Facebook Pixel

Bandi Jeevan Aur Anya Kavitayen-E-Book

Translator: Nandkishore Acharya
Edition: 2019, Ed. 1st
Language: Hindi
Publisher: Rajkamal Prakashan
Special Price ₹131.25 Regular Price ₹175.00
25% Off
In stock
SKU
9789388933735-ebook

Buying Options

Ebook

कई महीनों से इन कविताओं की पाण्डुलिपि मुझे लगातार अपने वादे की याद दिलाती हुई मेरे पास थी कि मुझे भूमिका के रूप में कुछ लिखना है। इस दौरान मैंने कई विषयों पर लिखा है, लेकिन यह भूमिका लिखना मेरे लिए अजीब तरह से मुश्किल रहा। मैं कविता का निर्णायक अथवा आलोचक नहीं हूँ, इसलिए कुछ हिचकिचाहट थी। लेकिन मैं कविता से प्यार करता हूँ और इन छोटी कविताओं में से कई ने मुझे बहुत प्रभावित किया। वे मेरी स्मृति में अटक गईं और उन्होंने मेरे जेल-जीवन की यादें ताज़ा कर दीं—और उस अजीब और भुतही दुनिया की भी, जिसमें समाज द्वारा अपराधी मानकर बहिष्कृत लोग अपनी तंग और सीमित ज़‍िन्दगी को प्यार करते थे। वहाँ हत्यारे थे, डाकू और चोर भी थे, लेकिन हम सब जेल की उस दु:ख-भरी दुनिया में साथ-साथ थे, हमारे बीच एक जज़्बाती रिश्ता था। अपनी एकाकी कोठरियों में ही हम चहलक़दमी करते—पाँच नपे-तुले क़दम इस तरफ़ और पाँच नपे-तुले क़दम वापस, और दु:ख से संवाद करते रहते। दोस्त-अहबाब और आसरा ख़यालों में ही मिलता और कल्पना के जादुई कालीन पर ही हम अपने माहौल से उड़ पाते। हम दोहरी ज़‍िन्दगी जी रहे थे—जेल की ज़ेरेहुक्म और तंग, बन्द और वर्जित ज़‍िन्दगी और जज़्बात की, अपने सपनों और कल्पनाओं, उम्मीदों और अरमानों की आज़ाद दुनिया। उन सपनों का बहुत-सा इन कविताओं में है, उस ललक का जब बाँहें उसके लिए फैलती हैं जो नहीं है और एक ख़ालीपन हाथ आता है। कुछ वह शान्ति और तसल्ली जिन्हें हम उस दु:ख-भरी दुनिया में भी किसी तरह पा लेते थे। कल की उम्मीद हमेशा थी, कल जो शायद हमें आज़ादी दे। इसलिए मैं इन कविताओं को पढ़ने की सलाह देता हूँ और शायद वे मेरी ही तरह दूसरों को भी प्रभावित करेंगी।    

—जवाहरलाल नेहरू

More Information
Language Hindi
Binding Hard Back, Paper Back
Translator Nandkishore Acharya
Editor Not Selected
Publication Year 2019
Edition Year 2019, Ed. 1st
Pages 118p
Price ₹175.00
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 22 X 14 X 1.5
Write Your Own Review
You're reviewing:Bandi Jeevan Aur Anya Kavitayen-E-Book
Your Rating
Sachchidananda Hirananda Vatsyayan 'Ajneya'

Author: Sachchidananda Hirananda Vatsyayan 'Ajneya'

सच्चिदानन्‍द हीरानन्‍द वात्‍स्‍यायन ‘अज्ञेय’

 

जन्म : 7 मार्च, 1911 को उत्तर प्रदेश के देवरिया ज़‍िले के कुशीनगर नामक ऐतिहासिक स्थान में हुआ। बचपन लखनऊ, कश्मीर, बिहार और मद्रास में बीता।

शिक्षा : प्रारम्भिक शिक्षा-दीक्षा पिता की देखरेख में घर पर ही संस्कृत, फ़ारसी, अंग्रेज़ी और बांग्ला भाषा व साहित्य के अध्ययन के साथ। 1929 में बी.एससी. करने के बाद एम.ए. में उन्होंने अंग्रेज़ी विषय रखा; पर क्रान्तिकारी गतिविधियों में हिस्सा लेने के कारण पढ़ाई पूरी न हो सकी।

1930 से 1936 तक विभिन्न जेलों में कटे। 1936-37 में ‘सैनिक’ और ‘विशाल भारत’ नामक पत्रिकाओं का सम्पादन किया। 1943 से 1946 तक ब्रिटिश सेना में रहे; इसके बाद इलाहाबाद से ‘प्रतीक’ नामक पत्रिका निकाली और ऑल इंडिया रेडियो की नौकरी स्वीकार की। देश-विदेश की यात्राएँ कीं। दिल्ली लौटे और ‘दिनमान साप्ताहिक’, ‘नवभारत टाइम्स’, अंग्रेज़ी पत्र ‘वाक्’ और ‘एवरीमैंस’ जैसे प्रसिद्ध पत्र-पत्रिकाओं का सम्पादन किया। 1980 में ‘वत्सल निधि’ की स्थापना की।

प्रमुख कृतियाँ : कविता-संग्रह—‘भग्नदूत’, ‘चिन्ता’, ‘इत्यलम्’, ‘हरी घास पर क्षण भर’, ‘बावरा अहेरी’, ‘इन्द्रधनु रौंदे हुए ये’, ‘अरी ओ करुणा प्रभामय’, ‘आँगन के पार द्वार’, ‘कितनी नावों में कितनी बार’, ‘क्योंकि मैं उसे जानता हूँ’, ‘सागर मुद्रा’, ‘पहले मैं सन्नाटा बुनता हूँ’, ‘महावृक्ष के नीचे’, ‘नदी की बाँक पर छाया’, ‘प्रिज़न डेज़ एंड अदर पोयम्स’ (अंग्रेज़ी में); कहानी-संग्रह—‘विपथगा’, ‘परम्परा’, ‘कोठरी की बात’, ‘शरणार्थी’, ‘जयदोल’; उपन्यास—‘शेखर : एक जीवनी’ (प्रथम भाग और द्वितीय भाग), ‘नदी के द्वीप’, ‘अपने-अपने अजनबी’; यात्रा वृत्तान्त—‘अरे यायावर रहेगा याद?’, ‘एक बूँद सहसा उछली’; निबन्ध-संग्रह—‘सबरंग’, ‘त्रिशंकु’, ‘आत्मनेपद’, ‘हिन्दी साहित्य : एक आधुनिक परिदृश्य’, ‘आलवाल’; आलोचना—‘त्रिशंकु’, ‘आत्मनेपद’, ‘भवन्ती’, ‘अद्यतन’; संस्मरण—‘स्मृति लेखा’; डायरियाँ—‘भवन्ती’, ‘अन्तरा’ और ‘शाश्वती’; विचार-गद्य—‘संवत्सर’; नाटक—‘उत्तरप्रियदर्शी’; सम्पादित ग्रन्थ—‘तार सप्तक’, ‘दूसरा सप्तक’, ‘तीसरा सप्तक’ (कविता-संग्रह) के साथ कई अन्य पुस्तकों का सम्पादन।

सम्मान : 1964 में ‘आँगन के पार द्वार’ पर उन्हें ‘साहित्य अकादेमी पुरस्कार’ प्राप्त हुआ और 1979 में ‘कितनी नावों में कितनी बार’ पर ‘ज्ञानपीठ पुरस्कार’।

निधन : 4 अप्रैल, 1987

Read More
Books by this Author
New Releases
Back to Top