Popular Culture

Edition: 2004, Ed. 1st
Language: Hindi
Publisher: Radhakrishna Prakashan
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Popular Culture

‘पॉपुलर कल्चर’ सम्बन्धी कुछ लेख एवं टिप्पणियाँ यहाँ संकलित हैं : ‘पॉपुलर कल्चर’ का हिन्दी में निकट अनुवाद ‘लोकप्रिय संस्कृति’ हो सकती है। लेकिन ‘पॉपुलर कल्चर’ का आशय विशिष्ट है। पाठक उसे इन टिप्पणियों में पाएँगे। पश्चिमी समाजों में साहित्याध्ययनों के साथ सांस्कृतिक अध्ययनों का आरम्भ काफ़ी पहले हुआ था। ‘पॉपुलर कल्चर’ के अध्ययन भी शुरू हुए और अब ‘कल्चरल स्टडीज’ या कहें सांस्कृतिक अध्ययन ज़्यादा स्वीकृत हैं। देर-सबेर हिन्दी में भी शुद्ध साहित्यिक अध्ययन-अध्यापन की जगह साहित्य को व्यापक सांस्कृतिक अध्ययनों की कोटियों के तहत देखा-परखा जाने लगेगा।

कुछ बरस पहले हिन्दी कथा मासिक ‘कथादेश’ में ‘पॉप कल्चर’ नाम से कॉलम शुरू किया। धीरे-धीरे पाठकों ने उसे पढ़ना-सराहना शुरू कर दिया। साठ हज़ार करोड़ रुपए के आसपास आकलित भारतीय मनोरंजन उद्योग में दिन-रात बननेवाली भारतीय ‘पॉप कल्चर’ का ‘ग्लोबल बाज़ार’ है। फिर विश्व-भर में दिन-रात बननेवाली तरह-तरह की ‘पॉप कल्चर’ के अनन्त रूप टीवी आदि माध्यमों के ज़रिए यहाँ भी पर्याप्त उपलब्ध रहते हैं। इन दिनों सभी समाज एक प्रकार के ‘सांस्कृतिक सरप्लस’ एवं ‘मिक्स’ में रहते हैं। भारतीय समाज में तो यह और भी ज़्यादा है। अपना समाज इन दिनों ‘सांस्कृतिक राजनीति’ के दौर में है। नए सांस्कृतिक मोड़ जीवन को गहरे प्रभावित करते हैं। नए-नए तनाव बिन्दु और संघर्ष के क्षण बनते रहते हैं। संस्कृति इस तरह एक नया ‘समरांगण’ है। 'पॉपुलर कल्चर' के अध्ययन इन्हें समझने में मदद करते हैं। आनेवाले दिनों में ‘सांस्कृतिक अध्ययन’ और भी निर्णायक बनेंगे।

हिन्दी में तत्त्ववाद और कट्‌टरतावाद का वर्चस्व है। मनोरंजन को ‘पाप’ समझा जाता है। पॉप कल्चर को ‘पश्चिमी’, ‘साम्राज्यवादी’ अप-संस्कृति कहा जाता है। यह किताब इस समझ को निरस्त करती है। यह ‘पॉप कल्चर’ को एक ऐतिहासिक घटना मानकर उसके कुछ प्रमुख स्वरूपों, चिह्नों और घटनाओं का अध्ययन करती है।

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Language Hindi
Binding Hard Back
Publication Year 2004
Edition Year 2004, Ed. 1st
Pages 207p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Radhakrishna Prakashan
Dimensions 22 X 14.5 X 2
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Sudhish Pachauri

Author: Sudhish Pachauri

सुधीश पचौरी

जन्म : 29 दिसम्‍बर, 1948; अलीगढ़ (उ.प्र.)।

शिक्षा : एम.ए. (हिन्‍दी, आगरा विश्वविद्यालय), पीएच.डी. एवं पोस्ट डॉक्टोरल शोध (हिन्‍दी, दिल्ली विश्वविद्यालय, दिल्ली)।

मार्क्सवादी समीक्षक, प्रख्यात स्तम्‍भकार, मीडिया-विशेषज्ञ। ‘भारतेन्‍दु हरिश्चन्‍द्र पुरस्कार’, ‘सुब्रह्मण्‍य भारती पुरस्‍कार ’, ‘रामचंद्र शुक्ल सम्मान’ (मध्यप्रदेश साहित्य परिषद), ‘साहित्यकार सम्मान’ (हिन्‍दी अकादमी, दिल्‍ली) आदि से सम्मानित।

प्रकाशित पुस्तकें : ‘नई कविता का वैचारिक आधार’, ‘कविता का अन्‍त’, ‘दूरदर्शन की भूमिका’, ‘दूरदर्शन : स्वायत्तता और स्वतंत्रता’ (सं.), ‘उत्तर-आधुनिकता और उत्तर-संरचनावाद’, ‘नवसाम्राज्यवाद और संस्कृति’, ‘दूरदर्शन : दशा और दिशा’, ‘नामवर के विमर्श’ (सं.), ‘दूरदर्शन : विकास से बाज़ार तक’, ‘उत्तर-आधुनिक साहित्यिक विमर्श’, ‘मीडिया और साहित्य’, ‘उत्तर-केदार’ (सं.), ‘देरिदा का विखंडन और साहित्य’, ‘साहित्य का उत्तरकांड : कला का बाज़ार’, ‘टीवी टाइम्स’, ‘इक्कीसवीं सदी का पूर्वरंग’, ‘अशोक वाजपेयी : पाठ-कुपाठ’, ‘प्रसार भारती और प्रसारण-परिदृश्य’, ‘साइबर-स्पेस और मीडिया’, ‘स्त्री देह के विमर्श’, ‘आलोचना से आगे’, ‘हिन्दुत्व और उत्तर-आधुनिकता’, ‘ब्रेक के बाद’, ‘पॉपूलर कल्चर’, ‘फासीवादी संस्कृति और सेकूलर पॉप-संस्कृति’, ‘साहित्य का उत्तर-समाजशास्त्र’, ‘विभक्ति और विखंडन’, ‘नए जनसंचार माध्यम और हिन्दी’, ‘भाषा और साहित्य’, ‘निर्मल वर्मा और उत्तर-उपनिवेशवाद’, ‘मीडिया, जनतंत्र और आतंकवाद’।

सम्‍प्रति : दिल्ली विश्वविद्यालय के हिन्‍दी विभाग के प्रोफ़ेसर श्री पचौरी को दिल्ली विश्वविद्यालय में 'डीन ऑफ़ कॉलेज' भी बनाया गया है।

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