‘ख़्वाब है दीवाने का’ से आरम्भ हुई कृष्ण बलदेव वैद की डायरी-यात्रा ‘शम’अ हर रंग में’ तक पहुँचकर विराम लेती है। अर्थ स्पष्ट है कि ‘शम’अ हर रंग में’ एक लेखक की डायरी है। एक ऐसे शख़्स की दैनिक आपबीती जिसके लिए लेखक होना कोई बाहरी चुनाव नहीं, आन्तरिक मजबूरी है।
‘शम’अ हर रंग में’ एक ऐसी पुस्तक है जो रेखांकित करती है कि लेखक समाज से उतना नहीं लड़ता जितना कि अपने आपसे। उसका हर दिन, हर लम्हा कल की नोक पर अटका रहता है। उसकी उदासियाँ, ख़ुशियाँ, शक, यक़ीन, ज़िद्द—यानी अपने होने का हर रंग, उसके तख़लीक़ी इरादों और अन्देशों के इर्द-गिर्द बचा हुआ है। बारीक अहसासों से भाषा की हदों को पार कर जाता है और पाठकों का अन्तरंग हो जाता
है।
यह पुस्तक डायरी-लेखन की विशिष्टता की कसौटी बनकर उभरी है और मनुष्य के मानसिक जीवन के उतार-चढ़ावों का रूपायण करती है। बीती सदी के आधे समय और समाज की कुछ बारीक कतरनें और रंगतें भी इसमें मौजूद हैं। हिन्दी रचना-संसार की दुर्लभ झलकियाँ भी इस पुस्तक को महत्त्वपूर्ण बनाती हैं।
Language | Hindi |
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Binding | Hard Back |
Publication Year | 2007 |
Edition Year | 2007, Ed. 1st |
Pages | 291p |
Translator | Not Selected |
Editor | Not Selected |
Publisher | Rajkamal Prakashan |
Dimensions | 22 X 14 X 2.2 |