरे-वादी-ए-सीना’ (1971), ‘शामे-शह्रे-याराँ’ (1979), ‘मेरे दिल मेरे मुसाफ़िर’ (1981), ‘सारे सुख़न हमारे’ (फ़ैज़-संग्रह) लंदन से और ‘नुस्ख़हा-ए-वफ़ा’ (फ़ैज़-संग्रह) पाकिस्तान से, 'पाकिस्तानी कल्चर' (उर्दू और अंग्रेज़ी में; 1984)।

फ़ैज़ की रचनाओं का अंग्रेज़ी, रूसी, बलोची, हिन्‍दी सहित दुनिया की अनेक भाषाओं में अनुवाद हो चुका है।

पुरस्कार : ‘लेनिन पीस प्राइज़’, ‘द पीस प्राइज़’ (पाकिस्तानी मानवाधिकार सोसायटी), ‘निगार अवार्ड’, ‘द एविसेना अवार्ड’, ‘निशाने-इम्तियाज़’ (मरणोपरान्‍त)। 1984 में मृत्यु से पहले ‘नोबेल प्राइज़’ के लिए नामांकन हुआ था।

निधन : 20 नवम्बर, 1984 को लाहौर में।

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