गद्य कवीनां निकष वदन्ति’ उक्ति सुविदित है, किन्तु अगर कोई गद्यकार यह कहता नज़र आए कि कविता वह खिड़की है जिससे उसके घर में भीतर तक झाँका जा सकता है...तो उत्सुकता स्वाभाविक है, विशेषकर तब जबकि वह अब तक अपनी कविताओं को व्यक्तिगत कहते हुए उनके प्रकाशन से भी परहेज़ करता चला आया हो। जी हाँ, उपन्यासकार, कथाकार गोविन्द मिश्र कविताएँ शुरू से ही लिखते रहे हैं और उन कविताओं के व्यक्तिगत स्वर को मूल्यवान मान उन्हें सहेजकर भी रखते रहे हैं। एक कथाकार की गद्य-यात्रा के समानान्तर फैली उसकी कविता-यात्रा, यहाँ संकलित है, जो गोविन्द मिश्र की दीगर रचना-सम्पदा से जुड़कर खासी महत्त्वपूर्ण हो जाती है।
उस ज़माने में जब अख़बारों के विषय और कविता के विषय में बहुत फ़र्क़ न रह गया हो, कविता कविता कम, बौद्धिक टिप्पणी ज़्यादा बन गई हो, गोविन्द मिश्र का व्यक्तिगत और भावना पर ज़ोर देना...यह मानना कि भावना का वेग ही कविता को दूसरी विधाओं से अलग करता है...यह एक गद्यकार की विपरीत के लिए ललक मात्र नहीं है। इस बिन्दु से आज की अपठनीय होती जाती कविता और भीतर हाहाकार उठा देनेवाली कविता के फ़ासले पर बात शुरू हो सकती है।
प्रस्तुत संकलन की भूमिका इस दृष्टि से उतनी ही महत्त्वपूर्ण है जितनी कि कविताएँ। बीच-बीच में कविताएँ रचते हुए, गोविन्द मिश्र के रचनाकार को किस तरह के अनुभव हुए, कैसे-कैसे संस्कार मिले, भूमिका में यह भी द्रष्टव्य है। कविताएँ भले ही कम हों पर 'विषमकोण' से 'प्रकृति माँ' तक की यात्रा, एक निश्छल लयात्मकता में आबद्ध अँधेरे से उजास की ओर जाती एक ऐसी यात्रा है जो अपने आप में एक बड़ी कविता की प्रतीति अनायास ही करा जाती है।
Language | Hindi |
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Binding | Hard Back |
Translator | Not Selected |
Editor | Not Selected |
Publication Year | 1995 |
Edition Year | 1995, Ed. 1st |
Pages | 112p |
Publisher | Radhakrishna Prakashan |
Dimensions | 22 X 14 X 1 |