Shiuli Ki Gandh Aur Anya Kahaniyan

Author: Taslima Nasrin
Translator: Uttpal Banerjee
Edition: 2024, Ed. 1st
Language: Hindi
Publisher: Rajkamal Prakashan
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Shiuli Ki Gandh Aur Anya Kahaniyan
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संसार को खुली आँखों से देखा हो, जीवन और जन का पर्यवेक्षण बिना किसी पूर्वग्रह के किया हो तो लेखक के रूप में आपके पास अनुभवों की अपार राशि होती है। तसलीमा नसरीन की कहानियों का यह संकलन ‘शिउली की गंध और अन्य कहानियाँ’ उनकी अनुभव-समृद्ध लेखनी की उल्लेखनीय उपलब्धि है। यह उनकी सोच की भी उपलब्धि है, उनकी अपनी स्वतंत्र-चेता दृष्टि की, जो इन कहानियों की पंक्ति-पंक्ति में दिखाई देती है।

स्त्री के दुख को उन्होंने कभी अपनी निगाह से ओझल नहीं होने दिया, और यह विडंबना ही है कि स्त्री को उन्होंने दुनिया के हर कोने में एक ही सा दुख सहते पाया, जो एक हक़ीक़त है। ‘शिउली की गंध और अन्य कहानियाँ’ की कहानियों में भी देश-विदेश की अनेक स्त्रियाँ हैं जो अपने-अपने ढंग की पीड़ा सह रही हैं, फिर भी अपने आप की उनकी तलाश जारी है, अपनी आज़ादी और सुकून की चाह की लौ को वे बुझने नहीं देतीं। जिस तरह स्त्री अपने दुख में, उसी तरह पुरुष अपनी ताक़त के अहंकार और परपीड़ा-सुख में, कुछ अपवादों को छोड़कर, पूरी दुनिया में एक ही जैसा है। वह थाइलैंड की चाइलाई का स्वीडिश पति योहान हो, या किशोरी शिउली का सतहत्तर वर्षीय पति इदरीस अली और उसके बाद और ज़्यादा बूढ़े, और ज़्यादा निर्दय कई पति—सबके लिए वह सेवा-दासी भी है, यौन-दासी भी। भाइयों द्वारा ग्यारह बार ग्यारह बूढ़ों को बेची गई शिउली...

इस संकलन में तसलीमा नसरीन की चौबीस कहानियाँ संकलित हैं। हर कहानी आपके सामने एक अलग दुनिया का दरवाज़ा खोलती है और अपने साहस और साफ़गोई से आपको चौंका देती है। 

More Information
Language Hindi
Binding Paper Back
Publication Year 2024
Edition Year 2024, Ed. 1st
Pages 280p
Translator Uttpal Banerjee
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 21.5 X 14 X 1.5
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Taslima Nasrin

Author: Taslima Nasrin

तसलीमा नसरीन         

जन्म : 25 अगस्त, 1962; बांग्लादेश के मैमनसिंह शहर में।

शिक्षा : विज्ञान की छात्रा। मैमनसिंह मेडिकल कॉलेज से एम.बी.बी.एस.।

लेखन की शुरुआत कविता से मात्र 13 वर्ष की आयु में। प्रथमत: और मूलत: कवयित्री तसलीमा ने स्तम्भकार के तौर पर भी महत्त्वपूर्ण वैचारिक लेखन के ज़रिए पाठकों को गहराई से उद्वेलित किया और अपनी कथा-कृतियों, विशेषकर ‘लज्जा’ उपन्यास के साथ आत्मालोचन की मज़बूत चुनौती के रूप में उपस्थित हुईं। अभिव्यक्ति की स्वाधीनता के लिए न सिर्फ़ ढाका मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल के चिकित्सक पद से त्यागपत्र दिया बल्कि ‘देशनिकाला’ के कठिन मार्ग का भी वरण किया। 1994 से उनका बांग्ला देश में और 2007 से पश्चिम बंगाल में प्रवेश निषिद्ध है।

कृतियाँ : ‘शिकड़े बिपुल खुधा’, ‘निर्बासितो बाहिरे ओन्तरे’, ‘अतले अन्तरीण’, ‘बालिकार गोल्लाछूट’, ‘बेहुला एका भासिए छिलो भेला’, ‘आय कष्ट झेंपे-जीबन देबो मेपे’, ‘निर्बासित नारीर कोबिता और जल पद्य’ (कविता)। ‘लज्जा’, ‘फेरा’ व ‘चार कन्या’ (उपन्यास); ‘निर्वासित कलाम’, ‘नष्ट मेयेर नष्ट गद्य’ (स्तम्भ लेख व टिप्पणियाँ); ‘आमार मेये बेला’ (जीवनी) आदि।

'लज्जा’ समेत आपकी कई रचनाओं का दुनिया की तीस भाषाओं में अनुवाद हो चुका है।

सम्मान : दो बार भारत का प्रतिष्ठित 'आनन्द पुरस्कार’ (1991 व 2000 में), स्वीडिश पेन क्लब का ‘कुर्त तुखोलस्की पुरस्कार’ (1994), फ़्रांस का ‘एडिट द नानत पुरस्कार’ (1994); फ़्रांस सरकार का ‘मानवाधिकार पुरस्कार’, ‘शाखारोव पुरस्कार’, गोधेमबर्ग विश्वविद्यालय का ‘मनिसमियेन पुरस्कार’ (1995) और इंटरनेशनल ह्यूमनिस्ट एंड एथिकल यूनियन का 'ह्यूमनिस्ट पुरस्कार’ (1996)। बेल्जियम के गेंट विश्वविद्यालय ने 1995 में ‘डॉक्टरेट’ की उपाधि से सम्मानित किया। सहिष्णुता एवं अहिंसा के प्रसार के लिए 2005 में यूनेस्को से ‘मदनजीत सिंह पुरस्कार’; इनके अलावा भी विश्व के कई देशों द्वारा सम्मानित। हॉर्वर्ड एवं न्यूयॉर्क विश्वविद्यालयों से शोध-वृत्ति। 2009 में अमेरिका की वुडरो विल्सन फ़ेलो रही।

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