Pachpan Khambhe Lal Deewaren

Author: Usha Priyamvada
Edition: 2023, Ed 13th
Language: Hindi
Publisher: Rajkamal Prakashan
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Pachpan Khambhe Lal Deewaren
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उषा प्रियम्वदा की गणना हिन्दी के उन कथाकारों में होती है जिन्होंने आधुनिक जीवन की ऊब, छटपटाहट, संत्रास और अकेलेपन की स्थिति को अनुभूति के स्तर पर पहचाना और व्यक्त किया है। यही कारण है कि उनकी रचनाओं में एक ओर आधुनिकता का प्रबल स्वर मिलता है तो दूसरी ओर उनमें चित्रित प्रसंगों तथा संवेदनाओं के साथ हर वर्ग का पाठक तादात्म्य का अनुभव करता है; यहाँ तक कि पुराने संस्कारवाले पाठकों को भी किसी तरह के अटपटेपन का एहसास नहीं होता।

‘पचपन खम्भे लाल दीवारें’ उषा प्रियम्वदा का पहला उपन्यास है, जिसमें एक भारतीय नारी की सामाजिक-आर्थिक विवशताओं से जन्मी मानसिक यंत्रणा का बड़ा ही मार्मिक चित्रण हुआ है।

छात्रावास के पचपन खम्भे और लाल दीवारें उन परिस्थितियों के प्रतीक हैं जिनमें रहकर सुषमा को ऊब तथा घुटन का तीखा एहसास होता है, लेकिन फिर भी वह उनसे मुक्त नहीं हो पाती, शायद होना नहीं चाहती।

उन परिस्थितियों के बीच जीना ही उसकी नियति है। आधुनिक जीवन की यह एक बड़ी विडम्बना है कि जो हम नहीं चाहते, वही करने को विवश हैं। लेखिका ने इस स्थिति को बड़े ही कलात्मक ढंग से प्रस्तुत उपन्यास में चित्रित किया है।

More Information
Language Hindi
Binding Hard Back, Paper Back
Publication Year 1962
Edition Year 2023, Ed 13th
Pages 156p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 22 X 14.5 X 1.5
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Usha Priyamvada

Author: Usha Priyamvada

उषा प्रियम्वदा

शिक्षा : इलाहाबाद विश्वविद्यालय से अंग्रेज़ी साहित्य में पीएच.डी., इंडियाना यूनिवर्सिटी, ब्लूमिंगटन, अमेरिका में तुलनात्मक साहित्य में दो वर्ष पोस्ट-डॉक्टरल शोध। अध्यापन के प्रथम तीन वर्ष दिल्ली के लेडी श्रीराम कॉलेज में, तदुपरान्त इलाहाबाद विश्वविद्यालय में दो वर्ष में सम्पन्न करके, विस्कांसिन विश्वविद्यालय मेडिसन के दक्षिण एशियाई विभाग में प्रोफ़ेसर रहीं। हिन्दी और अंग्रेज़ी, दोनों ही भाषाओं में समान रूप से दक्ष उषा प्रियम्वदा ने साहित्य सृजन के लिए हिन्दी और समीक्षा, अनुवाद और अन्य बौद्धिक क्षेत्रों के लिए अंग्रेज़ी का चयन किया।

प्रकाशित पुस्तकें : उपन्यास : ‘पचपन खम्भे लाल दीवारें’ (1961), ‘रुकोगी नहीं राधिका’ (1966), ‘शेष यात्रा’ (1984), ‘अन्तर-वंशी’ (2000), ‘भया कबीर उदास’ (2007); कहानी-संग्रह : ‘फिर बसंत आया’ (1961), ‘ज़‍िन्दगी और गुलाब के फूल’ (1961), ‘एक कोई दूसरा’ (1966), ‘कितना बड़ा झूठ’, ‘मेरी प्रिय कहानियाँ’, ‘शून्य एवं अन्य रचनाएँ’, ‘सम्पूर्ण कहानियाँ’, ‘प्रतिनिधि कहानियाँ’ (1997)।

इसके अतिरिक्त भारतीय साहित्य, लोककथा एवं मध्यकालीन भक्ति काव्य पर अनेक लेख जो अंग्रेज़ी में समय-समय पर प्रकाशित हुए। मीराबाई और सूरदास के अंग्रेज़ी अनुवाद ‘साहित्य अकादेमी’, नई दिल्ली ने पुस्तक रूप में प्रकाशित किए। उन्होंने आधुनिक हिन्दी कहानियों के भी अनुवाद किए।

इंडियन स्टडीज विभाग से संलग्न रहते हुए 1977 में उन्हें 'फुल प्रोफ़ेसर ऑफ़ इंडियन लिट्रेचर’ का पद मिला। 2002 में अवकाश लेकर अब पूरा समय लेखन, अध्ययन और बाग़वानी में बिता रही हैं।

 

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