Parampara, Itihas Bodh Aur Sanskriti

Edition: 2022, Ed. 7th
Language: Hindi
Publisher: Radhakrishna Prakashan
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Parampara, Itihas Bodh Aur Sanskriti

समसामयिक संवाद में परम्परा एक केन्द्रीय बिन्दु बन गई है। संस्कृति की पुनर्रचना, राजनीतिकरण और सैनिकीकरण व्यवस्था के लिए गम्भीर प्रश्न और भविष्य के लिए चुनौती बनते जा रहे हैं। इतिहास-बोध का मिथकीकरण अनेक वैचारिक विकृतियाँ उत्पन्न कर रहा है। साहित्य और संचार प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से परम्परा, संस्कृति और इतिहास-बोध से जुड़े हैं। इस पुस्तक में संकलित भाषण और लेख इन समस्याओं पर समाजशास्त्रीय दृष्टि से विचार करते हैं।

More Information
Language Hindi
Binding Hard Back
Publication Year 1991
Edition Year 2022, Ed. 7th
Pages 167P
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Radhakrishna Prakashan
Dimensions 22 X 14 X 1.5
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Shyamacharan Dube

Author: Shyamacharan Dube

श्यामाचरण दुबे

 

प्रोफ़ेसर श्यामाचरण दुबे (1922) का नाम अन्तरराष्ट्रीय स्तर के समाजवैज्ञानिक के रूप में प्रसिद्ध है। उनकी पुस्तक इंडियन विलेज को एक क्लासिक के रूप में मान्यता मिली है। उसके अनेक अनुवाद विदेशी और भारतीय भाषाओं में हुए हैं। सामाजिक परिवर्तन, विकास और आधुनिकीकरण पर उनका अभिमत आधिकारिक माना जाता है।

अंग्रेज़ी के साथ-साथ वे हिन्दी में भी लिखते रहे। परम्परा, संस्कृति और साहित्य पर सम्मानित भाषण देने के आमंत्रण उन्हें मिलते रहे और उन्होंने स्तरीय पत्रिकाओं में भी समय-समय पर लिखा। वे साहित्य, संस्कृति और समाजविज्ञान के शीर्षस्थ सम्मानों और पुरस्कारों के निर्णायक मंडलों के सदस्य भी रहे।

प्रकाशित प्रमुख कृतियाँ : ‘मानव और संस्कृति’, ‘संक्रमण की पीड़ा’, ‘विकास का समाजशास्त्र’, ‘परम्परा और परिवर्तन’, ‘शिक्षा, समाज और भविष्य’, ‘परम्परा, इतिहासबोध और संस्कृति’, ‘लोक : परम्परा, पहचान और प्रवाह’।

सम्मान : भारतीय ज्ञानपीठ का ‘मूर्तिदेवी पुरस्कार’ (1993)।

निधन : 4 फ़रवरी, 1996

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