तसलीमा नसरीन का यह उपन्यास उन लोगों के विषय में है जो अपनी जन्मभूमि को छोड़कर किसी और देश में, दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में, पराए माहौल और पराई आबोहवा में अपना जीवन बिता रहे हैं। कहने की ज़रूरत नहीं कि तसलीमा ने यह जीवन बहुत नज़दीक से जिया है। उनकी विश्व-स्तर पर चर्चित पुस्तक ‘लज्जा’ के लिए उन्हें कट्टरपंथियों ने देशनिकाला दे दिया था। लम्बा समय उन्होंने अपने मुल्क से बाहर बिताया है। इस उपन्यास में उन्होंने अपनी जड़ों से उखड़े ऐसे ही जीवन की मार्मिक और विचारोत्तेजक कथा कही है। स्वयं उनका कहना है कि यह उपन्यास ‘लज्जा’ की तरह राजनीतिक नहीं है, इसका उद्देश्य निर्वासन की सामाजिक दुर्घटना और उसकी परिस्थितियों को रेखांकित करना है। उपन्यास के सभी पात्र निश्चित रूप से उन चेहरों की नक़्क़ाशी करते हैं जिन्हें साम्प्रदायिक उन्माद और अत्याचार के चलते अपना घर छोडऩा पड़ा और बेगानी आबोहवा में साँस लेते हुए जीने की नई मुहिम शुरू करनी पड़ी।
Language | Hindi |
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Binding | Hard Back, Paper Back |
Translator | Uttpal Banerjee |
Editor | Not Selected |
Publication Year | 2019 |
Edition Year | 2019, 1st Ed. |
Pages | 256p |
Price | ₹250.00 |
Publisher | Rajkamal Prakashan |
Dimensions | 22 X 14.5 X 2.5 |