Sahitya Ka Uttar Samajshastra

Edition: 2006
Language: Hindi
Publisher: Radhakrishna Prakashan
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Sahitya Ka Uttar Samajshastra

गोष्ठियों के रूप अभी भी शादी-ब्याह की तरह हैं। एक दूल्हा, बाक़ी बाराती। गोष्ठी के मंच जातिभेद कराते हैं। ऊपर महान बैठेंगे। नीचे दासानुदास। एकदम विनय पत्रिका वाली हाइरार्की। प्रगतिशील, रूपवादी सब ये ही करते हैं।

बहस न सही, तू-तू, मैं-मैं ही सही। कुछ तो है। बुरा क्या है? नए पूँजीवाद में ये तो होना ही है।

मशाल टार्च बन चुकी है। राजनेता के पास जो ब्रांड टार्च है, वही साहित्यकार के पास है। ‘साहित्य और राजनीति’ की चिर बहस अब मर चुकी है। यही अच्छा है।

पढ़ें तो जानें, क्योंकि ये ‘अन्दर की बात है’। साहित्य का असल समाजशास्त्र है। यह ‘अन्दर की बात’ बहुत जटिल है रे!

और हम सब जो ‘बचे-खुचे’ हैं, तरह-तरह की ‘पूरणीय क्षतियाँ’ हैं जो हर गोष्ठी, सेमिनार, शोकसभा में मौजूद रहती हैं। होंगी कोई हज़ार-पाँच सौ। हम सब अपूरणीय ‘क्षति’ करके ही जाएँगे। बच्चो सावधान!

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Language Hindi
Binding Hard Back
Edition Year 2006
Pages 195p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Radhakrishna Prakashan
Dimensions 21 X 13.5 X 1
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Sudhish Pachauri

Author: Sudhish Pachauri

सुधीश पचौरी

जन्म : 29 दिसम्‍बर, 1948; अलीगढ़ (उ.प्र.)।

शिक्षा : एम.ए. (हिन्‍दी, आगरा विश्वविद्यालय), पीएच.डी. एवं पोस्ट डॉक्टोरल शोध (हिन्‍दी, दिल्ली विश्वविद्यालय, दिल्ली)।

मार्क्सवादी समीक्षक, प्रख्यात स्तम्‍भकार, मीडिया-विशेषज्ञ। ‘भारतेन्‍दु हरिश्चन्‍द्र पुरस्कार’, ‘सुब्रह्मण्‍य भारती पुरस्‍कार ’, ‘रामचंद्र शुक्ल सम्मान’ (मध्यप्रदेश साहित्य परिषद), ‘साहित्यकार सम्मान’ (हिन्‍दी अकादमी, दिल्‍ली) आदि से सम्मानित।

प्रकाशित पुस्तकें : ‘नई कविता का वैचारिक आधार’, ‘कविता का अन्‍त’, ‘दूरदर्शन की भूमिका’, ‘दूरदर्शन : स्वायत्तता और स्वतंत्रता’ (सं.), ‘उत्तर-आधुनिकता और उत्तर-संरचनावाद’, ‘नवसाम्राज्यवाद और संस्कृति’, ‘दूरदर्शन : दशा और दिशा’, ‘नामवर के विमर्श’ (सं.), ‘दूरदर्शन : विकास से बाज़ार तक’, ‘उत्तर-आधुनिक साहित्यिक विमर्श’, ‘मीडिया और साहित्य’, ‘उत्तर-केदार’ (सं.), ‘देरिदा का विखंडन और साहित्य’, ‘साहित्य का उत्तरकांड : कला का बाज़ार’, ‘टीवी टाइम्स’, ‘इक्कीसवीं सदी का पूर्वरंग’, ‘अशोक वाजपेयी : पाठ-कुपाठ’, ‘प्रसार भारती और प्रसारण-परिदृश्य’, ‘साइबर-स्पेस और मीडिया’, ‘स्त्री देह के विमर्श’, ‘आलोचना से आगे’, ‘हिन्दुत्व और उत्तर-आधुनिकता’, ‘ब्रेक के बाद’, ‘पॉपूलर कल्चर’, ‘फासीवादी संस्कृति और सेकूलर पॉप-संस्कृति’, ‘साहित्य का उत्तर-समाजशास्त्र’, ‘विभक्ति और विखंडन’, ‘नए जनसंचार माध्यम और हिन्दी’, ‘भाषा और साहित्य’, ‘निर्मल वर्मा और उत्तर-उपनिवेशवाद’, ‘मीडिया, जनतंत्र और आतंकवाद’।

सम्‍प्रति : दिल्ली विश्वविद्यालय के हिन्‍दी विभाग के प्रोफ़ेसर श्री पचौरी को दिल्ली विश्वविद्यालय में 'डीन ऑफ़ कॉलेज' भी बनाया गया है।

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