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Sankal, Sapne Aur Sawal-E-Book

Author: Sudha Arora
Edition: 2019, 1st Ed.
Language: Hindi
Publisher: Lokbharti Prakashan
Special Price ₹296.25 Regular Price ₹395.00
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प्रतिष्ठित रचनाकार सुधा अरोड़ा का वैचारिक और रचनात्मक लेखन स्त्री के सवालों और उसकी चिन्ताओं का पक्षधर रहा है। वे किसी पूर्व-निर्धारित आग्रह या घिसे-पिटे स्त्रीवादी नारों को दोहराने की जगह एक खुले, परिवर्तनशील और आधुनिक समाज में व्यावहारिक स्तर पर स्‍त्री को पुरुष के बरक्स बराबरी का सम्मानजनक हिस्सा दिलवाने में यक़ीन रखती है।

‘साँकल, सपने और सवाल’ में लेखिका के पिछले बीस वर्षों के लेखन से चुने गए आलेख संग्रहित है। इनमें पाठक को समाज की उन साँकलों और वर्जित दहलीज़ों को लाँघने का साहस दिखाई देगा, जिन पर सदियों से दुराग्रहों और वर्जनाओं के तालों का साम्राज्य रहा है। भारतीय सामजिक पृष्ठभूमि और उसकी पारम्‍परिक सीमाओं के बीच शहरी एवं आंचलिक स्त्री के लिए नैसर्गिक स्पेस की ज़रूरत और उसकी जायज़ माँग ही इन आलेखों का बीज सूत्र है।

इन आलेखों के विषय आज की स्त्री के फैलते आकाश की तरह चहुमुखी और विविध हैं। धर्म, मीडिया, फ़िल्म और साम्प्रदायिकता से लेकर समलैंगिकता, तेज़ाबी हमले, शिक्षित लड़कियों की आत्महत्या, सम्‍पत्ति अधिकार यानी घरेलू और सामाजिक शोषण के हर पहलू पर लेखिका की पैनी नज़र है। वे मानती हैं कि आज के तेज़ी से बदलते समाज में स्त्री का समय किसी सीमित चौखट के भीतर क़ैद नहीं किया जा सकता। विविध मुद्दों पर सुधा जी कई सवालों से टकराती हैं। इस उत्तर-आधुनिक और ग्लोबल समय में स्त्री-देह के भोगवादी नजरिए के विरुद्ध सुधा अरोड़ा का कारगर हस्तक्षेप रेखांकित किया जा सकता है।

बेहद आसान और सरल भाषा में लिखे गए इन आलेखों की पठनीयता एवं प्रतिबद्धता ही अन्‍तत: इनकी सबसे बड़ी सफलता और सार्थकता है।

More Information
Language Hindi
Binding Hard Back, Paper Back
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publication Year 2019
Edition Year 2019, 1st Ed.
Pages 272p
Price ₹395.00
Publisher Lokbharti Prakashan
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Sudha Arora

Author: Sudha Arora

सुधा अरोड़ा

सातवें दशक की चर्चित कथाकार सुधा अरोड़ा का जन्म 4 अक्टूबर, 1946 को लाहौर में हुआ। कलकत्ता विश्वविद्यालय से 1967 में हिन्दी साहित्य में एम.ए. तथा बी.ए. ऑनर्स में दो बार स्वर्णपदक प्राप्त करनेवाली सुधा जी ने 1969 से 1971 तक कलकत्ता के दो डिग्री कॉलेजों में अध्यापन-कार्य किया।

उनकी पहली कहानी 'मरी हुई चीज़’ 'ज्ञानोदय’ में सितम्बर 1965 में और पहला कहानी-संग्रह 'बग़ैर तराशे हुए’ 1967 में प्रकाशित हुआ। 1991 में हेल्प सलाहकार केन्द्र, मुम्बई से जुड़ने के बाद वे सामाजिक कार्यों के प्रति समर्पित रहीं।

अब तक उनके बारह कहानी-संकलन जिनमें 'महानगर की मैथिली’, 'काला शुक्रवार’ और 'रहोगी तुम वही’ चर्चित रहे हैं, एक कविता-संकलन तथा एक उपन्यास के अतिरिक्त वैचारिक लेखों की दो किताबें 'आम औरत : जि़न्दा सवाल’ और 'एक औरत की नोटबुक’ प्रकाशित हो चुकी हैं। उन्होंने बड़े पैमाने पर अनुवाद, सम्पादन और स्तम्भ-लेखन भी किया है तथा भंवरी देवी पर बनी फि़ल्म 'बवंडर’ की पटकथा लिखी है।

कहानियाँ लगभग सभी भारतीय भाषाओं के अतिरिक्त अंग्रेज़ी, फ़्रेंच , पोलिश, चेक, जापानी, डच, जर्मन, इतालवी तथा ताजिकी भाषाओं में अनूदित और इन भाषाओं के संकलनों में प्रकाशित।

1977-78 में पाक्षिक 'सारिका’ में 'आम औरत : जि़न्दा सवाल’, 1997-98 में दैनिक अख़बार 'जनसत्ता’ में साप्ताहिक स्तम्भ 'वामा’, 2004 से 2009 तक 'कथादेश’ में 'औरत की दुनिया’ और 2013 से 'राख में दबी चिनगारी’—उनके स्तम्भ ने साहित्यिक परिदृश्य पर अपनी ख़ास जगह बनाई है।

1978 में उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान का विशेष पुरस्कार, 2008 में 'भारत निर्माण सम्मान’, 2010 में 'प्रियदर्शिनी पुरस्कार’, 2011 में 'वीमेन्स अचीवर अवॉर्ड’, 2012 में 'महाराष्ट्र राज्य हिन्दी अकादमी सम्मान’ और 2014 में 'वाग्मणि सम्मान’ आदि से सम्मानित हो चुकी हैं।

सम्प्रति : मुम्बई में स्वतंत्र लेखन।

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