Shiksha, Samaj Aur Bhavishya

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Shiksha, Samaj Aur Bhavishya

राष्ट्रीय और अन्तरराष्ट्रीय ख्याति के शिक्षा एवं समाज–वैज्ञानिक प्रो. श्यामाचरण दुबे की इस पुस्तक में शिक्षा, परम्परा और विकास के अन्तर्सम्बन्धों पर चौदह महत्त्वपूर्ण निबन्ध शामिल हैं। इनमें तीसरी दुनिया के शैक्षिक परिदृश्य का समाजशास्त्रीय दृष्टि से सूक्ष्म विश्लेषण किया गया है।

प्रो. दुबे की यह पुस्तक वैकल्पिक भविष्य के निर्माण में शिक्षा की भूमिका पर जो स्थापनाएँ प्रस्तुत करती हैं, वे निश्चय ही मौलिक और प्रभावशाली हैं। इसके अतिरिक्त यह कृति भारतीय शिक्षा–व्यवस्था पर भी लेखक की पैनी नज़र से परिचित कराती है। इस सन्दर्भ में सुधार की दिशा में जो दिशा–निर्देश दिए गए हैं, उनकी प्रासंगिकता भी निर्विवाद है।

कहने की आवश्यकता नहीं कि प्रो. दुबे की यह कृति सम्बद्ध विषय का पूरी गम्भीरता और गहराई से विश्लेषण करती है।

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Language Hindi
Format Hard Back
Edition Year 2019, Ed. 4th
Pages 131p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Radhakrishna Prakashan
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Shyamacharan Dube

Author: Shyamacharan Dube

श्यामाचरण दुबे

 

प्रोफ़ेसर श्यामाचरण दुबे (1922) का नाम अन्तरराष्ट्रीय स्तर के समाजवैज्ञानिक के रूप में प्रसिद्ध है। उनकी पुस्तक इंडियन विलेज को एक क्लासिक के रूप में मान्यता मिली है। उसके अनेक अनुवाद विदेशी और भारतीय भाषाओं में हुए हैं। सामाजिक परिवर्तन, विकास और आधुनिकीकरण पर उनका अभिमत आधिकारिक माना जाता है।

अंग्रेज़ी के साथ-साथ वे हिन्दी में भी लिखते रहे। परम्परा, संस्कृति और साहित्य पर सम्मानित भाषण देने के आमंत्रण उन्हें मिलते रहे और उन्होंने स्तरीय पत्रिकाओं में भी समय-समय पर लिखा। वे साहित्य, संस्कृति और समाजविज्ञान के शीर्षस्थ सम्मानों और पुरस्कारों के निर्णायक मंडलों के सदस्य भी रहे।

प्रकाशित प्रमुख कृतियाँ : ‘मानव और संस्कृति’, ‘संक्रमण की पीड़ा’, ‘विकास का समाजशास्त्र’, ‘परम्परा और परिवर्तन’, ‘शिक्षा, समाज और भविष्य’, ‘परम्परा, इतिहासबोध और संस्कृति’, ‘लोक : परम्परा, पहचान और प्रवाह’।

सम्मान : भारतीय ज्ञानपीठ का ‘मूर्तिदेवी पुरस्कार’ (1993)।

निधन : 4 फ़रवरी, 1996

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