राष्ट्रीय और अन्तरराष्ट्रीय ख्याति के शिक्षा एवं समाज–वैज्ञानिक प्रो. श्यामाचरण दुबे की इस पुस्तक में शिक्षा, परम्परा और विकास के अन्तर्सम्बन्धों पर चौदह महत्त्वपूर्ण निबन्ध शामिल हैं। इनमें तीसरी दुनिया के शैक्षिक परिदृश्य का समाजशास्त्रीय दृष्टि से सूक्ष्म विश्लेषण किया गया है।
प्रो. दुबे की यह पुस्तक वैकल्पिक भविष्य के निर्माण में शिक्षा की भूमिका पर जो स्थापनाएँ प्रस्तुत करती हैं, वे निश्चय ही मौलिक और प्रभावशाली हैं। इसके अतिरिक्त यह कृति भारतीय शिक्षा–व्यवस्था पर भी लेखक की पैनी नज़र से परिचित कराती है। इस सन्दर्भ में सुधार की दिशा में जो दिशा–निर्देश दिए गए हैं, उनकी प्रासंगिकता भी निर्विवाद है।
कहने की आवश्यकता नहीं कि प्रो. दुबे की यह कृति सम्बद्ध विषय का पूरी गम्भीरता और गहराई से विश्लेषण करती है।
Language | Hindi |
---|---|
Binding | Hard Back |
Translator | Not Selected |
Editor | Not Selected |
Edition Year | 2019, Ed. 4th |
Pages | 131p |
Publisher | Radhakrishna Prakashan |