Fasiwadi Sanskriti Aur Secular Pop Sanskriti

You Save 15%
Out of stock
Only %1 left
SKU
Fasiwadi Sanskriti Aur Secular Pop Sanskriti

उत्तर-आधुनिक समय में ‘सांस्कृतिक राजनीति’ एक संघर्ष-क्षेत्र बन उठा है। ‘सांस्कृतिक राजनीति’ करके ‘सांस्कृतिक राष्ट्रवाद’, मूलतः फासिस्ट संस्कृति और सत्ता बनाने को प्रयत्नशील है। उसकी मिसालें यत्र-तत्र दैनिक भाव से बनती हैं। वे इसके लिए ‘पॉपुलर कल्चर’ के चिन्हों का सहारा लेते हैं, माध्यमों का सहारा लेते हैं, जनता में पॉपुलर भावपक्ष का निर्माण कर उसे एक निरंकुश अंधराष्ट्रवादी भाव में नियोजित करते रहते हैं। इसके बरक्स, इसके प्रतिरोध में कार्यरत प्रगतिशील सेकुलर और मानवतावादी विचारों और सांस्कृतिक उपादानों, चिन्हों का लगातार क्षय नज़र आता है। कुछ नए प्रतिरोधमूलक प्रयत्न नज़र आते हैं तो वे अपने स्वरूप एवं प्रभाव क्षमता में ‘हाई कल्चर’ (एलीट) बनकर आते हैं, आम जनता का उनसे कोई आवश्यक संवाद-सम्बन्ध नहीं
बनता।

‘पॉपुलर कल्चर’ चूँकि मूलतः और अन्ततः किसी भी तरह के तत्त्ववाद के विपरीत कार्य करती है। इसलिए वह हमेशा केन्द्रवाद, तत्त्ववाद और फासीवाद के ख़िलाफ़ जगह बनाती है और उसके जनतन्त्र के विस्तार की माँग करती है। इस ‘क्रिटीकल’ जगह को तत्त्ववादियों के हड़पने के लिए यों ही नहीं छोड़ा जा सकता। इस जगह में भी संघर्ष करना होगा, क्योंकि यह अब निर्णायक क्षेत्र बन उठा है। ये टिप्पणियाँ इसी चिन्ता से प्रेरित हैं। इसमें मार्क्सवाद और उससे बाहर की बहसें हैं तो समकालीन जीवन में ‘पॉपुलर क्षणों’ के अनुभवों को देखने की कोशिश भी है।

‘पॉपुलर कल्चर’ निष्क्रिय-ग़ुलाम श्रोता-दर्शक नहीं बनाती, वह एक ऐसा जगत बनाती है जो ‘विमर्शात्मक’ होता है। उसे देखने के लिए पॉपुलर संस्कृति की समझ चाहिए। यहाँ उपलब्ध टिप्पणियाँ इस दिशा में पाठकों की मदद कर सकती हैं : इनकी शैली अलग-अलग है क्योंकि हर बार एक चंचल क्षण, एक चंचल जटिल यथार्थ को पकड़ने और विमर्श में लाने की कोशिश है।

More Information
Language Hindi
Format Hard Back
Publication Year 2005
Edition Year 2005, Ed. 1st
Pages 167p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Radhakrishna Prakashan
Dimensions 22 X 14.5 X 2
Write Your Own Review
You're reviewing:Fasiwadi Sanskriti Aur Secular Pop Sanskriti
Your Rating
Sudhish Pachauri

Author: Sudhish Pachauri

सुधीश पचौरी

जन्म : 29 दिसम्‍बर, 1948; अलीगढ़ (उ.प्र.)।

शिक्षा : एम.ए. (हिन्‍दी, आगरा विश्वविद्यालय), पीएच.डी. एवं पोस्ट डॉक्टोरल शोध (हिन्‍दी, दिल्ली विश्वविद्यालय, दिल्ली)।

मार्क्सवादी समीक्षक, प्रख्यात स्तम्‍भकार, मीडिया-विशेषज्ञ। ‘भारतेन्‍दु हरिश्चन्‍द्र पुरस्कार’, ‘सुब्रह्मण्‍य भारती पुरस्‍कार ’, ‘रामचंद्र शुक्ल सम्मान’ (मध्यप्रदेश साहित्य परिषद), ‘साहित्यकार सम्मान’ (हिन्‍दी अकादमी, दिल्‍ली) आदि से सम्मानित।

प्रकाशित पुस्तकें : ‘नई कविता का वैचारिक आधार’, ‘कविता का अन्‍त’, ‘दूरदर्शन की भूमिका’, ‘दूरदर्शन : स्वायत्तता और स्वतंत्रता’ (सं.), ‘उत्तर-आधुनिकता और उत्तर-संरचनावाद’, ‘नवसाम्राज्यवाद और संस्कृति’, ‘दूरदर्शन : दशा और दिशा’, ‘नामवर के विमर्श’ (सं.), ‘दूरदर्शन : विकास से बाज़ार तक’, ‘उत्तर-आधुनिक साहित्यिक विमर्श’, ‘मीडिया और साहित्य’, ‘उत्तर-केदार’ (सं.), ‘देरिदा का विखंडन और साहित्य’, ‘साहित्य का उत्तरकांड : कला का बाज़ार’, ‘टीवी टाइम्स’, ‘इक्कीसवीं सदी का पूर्वरंग’, ‘अशोक वाजपेयी : पाठ-कुपाठ’, ‘प्रसार भारती और प्रसारण-परिदृश्य’, ‘साइबर-स्पेस और मीडिया’, ‘स्त्री देह के विमर्श’, ‘आलोचना से आगे’, ‘हिन्दुत्व और उत्तर-आधुनिकता’, ‘ब्रेक के बाद’, ‘पॉपूलर कल्चर’, ‘फासीवादी संस्कृति और सेकूलर पॉप-संस्कृति’, ‘साहित्य का उत्तर-समाजशास्त्र’, ‘विभक्ति और विखंडन’, ‘नए जनसंचार माध्यम और हिन्दी’, ‘भाषा और साहित्य’, ‘निर्मल वर्मा और उत्तर-उपनिवेशवाद’, ‘मीडिया, जनतंत्र और आतंकवाद’।

सम्‍प्रति : दिल्ली विश्वविद्यालय के हिन्‍दी विभाग के प्रोफ़ेसर श्री पचौरी को दिल्ली विश्वविद्यालय में 'डीन ऑफ़ कॉलेज' भी बनाया गया है।

Read More
Books by this Author
Back to Top