Agyey Sanchayita

Edition: 2024, Ed. 2nd
Language: Hindi
Publisher: Rajkamal Prakashan
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Agyey Sanchayita

अगर स्वतंत्रता को बीसवीं शताब्दी की एक बीज अवधारणा मानें तो जिन मूर्धन्य और कालजयी लेखकों ने इस अवधारणा को अपने सृजन, विचार और आयोजन का केन्द्र बनाया, उनमें अज्ञेय का स्थान ऊँचा और प्रमुख हैं। हिन्दी को उसकी आधुनिकता और भारतीय स्वरूप देने में भी अज्ञेय की भूमिका केन्द्रीय रही है। उनकी यह शीर्षस्थानीयता और केन्द्रस्थानीयता उन्हें न सिर्फ़ हिन्दी बल्कि समूचे भारतीय साहित्य का एक क्लैसिक बनाती है। स्वतंत्रता और अपने आत्मबोध के अन्वेषण और विन्यास के लिए अज्ञेय ने साहित्य की शायद ही कोई विधा होगी जिसमें न लिखा हो। उन सभी में अर्थात् कविता, कहानी, उपन्यास, आलोचना, यात्रा-वृत्तान्त, ललित निबन्ध, डायरी, सम्पादन में उनका कृतित्व श्रेष्ठ कोटि का है। हिन्दी में उनसे पहले और बाद में भी कोई और साहित्यकार नहीं हुआ है जो इतनी सारी विधाओं में सक्रिय रहा है और जिसने उनमें से हरेक में शीर्षस्थानीयता हासिल की हो। हिन्दी में आधुनिकता, नई कविता और प्रयोगवाद आदि अनेक प्रवृत्तियों के अज्ञेय प्रमुख स्थापित और अवधारक भी रहे हैं। उनके विपुल और विविध कृतित्व से यह पाठमाला उनकी कुछ अत्यन्त महत्त्वपूर्ण, विचारोत्तेजक और प्रतिनिधि रचनाओं को एकत्र करने का यत्न है। इसके पीछे यह विश्वास है कि यह संचयन अज्ञेय के संसार के प्रति नई जिज्ञासा उकसाकर पाठकों को उनके विपुल साहित्य और विचार के साक्षात्कार और रसास्वादन के लिए प्रेरित करेगा। अज्ञेय-साहित्य के मर्मज्ञ और प्रसिद्ध-आलोचक नन्दकिशोर आचार्य ने पूरी ज़‍िम्मेदारी, समझ और रसिकता के साथ यह संचयन किया है जिससे इस पाठमाला का महत्त्व और भी बढ़ जाता है।

More Information
Language Hindi
Binding Hard Back, Paper Back
Publication Year 2001
Edition Year 2024, Ed. 2nd
Pages 495p
Translator Not Selected
Editor Nandkishore Acharya
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 22 X 14 X 2
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Sachchidananda Hirananda Vatsyayan 'Ajneya'

Author: Sachchidananda Hirananda Vatsyayan 'Ajneya'

सच्चिदानन्‍द हीरानन्‍द वात्‍स्‍यायन ‘अज्ञेय’

 

जन्म : 7 मार्च, 1911 को उत्तर प्रदेश के देवरिया ज़‍िले के कुशीनगर नामक ऐतिहासिक स्थान में हुआ। बचपन लखनऊ, कश्मीर, बिहार और मद्रास में बीता।

शिक्षा : प्रारम्भिक शिक्षा-दीक्षा पिता की देखरेख में घर पर ही संस्कृत, फ़ारसी, अंग्रेज़ी और बांग्ला भाषा व साहित्य के अध्ययन के साथ। 1929 में बी.एससी. करने के बाद एम.ए. में उन्होंने अंग्रेज़ी विषय रखा; पर क्रान्तिकारी गतिविधियों में हिस्सा लेने के कारण पढ़ाई पूरी न हो सकी।

1930 से 1936 तक विभिन्न जेलों में कटे। 1936-37 में ‘सैनिक’ और ‘विशाल भारत’ नामक पत्रिकाओं का सम्पादन किया। 1943 से 1946 तक ब्रिटिश सेना में रहे; इसके बाद इलाहाबाद से ‘प्रतीक’ नामक पत्रिका निकाली और ऑल इंडिया रेडियो की नौकरी स्वीकार की। देश-विदेश की यात्राएँ कीं। दिल्ली लौटे और ‘दिनमान साप्ताहिक’, ‘नवभारत टाइम्स’, अंग्रेज़ी पत्र ‘वाक्’ और ‘एवरीमैंस’ जैसे प्रसिद्ध पत्र-पत्रिकाओं का सम्पादन किया। 1980 में ‘वत्सल निधि’ की स्थापना की।

प्रमुख कृतियाँ : कविता-संग्रह—‘भग्नदूत’, ‘चिन्ता’, ‘इत्यलम्’, ‘हरी घास पर क्षण भर’, ‘बावरा अहेरी’, ‘इन्द्रधनु रौंदे हुए ये’, ‘अरी ओ करुणा प्रभामय’, ‘आँगन के पार द्वार’, ‘कितनी नावों में कितनी बार’, ‘क्योंकि मैं उसे जानता हूँ’, ‘सागर मुद्रा’, ‘पहले मैं सन्नाटा बुनता हूँ’, ‘महावृक्ष के नीचे’, ‘नदी की बाँक पर छाया’, ‘प्रिज़न डेज़ एंड अदर पोयम्स’ (अंग्रेज़ी में); कहानी-संग्रह—‘विपथगा’, ‘परम्परा’, ‘कोठरी की बात’, ‘शरणार्थी’, ‘जयदोल’; उपन्यास—‘शेखर : एक जीवनी’ (प्रथम भाग और द्वितीय भाग), ‘नदी के द्वीप’, ‘अपने-अपने अजनबी’; यात्रा वृत्तान्त—‘अरे यायावर रहेगा याद?’, ‘एक बूँद सहसा उछली’; निबन्ध-संग्रह—‘सबरंग’, ‘त्रिशंकु’, ‘आत्मनेपद’, ‘हिन्दी साहित्य : एक आधुनिक परिदृश्य’, ‘आलवाल’; आलोचना—‘त्रिशंकु’, ‘आत्मनेपद’, ‘भवन्ती’, ‘अद्यतन’; संस्मरण—‘स्मृति लेखा’; डायरियाँ—‘भवन्ती’, ‘अन्तरा’ और ‘शाश्वती’; विचार-गद्य—‘संवत्सर’; नाटक—‘उत्तरप्रियदर्शी’; सम्पादित ग्रन्थ—‘तार सप्तक’, ‘दूसरा सप्तक’, ‘तीसरा सप्तक’ (कविता-संग्रह) के साथ कई अन्य पुस्तकों का सम्पादन।

सम्मान : 1964 में ‘आँगन के पार द्वार’ पर उन्हें ‘साहित्य अकादेमी पुरस्कार’ प्राप्त हुआ और 1979 में ‘कितनी नावों में कितनी बार’ पर ‘ज्ञानपीठ पुरस्कार’।

निधन : 4 अप्रैल, 1987

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