Tumhari Roshani Mein

Author: Govind Mishra
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Tumhari Roshani Mein
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तुम्हारी रोशनी में गोविन्द मिश्र का अत्यन्त चर्चित उपन्यास है जिसमें उन्होंने आधुनिकता और परम्परा के बीच फँसी भारतीय स्त्री का एक अभूतपूर्व चित्र प्रस्तुत किया है। एक ऐसा चरित्र जो अपनी तमाम संश्लिष्टताओं में इतना सजीव है कि कहना कठिन हो जाए कि हम किसी कथा-पात्र से मिल रहे हैं या अपने आसपास के किसी जीते-जागते व्यक्ति से।

गोविन्द मिश्र को अपने परिवेश और देखे-जाने चरित्रों को लेकर ऐसे पात्र गढ़ने के लिए जाना जाता है जो मनुष्यता के शाश्वत प्रश्नों की खोज का प्रतीक बन जाते हैं। इस उपन्यास में भी उन्होंने तर्क तथा भावना के द्वन्द्व के बीच से ऐसी ही एक कहानी रची है जो प्रेम को केन्द्र में रखते हुए अस्तित्व के गम्भीर प्रश्नों से होकर गुजरती है।

विख्यात कथाकार अमृतलाल नागर ने इसीलिए इस उपन्यास को समाजशास्त्रीय अध्ययन के लिए भी एक महत्त्वपूर्ण कथा-कृति बताया था।

सुवर्णा अपने भीतर के बहुमूल्य की खोज में अपने वजूद के कई बिन्दुओं से गुजरती है, अपने विवाहित जीवन, अपने घर-परिवार और कैरियर के अलग-अलग मोर्चों पर संघर्ष करते हुए उसकी यह भीतरी-बाहरी यात्रा एक तरह से आधुनिक संस्कृति के खोखलेपन को उजागर करती हुई, मुक्ति की अवधारणा और पारम्परिक बन्धनों के संघर्ष की यात्रा बन जाती है।

जीवन के यथार्थ को अपने भीतर समेटे वृहत्तर सन्दर्भों तक फैली एक मार्मिक यात्रा।

More Information
Language Hindi
Format Hard Back, Paper Back
Publication Year 1985
Edition Year 2022, Ed. 3rd
Pages 176p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 22.5 X 14.5 X 1.5
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Govind Mishra

Author: Govind Mishra

गोविन्द मिश्र

गोविन्द मिश्र समकालीन कथा-साहित्य में एक ऐसी उपस्थिति हैं जिनकी वरीयताओं में लेखन सर्वोपरि है, जिनकी चिन्ताएँ समकालीन समाज से उठकर ‘पृथ्वी पर मनुष्य’ के रहने के सन्दर्भ तक जाती हैं और जिनका लेखन-फलक लाल पीली ज़मीन के खुरदरे यथार्थ, तुम्हारी रोशनी में की कोमलता और काव्यात्मकता, धीरसमीरे  की भारतीय परम्परा की खोज, हुज़ूर दरबार और पाँच आँगनोंवाला घर के इतिहास और अतीत के सन्दर्भ में आज के प्रश्नों की पड़ताल–इन्हें एक साथ समेटे हुए है।

उनकी प्रमुख कृतियाँ हैं—वह अपना चेहरा, उतरती हुई धूप, लाल पीली ज़मीन, हुज़ूर दरबार, तुम्हारी रोशनी में, धीरसमीरे, पाँच आँगनोंवाला घर, फूल...इमारतें और बन्दर, कोहरे में क़ैद रंग, धूल पौधों पर, अरण्यतंत्र, शाम की ​​झिलमिल, ख़िलाफ़त (उपन्यास); पगला बाबा, आसमान...कितना नीला, हवाबाज़, मुझे बाहर निकालो, नये सिरे से आदि (कहानी-संग्रह); निर्झरिणी (सम्पूर्ण कहानियाँ दो खंडों में); धुंध-भरी सुर्ख़ी, दरख़्तों के पार...शाम, झूलती जड़ें, परतों के बीच (यात्रा-वृत्त); साहित्य का सन्दर्भ, कथा भूमि, संवाद अनायास, समय और सर्जना, साहित्य, साहित्यकार और प्रेम, सान्निध्य-साहित्यकार (निबन्ध); ओ प्रकृति माँ! (कविता); मास्टर मनसुखराम, कवि के घर में चोर, आदमी का जानवर (बाल-साहित्य); रंगों की गंध (समग्र यात्रा-वृत्त दो खंडों में); चुनी हुई रचनाएँ (तीन खंडों में); गोविन्द मिश्र रचनावली : संपादक नन्दकिशोर आचार्य (बारह खंडों में)।

उन्हें प्राप्त कई पुरस्कारों/सम्मानों में पाँच आँगनोंवाला घर के लिए 1998 का ‘व्यास सम्मान’, 2008 में ‘साहित्य अकादेमी’, 2011 में ‘भारत-भारती सम्मान’, 2013 का ‘सरस्वती सम्मान’ विशेष उल्लेखनीय हैं।

सम्पर्क : एच.एक्स. 94, ई-7, अरेरा कॉलोनी,

भोपाल-462016

ई-मेल : govindmishra1939@gmail.com

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