Streemughal

Author: Pawan Karan
Edition: 2023, Ed. 1st
Language: Hindi
Publisher: Radhakrishna Prakashan
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Streemughal
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स्त्रीमुग़ल  की कविताएँ इस अर्थ में विशेष हैं क्योंकि इन्हें लिखने के क्रम में हिन्दी के किसी कवि के द्वारा दो सौ वर्षों के साम्राज्य-इतिहास का विस्तृत और वेधक शोध-अध्ययन किया गया है। कवि ने इसके लिए मुग़ल इतिहास का प्रतिनिधित्व करती पुस्तकों, उपन्यासों, टीपों, लेखों और समीक्षाओं को संवेदित मानस से पढ़ा। दुनिया-भर के साम्राज्यों में उल्लिखित स्त्रियों की तरह मुग़ल इतिहास में भी स्त्रियों की विशेषता कमतर नहीं।

अध्ययन के दौरान मुग़ल स्त्रियों में से किसी-किसी स्त्री का कविता में ढलते जाना रोचक रहा। बरास्ते-कवि कई महत्त्वपूर्ण मुग़ल स्त्रियाँ इस वजह से स्वयं को कविता में नहीं बदल सकीं, क्योंकि वहाँ उनसे जुड़ी कोई घटना अथवा कहानी मौजूद नहीं थी। किंतु कई साधारण आनुषंगिक स्त्रियाँ स्वयं को कविता में बदलने में इसलिए कामयाब हो गईं क्योंकि मुग़ल इतिहास में वे किसी ख़ास घटना की गवाह थीं।

दो सौ से अधिक वर्षों के मुग़लकाल में मुग़ल स्त्रियों ने मुग़ल बादशाहों, शहज़ादों, सेनापतियों और सूबेदारों के साथ उत्तर और दक्षिण की कठिनतम यात्राएँ कीं। क़िलों के साथ-साथ उनका जीवन यात्रा-शिविरों में शहज़ादों और शहज़ादियों को जनते, उनके निकाह-विवाह होते देखते बीत गया। कोई मुग़ल बेगम अपनी छाप छोड़ने में सफल हो सकी तो कई बेगमें बादशाहों के हरम में खोकर रह गईं। कोई शहज़ादी अपने मन की कर सकी, तो कोई शहज़ादी मात्र सत्ता के सूत्र छूने में कामयाब हो सकी। मगर किसी मुग़ल स्त्री को सुल्तान रज़िया की तरह हिन्दुस्तान की बादशाहत नहीं मिली।

क़िलों की अभेद्य और ऊँची दीवारें, हाथियों की चिंघाड़, नक़्क़ारों की आवाज़ें, बादशाहों की रत्नजड़ित पोशाकें-टोपियाँ, तोप-तलवारें, मुग़ल स्त्रियों को हरम और हरम के भीतर पलते षड्यंत्रों तक सीमित रखने में कामयाब हो गईं। मुग़ल स्त्रियों की बिजली-सी कौंध से हमारा परिचय इस संग्रह की कविताओं में होता है। मुग़ल स्त्रियों की पीड़ा, रुदन, तड़प, बेचैनी और समझ जो मुग़ल इतिहास से एक हद तक ग़ायब है, स्त्रीमुग़ल की कविताएँ उससे हमारा परिचय कराने की कोशिश करती हैं।

पवन करण इससे पहले भी प्राचीन भारतीय साहित्य से खोजकर स्त्रीशतक (खंड-एक एवं दो) में भी दो सौ स्त्रियों के परिचय, पीड़ा और प्रतिरोध का अद्यतन आख्यान रच चुके हैं, इन कविताओं में मुग़ल इतिहास की एक सौ मुग़ल स्त्रियों ने नवजीवन पाया है।

More Information
Language Hindi
Binding Paper Back
Publication Year 2023
Edition Year 2023, Ed. 1st
Pages 216p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Radhakrishna Prakashan
Dimensions 22 X 14 X 1.5
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Pawan Karan

Author: Pawan Karan

पवन करण

जन्म : 18 जून, 1964; ग्वालियर (म.प्र.)।

शिक्षा : पीएच.डी. (हिन्दी), जनसंचार एवं मानव संसाधन विकास में स्नातकोत्तर पत्रोपाधि।

प्रकाशित काव्य-संग्रह : 'इस तरह मैं', 'स्त्री मेरे भीतर', 'अस्पताल के बाहर टेलीफ़ोन', 'कहना नहीं आता', 'कोट के बाज़ू पर बटन', 'कल की थकान' और 'स्त्रीशतक' खंड–एक एवं 'स्त्रीशतक' खंड–दो प्रकाशित।

अॅंग्रेज़ी, रूसी, नेपाली, तमिल, तेलुगू, कन्नड़, गुजराती, असमिया, बांग्ला, पंजाबी, उड़िया तथा उर्दू में कविताओं के अनुवाद। कविताएँ विश्वविद्यालयीन पाठ्यक्रमों में शामिल।

कविता-संग्रह 'स्त्री मेरे भीतर' मलयालम, मराठी, उड़िया, पंजाबी, उर्दू तथा बांग्ला में प्रकाशित। संग्रह की कविताओं का नाट्य-मंचन।

सम्मान : ‘रामविलास शर्मा पुरस्कार’, ‘रज़ा पुरस्कार’, ‘वागीश्वरी सम्मान’, ‘शीला सिद्धांतकर स्मृति सम्मान’, ‘परम्परा ऋतुराज सम्मान’, ‘केदार सम्मान’, ‘स्पंदन सम्मान’।

सम्प्रति : 'नवभारत' एवं 'नई दुनिया' ग्वालियर में साहित्यिक पृष्ठ 'सृजन' का सम्पादन तथा साप्ताहिक साहित्यिक स्तम्‍भ 'शब्द-प्रसंग' का लेखन।

 

 

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