Tat Par Hun Par Tatastha Nahin

Interview
Author: Kunwar Narain
Editor: Vinod Bhardwaj
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Tat Par Hun Par Tatastha Nahin
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कुँवर नारायण हमारे समय के उन अप्रतिम लेखकों में से हैं, जिन्होंने हिन्दी कविता में ही नहीं बल्कि पूरे भारतीय साहित्य में अपनी एक सशक्त और अमिट पहचान बनाई है।

‘तट पर हूँ पर तटस्थ नहीं’ पिछले एक दशक में कुँवर नारायण द्वारा विभिन्न लेखकों, कवियों, पत्रकारों को दी गई भेंटवार्ताओं का एक प्रतिनिधि चयन है। कुछ भेंटवार्ताओं में संवाद हैं, कुछ में अपने साहित्य और समय के प्रश्नों से गहराई में जाकर जूझने की कोशिश है और कुछ में प्रश्नों के सीधे और स्पष्ट उत्तर हैं। कुँवर नारायण हिन्दी के उन चुने हुए लेखकों में से हैं जो इंटरव्यू विधा को धैर्य और पर्याप्त गम्भीरता से लेते हैं। यही कारण है कि उनकी भेंटवार्ताओं के किसी भी चयन का महत्त्व उनकी समीक्षा पुस्तकों से कम नहीं है। उनकी कुछ लम्बी भेंटवार्ताएँ उतनी ही महत्त्वपूर्ण हैं जितनी उनकी समीक्षाएँ या विचारपरक निबन्ध।

‘तट पर हूँ पर तटस्थ नहीं’ का सम्पादन विनोद भारद्वाज ने किया है जो कुँवर नारायण की प्रारम्भिक भेंटवार्त्ताओें के संग्रह ‘मेरे साक्षात्कार’ का भी सम्पादन कर चुके हैं।

पिछले चार दशकों से भी अधिक समय से विनोद भारद्वाज कुँवर नारायण के निकट सम्पर्क में रहे हैं। वह उनसे समय-समय पर कई लम्बी भेंटवार्ताओं का संयोजन भी कर चुके हैं। यह पुस्तक हिन्दी ही नहीं, भारतीय साहित्य के सभी अध्येताओं के लिए अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। कुँवर नारायण के जीवन और साहित्य दोनों का ही एक अच्छा परिचय इस पुस्तक में मौजूद है। इंटरव्यू विधा प्रश्न-उत्तर, संवाद, डायरी, आत्मस्वीकृति, निबन्ध और समीक्षा की दुनिया में एक अद्भुत आवाजाही का माध्यम बन जाती है।

More Information
Language Hindi
Format Hard Back
Publication Year 2010
Edition Year 2010, Ed. 1st
Pages 172p
Translator Not Selected
Editor Vinod Bhardwaj
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 22 X 14 X 1
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Editorial Review

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Kunwar Narain

Author: Kunwar Narain

कुँवर नारायण

कुँवर नारायण (19 सितम्बर, 1927—15 नवम्बर, 2017) ने बीसवीं और इक्कीसवीं सदियों की सन्धि-रेखा के दोनों ओर फैले हुए अपने गुणात्मक लेखन में अध्ययन की व्यापकता, सरोकारों की विविधता और जीवनानुभवों के सौन्दर्य-बोध के कारण कई पीढ़ियों की रचना और जीवन-दृष्टि को निरन्तर समृद्ध किया है। अपनी सिसृक्षा में उनका कवि और सम्पूर्ण कृतित्व एक पूरी पारिस्थितिकी का निर्माण करता है और इसके लिए सदैव अपनी प्रतिबद्धता भी ज़ाहिर करता रहा है। उनके जीवन और कविताओं में परस्पर साहचर्य के अन्तर्निहित भाव को आद्यन्त लक्षित किया जा सकता है जो आज भी उनकी उपस्थिति को सम्भव और मूर्त करता है।

प्रकाशित कृतियाँ : ‘चक्रव्यूह’, ‘तीसरा सप्तक’ (सहयोगी कवि), ‘परिवेश : हम-तुम’, ‘अपने सामने’, ‘कोई दूसरा नहीं’, ‘इन दिनों’, ‘हाशिए का गवाह’, ‘सब इतना असमाप्‍त’ (कविता); ‘आत्मजयी’, ‘वाजश्रवा के बहाने’, ‘कुमारजीव’ (प्रबन्ध-काव्य); ‘आकारों के आसपास’, ‘बेचैन पत्तों का कोरस’ (कहानी); ‘आज और आज से पहले’, ‘साहित्य के कुछ अन्तर्विषयक सन्दर्भ’, ‘दिशाओं का खुला आकाश’, ‘शब्द और देशकाल’, ‘रुख़’ (आलोचना व वैचारिक गद्य); ‘लेखक का सिनेमा’ (विश्व सिने-समीक्षा); ‘मेरे साक्षात्कार’, ‘तट पर हूँ पर तटस्थ नहीं’ (साक्षात्कार); ‘न सीमाएँ न दूरियाँ’ (अनुवाद)। अनेक भारतीय और विदेशी भाषाओं में रचनाओं के पुस्तकाकार अनुवाद और संचयन, उन पर केन्द्रित शोध और आलोचनात्मक लेखन।

प्रमुख सम्मान : ‘ज्ञानपीठ पुरस्कार’, ‘साहित्य अकादेमी पुरस्कार’, ‘शलाका सम्मान’, ‘राष्ट्रीय कबीर सम्मान’, रोम का अन्तरराष्ट्रीय 'प्रीमिओ फ़ेरोनिआ’, वॉरसॉ यूनिवर्सिटी का ‘ऑनरेरी मैडल’, 'पद्मभूषण’, साहित्य अकादेमी की 'महत्तर सदस्यता’ आदि।

 

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