‘सफ़र एक डोंगी में डगमग' यात्रा-वृत्तान्त के तौर पर जितनी रोमांचक है उतना ही मज़बूत इसका ऐतिहासिक और भौगोलिक पक्ष भी है।
डगमग डोंगी के साथ चलते हुए लेखक घाट-घाट के ऐतिहासिक महत्त्व के पर्दों को हमारे सामने इस तरह खोलता जाता है, जैसे कोई पुरातत्त्वविद् खुदाई कर इतिहास को हमारे सामने ला खड़ा कर देता है। यह पुस्तक उत्तर-पूर्वी भारत की बदलती भौगोलिक संरचना, संस्कृति और बोलियों को समझने में एक विशिष्ट दस्तावेज़ की तरह भी काम करती है।
दिल्ली की ‘ओखला हेड' जैसी छोटी नहर से यात्रा शुरू कर जल्द ही यमुना में हिलोरें मारती डोंगी मथुरा, आगरा, इलाहाबाद, बनारस, कानपुर और पटना होती हुई अन्ततः कोलकाता की हुगली नदी में जाकर रुकती है। लेखक को यह यात्रा पूरी करने में जहाँ बासठ दिन लगते हैं, वहीं किताब लिखने में तीस साल।
लेखक के साथ डोंगी भी अपना इतिहास लिखती हुई चलती है। इसमें नदियाँ जीते-जागते किरदारों की तरह हैं, जो कूद-कूदकर पंक्तिबद्ध आती हैं, अठखेलियाँ करती हैं और अपना नाम दर्ज कराती हुई खो जाती हैं।
'सफ़र एक डोंगी में डगमग' रोमांच, बेचैनी, उकताहट, संघर्ष, जिजीविषा, दोस्ती और ढेरों किस्सों में बँधी किताब है जो आख़िरी पन्नों तक पाठकों को बाँधे रहती है।
Language | Hindi |
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Binding | Hard Back, Paper Back |
Edition Year | 2014 |
Pages | 204p |
Translator | Not Selected |
Editor | Not Selected |
Publisher | Rajkamal Prakashan |