Rukogi Nahin Radhika

Author: Usha Priyamvada
Edition: 2023, Ed. 3rd
Language: Hindi
Publisher: Rajkamal Prakashan
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Rukogi Nahin Radhika
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यह लघु उपन्यास प्रवासी भारतीयों की मानसिकता में गहरे उतरकर बड़ी संवेदनशीलता से परत-दर-परत उनके असमंजस को पकड़ने का सार्थक प्रयास है। ऐसे लोग, जो जानते हैं कि कुछ साल विदेश में रहने पर भारत में लौटना सम्भव नहीं होता, पर यह भी जानते हैं कि सुख न वहाँ था न यहाँ है। स्वदेश में अनिश्चितता और सारहीनता का एहसास, वापसी पर परिवार के बीच होनेवाले अनुभव, जैसे मुँह में ‘कड़वा-सा स्वाद’ छोड़ देते हैं। यह अनुभव विदेश में पहले ‘कल्चरल शॉक’ और स्वदेश में लौटने पर ‘रिवर्स कल्चरल शॉक’ से गुज़रती नायिका को कुछ ऐसा महसूस करने पर बाध्य कर देता है : ‘‘मेरा परिवार, मेरा परिवेश, मेरे जीवन की अर्थहीनता, और मैं स्वयं जो होती जा रही हूँ, एक भावनाहीन पुतली-सी।’’

पर यह उपन्यास सिर्फ़ अकेली स्त्री के अनुभवों की नहीं, आधुनिक समाज में बदलते रिश्तों की प्रकृति से तालमेल न बैठा पानेवाले अनेक व्यक्तियों और सम्बन्धों की बारीकी से पड़ताल करता है। एक असामान्य पिता की सामान्य सन्तानों के साथ असहज सम्बन्धों की कथा है यह उपन्यास। ऐसे लोग जिनके पारिवारिक सीमान्तों पर बाहरी पात्रों की सहज दस्तक इन रिश्तों को ऐसे आयाम देती है, जो ठेठ आधुनिक समाज की देन हैं।

More Information
Language Hindi
Binding Hard Back, Paper Back
Publication Year 2010
Edition Year 2023, Ed. 3rd
Pages 136p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 22.5 X 14 X 1.5
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Usha Priyamvada

Author: Usha Priyamvada

उषा प्रियम्वदा

शिक्षा : इलाहाबाद विश्वविद्यालय से अंग्रेज़ी साहित्य में पीएच.डी., इंडियाना यूनिवर्सिटी, ब्लूमिंगटन, अमेरिका में तुलनात्मक साहित्य में दो वर्ष पोस्ट-डॉक्टरल शोध। अध्यापन के प्रथम तीन वर्ष दिल्ली के लेडी श्रीराम कॉलेज में, तदुपरान्त इलाहाबाद विश्वविद्यालय में दो वर्ष में सम्पन्न करके, विस्कांसिन विश्वविद्यालय मेडिसन के दक्षिण एशियाई विभाग में प्रोफ़ेसर रहीं। हिन्दी और अंग्रेज़ी, दोनों ही भाषाओं में समान रूप से दक्ष उषा प्रियम्वदा ने साहित्य सृजन के लिए हिन्दी और समीक्षा, अनुवाद और अन्य बौद्धिक क्षेत्रों के लिए अंग्रेज़ी का चयन किया।

प्रकाशित पुस्तकें : उपन्यास : ‘पचपन खम्भे लाल दीवारें’ (1961), ‘रुकोगी नहीं राधिका’ (1966), ‘शेष यात्रा’ (1984), ‘अन्तर-वंशी’ (2000), ‘भया कबीर उदास’ (2007); कहानी-संग्रह : ‘फिर बसंत आया’ (1961), ‘ज़‍िन्दगी और गुलाब के फूल’ (1961), ‘एक कोई दूसरा’ (1966), ‘कितना बड़ा झूठ’, ‘मेरी प्रिय कहानियाँ’, ‘शून्य एवं अन्य रचनाएँ’, ‘सम्पूर्ण कहानियाँ’, ‘प्रतिनिधि कहानियाँ’ (1997)।

इसके अतिरिक्त भारतीय साहित्य, लोककथा एवं मध्यकालीन भक्ति काव्य पर अनेक लेख जो अंग्रेज़ी में समय-समय पर प्रकाशित हुए। मीराबाई और सूरदास के अंग्रेज़ी अनुवाद ‘साहित्य अकादेमी’, नई दिल्ली ने पुस्तक रूप में प्रकाशित किए। उन्होंने आधुनिक हिन्दी कहानियों के भी अनुवाद किए।

इंडियन स्टडीज विभाग से संलग्न रहते हुए 1977 में उन्हें 'फुल प्रोफ़ेसर ऑफ़ इंडियन लिट्रेचर’ का पद मिला। 2002 में अवकाश लेकर अब पूरा समय लेखन, अध्ययन और बाग़वानी में बिता रही हैं।

 

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