Stree : Samaj Aur Dharm

Author: Taslima Nasrin
Translator: Uttpal Banerjee
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(1) Reviews
Edition: 2024, Ed. 1st
Language: Hindi
Publisher: Lokbharti Prakashan
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Stree : Samaj Aur Dharm
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तसलीमा नसरीन कहती हैं कि इस पृथ्वी पर लड़कियों के ख़िलाफ़ एक यौन-युद्ध चल रहा है; उन स्त्रियों के ख़िलाफ़ जिन्हें इस मानव-प्रजाति को जीवित रखने का श्रेय जाता है; उन महिलाओं के ख़िलाफ़ जिन्होंने सिद्ध कर दिया है कि वे हर उस काम को और ज़्यादा अच्छे ढंग से कर सकती है, जिसे पुरुष अपना काम कहता आया है।

‘स्त्री : समाज और धर्म’ में तसलीमा नसरीन के वे आलेख संकलित हैं जो उन्होंने समय-समय पर उन घटनाओं, ख़बरों और अपने अनुभवों की रोशनी में लिखे हैं जिनके केन्द्र में स्त्री और उसके दुख हैं। मुख्यतः बांग्लादेश, भारत और पाकिस्तान की पृष्ठभूमि में की गई ये टिप्पणियाँ बताती हैं कि सभ्यता चाहे जितना आगे बढ़ी हो, स्त्री को लेकर पुरुष की सोच नाममात्र को ही बदली है। धर्म और समाज के अनेक नियमों, परम्पराओं, आग्रहों और मान्यताओं में उनकी यह सोच झलकती है। पुरुष हिन्दू हो या मुस्लिम या फिर अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प, स्त्री सभी के लिए वस्तु है।

तसलीमा नसरीन हमेशा ही असाधारण साहस और साफ़गोई के सा‌थ तीखी भाषा में पुरुष सत्ता को ललकारती रही हैं; इसके लिए वे एकदम सहज और सजीव गद्य की रचना करती हैं, जो हर बार उतना ही प्रभावशाली सिद्ध होता है। 

More Information
Language Hindi
Binding Hard Back, Paper Back
Publication Year 2024
Edition Year 2024, Ed. 1st
Pages 256p
Translator Uttpal Banerjee
Editor Not Selected
Publisher Lokbharti Prakashan
Dimensions 21 X 13.5 X 2
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Taslima Nasrin

Author: Taslima Nasrin

तसलीमा नसरीन         

जन्म : 25 अगस्त, 1962; बांग्लादेश के मैमनसिंह शहर में।

शिक्षा : विज्ञान की छात्रा। मैमनसिंह मेडिकल कॉलेज से एम.बी.बी.एस.।

लेखन की शुरुआत कविता से मात्र 13 वर्ष की आयु में। प्रथमत: और मूलत: कवयित्री तसलीमा ने स्तम्भकार के तौर पर भी महत्त्वपूर्ण वैचारिक लेखन के ज़रिए पाठकों को गहराई से उद्वेलित किया और अपनी कथा-कृतियों, विशेषकर ‘लज्जा’ उपन्यास के साथ आत्मालोचन की मज़बूत चुनौती के रूप में उपस्थित हुईं। अभिव्यक्ति की स्वाधीनता के लिए न सिर्फ़ ढाका मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल के चिकित्सक पद से त्यागपत्र दिया बल्कि ‘देशनिकाला’ के कठिन मार्ग का भी वरण किया। 1994 से उनका बांग्ला देश में और 2007 से पश्चिम बंगाल में प्रवेश निषिद्ध है।

कृतियाँ : ‘शिकड़े बिपुल खुधा’, ‘निर्बासितो बाहिरे ओन्तरे’, ‘अतले अन्तरीण’, ‘बालिकार गोल्लाछूट’, ‘बेहुला एका भासिए छिलो भेला’, ‘आय कष्ट झेंपे-जीबन देबो मेपे’, ‘निर्बासित नारीर कोबिता और जल पद्य’ (कविता)। ‘लज्जा’, ‘फेरा’ व ‘चार कन्या’ (उपन्यास); ‘निर्वासित कलाम’, ‘नष्ट मेयेर नष्ट गद्य’ (स्तम्भ लेख व टिप्पणियाँ); ‘आमार मेये बेला’ (जीवनी) आदि।

'लज्जा’ समेत आपकी कई रचनाओं का दुनिया की तीस भाषाओं में अनुवाद हो चुका है।

सम्मान : दो बार भारत का प्रतिष्ठित 'आनन्द पुरस्कार’ (1991 व 2000 में), स्वीडिश पेन क्लब का ‘कुर्त तुखोलस्की पुरस्कार’ (1994), फ़्रांस का ‘एडिट द नानत पुरस्कार’ (1994); फ़्रांस सरकार का ‘मानवाधिकार पुरस्कार’, ‘शाखारोव पुरस्कार’, गोधेमबर्ग विश्वविद्यालय का ‘मनिसमियेन पुरस्कार’ (1995) और इंटरनेशनल ह्यूमनिस्ट एंड एथिकल यूनियन का 'ह्यूमनिस्ट पुरस्कार’ (1996)। बेल्जियम के गेंट विश्वविद्यालय ने 1995 में ‘डॉक्टरेट’ की उपाधि से सम्मानित किया। सहिष्णुता एवं अहिंसा के प्रसार के लिए 2005 में यूनेस्को से ‘मदनजीत सिंह पुरस्कार’; इनके अलावा भी विश्व के कई देशों द्वारा सम्मानित। हॉर्वर्ड एवं न्यूयॉर्क विश्वविद्यालयों से शोध-वृत्ति। 2009 में अमेरिका की वुडरो विल्सन फ़ेलो रही।

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