“...हमारी मित्रमंडली ने कई दिनों अपनी उस रसप्रिया सखी का मातम मनाया था, फिर वर्षों तक मुझे उसका कोई समाचार नहीं मिला।...” वही अनसूया अपनी दारुण जीवनी की पोटली लिए लेखिका से एक दिन टकरा गई। जिन पर उसने भरोसा किया, उन्हीं विषधरों ने उसे डसकर उसके जीवन को रतिविलाप की गूँज से कैसा भर दिया था।
‘‘ ‘अचानक ही वह पगली न जाने किस गाँव से अल्मोड़ा आ गई थी,’ उस पर...उन्माद भी विचित्र था, कभी झील-सा शीतल, कभी...अग्निज्वाला-सा उग्र...’’ उद्भ्रान्त किशनुली को कारवी का ममत्वमय स्पर्श पालतू और सौम्य बना ही चला था, कि अभागी अवैध सन्तान ‘करण’ को जन्म दे बैठी। सरल, ममत्वमयी कारवी और पगली किशनुली और उसके ‘ढाँट’ करण की अद्भुत गाथा कभी हँसाती है, तो कभी रुला देती है।
वस्त्र चयन ही नहीं पुस्तक चयन में भी बेजोड़ थी कृष्णवेणी। पर दूसरों का भविष्य देख सकने की उसकी दुर्लभ क्षमता ने अनजाने ही उसका भविष्य भी कहला डाला तो? एक मार्मिक प्रेमकथा?
“मोहब्बत में खरे सोने की खाँटी लीक मैं कहाँ तक अछूती रख पाई हूँ, यह बताना मेरा काम नहीं है...यदि फिर भी किसी को यह लगे वह अलाँ है या वह फलाँ है, तो मैं कहूँगी, यह विचित्र संयोग मात्र है...।”
सम्पन्न घर में जन्म लेकर भी परित्यक्त रहा डॉ. वैदेही बरवे का बेटा। अभिशप्त किन्नर बिरादरी के सदस्य बने परित्यक्त मोहब्बत की हृदय मथ देनेवाली कहानी।
Language | Hindi |
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Binding | Hard Back, Paper Back |
Publication Year | 2006 |
Edition Year | 2018, Ed. 4th |
Pages | 147p |
Translator | Not Selected |
Editor | Not Selected |
Publisher | Radhakrishna Prakashan |
Dimensions | 21.3 X 14.2 X 1.2 |