But Jab Bolte Hain

Author: Sudha Arora
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But Jab Bolte Hain
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कथाकार एवं सामाजिक कार्यकर्ता सुधा अरोड़ा हमारे समय का एक जाना-पहचाना नाम है। लेखन इनके लिए जुनून तो है ही मिशन भी है। सुधा जी के लेखन में निरन्तर ताज़गी दिखाई देती है। समकालीन मुद्दों पर उनके लेखन की पक्षधरता अचम्भित करती है।

‘बुत जब बोलते हैं’ उनकी महत्त्वपूर्ण कहानियों का संकलन है। सुधा अरोड़ा की कहानियाँ शाश्वत मूल्यों के साथ-साथ समकालीन परिस्थिति से संवाद भी करती चलती हैं और अपने को निरन्तर बदलते समाज से जोड़े रखती हैं—कुरीतियों और अवमूल्यन के ख़िलाफ़ बेबाक-बयानी करती हुई और सच के समर्थन में अपनी आवाज़ बुलन्द करती हुई। इन कहानियों के पात्र विविध वर्गों से आते हैं। यहाँ स्त्रियों के अलावा मूक कामगार भी हैं, मौन बालश्रमिक भी और जटिल सामाजिक विसंगातियों से जूझती बुज़ुर्ग और युवा स्त्रियाँ भी।

सुधा अरोड़ा की कहानियाँ देह-विमर्श की तीखी आवाज़ों के बीच स्त्री-जीवन के किसी मार्मिक हिस्से को अभिव्यक्त करती कर्णप्रिय लोकगीत-सी लगती हैं। इनका उद्देश्य घरेलू-हिंसा और पुरुष की व्यावहारिक व मानसिक क्रूरता के आघात झेलकर ठूँठ हो चुके स्त्री मन में फिर से हरीतिमा अँखुआने और जीवन की कोमलता उभारने की संवेदना का सिंचन करना है।

‘उधड़ा हुआ स्वेटर’ कहानी को खुले मन से मिली पाठकों की स्वीकृति साबित करती है कि ऐसी संवेदनात्मक कहानियों का लिखा जाना कितना ज़रूरी है। इन कहानियों में लेखिका दर्दमन्द स्त्रियों की दरदिया बनकर अगर एक हाथ से उनके घाव खोलती है तो दूसरे हाथ से उन्हें आत्मसाक्षात्कार के अस्त्र भी थमाती है जिससे ये स्त्रियाँ भावनात्मक आघात और सन्त्रास से टूटती नहीं, बल्कि मज़बूत बनती हैं। ‘राग देह मल्हार की बेनू’ और ‘भागमती पंडाइन का उपवास’ की भागमती ऐसी ही स्त्रियाँ हैं जिनका स्वर व्यंग्यात्मक और चुटीला होते हुए भी संवेदना को सँजोए रहता है। अपने समय के साथ मुठभेड़ में हमेशा अगुआ रही इस वरिष्ठ लेखिका का यह संकलन पाठकों के बीच हमेशा अपनी ज़रूरी और महत्त्वपूर्ण भूमिका में बना रहेगा।

More Information
Language Hindi
Format Hard Back, Paper Back
Publication Year 2015
Edition Year 2015, Ed 1st
Pages 168p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Lokbharti Prakashan
Dimensions 22 X 14 X 1.5
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Sudha Arora

Author: Sudha Arora

सुधा अरोड़ा

सातवें दशक की चर्चित कथाकार सुधा अरोड़ा का जन्म 4 अक्टूबर, 1946 को लाहौर में हुआ। कलकत्ता विश्वविद्यालय से 1967 में हिन्दी साहित्य में एम.ए. तथा बी.ए. ऑनर्स में दो बार स्वर्णपदक प्राप्त करनेवाली सुधा जी ने 1969 से 1971 तक कलकत्ता के दो डिग्री कॉलेजों में अध्यापन-कार्य किया।

उनकी पहली कहानी 'मरी हुई चीज़’ 'ज्ञानोदय’ में सितम्बर 1965 में और पहला कहानी-संग्रह 'बग़ैर तराशे हुए’ 1967 में प्रकाशित हुआ। 1991 में हेल्प सलाहकार केन्द्र, मुम्बई से जुड़ने के बाद वे सामाजिक कार्यों के प्रति समर्पित रहीं।

अब तक उनके बारह कहानी-संकलन जिनमें 'महानगर की मैथिली’, 'काला शुक्रवार’ और 'रहोगी तुम वही’ चर्चित रहे हैं, एक कविता-संकलन तथा एक उपन्यास के अतिरिक्त वैचारिक लेखों की दो किताबें 'आम औरत : जि़न्दा सवाल’ और 'एक औरत की नोटबुक’ प्रकाशित हो चुकी हैं। उन्होंने बड़े पैमाने पर अनुवाद, सम्पादन और स्तम्भ-लेखन भी किया है तथा भंवरी देवी पर बनी फि़ल्म 'बवंडर’ की पटकथा लिखी है।

कहानियाँ लगभग सभी भारतीय भाषाओं के अतिरिक्त अंग्रेज़ी, फ़्रेंच , पोलिश, चेक, जापानी, डच, जर्मन, इतालवी तथा ताजिकी भाषाओं में अनूदित और इन भाषाओं के संकलनों में प्रकाशित।

1977-78 में पाक्षिक 'सारिका’ में 'आम औरत : जि़न्दा सवाल’, 1997-98 में दैनिक अख़बार 'जनसत्ता’ में साप्ताहिक स्तम्भ 'वामा’, 2004 से 2009 तक 'कथादेश’ में 'औरत की दुनिया’ और 2013 से 'राख में दबी चिनगारी’—उनके स्तम्भ ने साहित्यिक परिदृश्य पर अपनी ख़ास जगह बनाई है।

1978 में उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान का विशेष पुरस्कार, 2008 में 'भारत निर्माण सम्मान’, 2010 में 'प्रियदर्शिनी पुरस्कार’, 2011 में 'वीमेन्स अचीवर अवॉर्ड’, 2012 में 'महाराष्ट्र राज्य हिन्दी अकादमी सम्मान’ और 2014 में 'वाग्मणि सम्मान’ आदि से सम्मानित हो चुकी हैं।

सम्प्रति : मुम्बई में स्वतंत्र लेखन।

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