Vatayan

Author: Shivani
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Vatayan
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'वातायन' कथाकार शिवानी की प्रतिभा का एक अलग आयाम है। दैनिक 'स्वतंत्र भारत' में प्रति सप्ताह प्रकाशित होनेवाले उनके इस स्तम्भ के लिए एक बड़ा पाठक समुदाय प्रतीक्षा किया करता था।

इन आलेखों में प्रवाहित जीवन की छवियाँ आज भी उद्वेलित करती हैं। बिना कोई पारिश्रमिक लिये हड्डी बिठानेवाला, चमचमाती मोटरों में चलनेवाले, महँगे होटलों में डिनर खानेवाले लोग और सड़कों पर एक-एक दाने को तरसते भिखारी—आज भी ये चित्र पुराने नहीं पड़े हैं।

इसके अलावा अनेक पुरानी यादें और खट्टे-मीठे अनुभव भी इन आलेखों में पिरोए गए हैं; और सबसे ध्यानाकर्षक है शिवानी जी की गहरी संवेदना और अभिव्यक्ति पर पकड़ जो उनके देखे हुए को हम तक जस की तस पहुँचा देती है।

शिवानी जी के ‘वातायन’ ने अपने समय में हिन्दी पत्रकारिता में स्तम्भ-लेखन को एक नई ऊँचाई दी थी जिससे हम आज जब पत्रकारिता और मीडिया की भाषा खासतौर पर इकहरी होती जा रही है, बहुत कुछ सीख सकते हैं।

More Information
Language Hindi
Format Hard Back, Paper Back
Publication Year 2011
Edition Year 2023, Ed. 3rd
Pages 92p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Radhakrishna Prakashan
Dimensions 22 X 14.5 X 1
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Shivani

Author: Shivani

शिवानी

जन्म : 17 अक्तूबर, 1923 को विजयादशमी के दिन राजकोट (गुजरात)।

शिवानी की पहली रचना अल्मोड़ा से निकलनेवाली ‘नटखट’ नामक एक बाल-पत्रिका में छपी थी। तब वे मात्र बारह वर्ष की थीं। इसके बाद वे मालवीय जी की सलाह पर पढ़ने के लिए अपनी बड़ी बहन जयंती तथा भाई त्रिभुवन के साथ शान्तिनिकेतन भेजी गईं, जहाँ स्कूल तथा कॉलेज की पत्रिकाओं में बांग्ला में उनकी रचनाएँ नियमित रूप से छपती रहीं। गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर उन्हें ‘गोरा’ पुकारते थे। उनकी ही सलाह कि हर लेखक को मातृभाषा में ही लेखन करना चाहिए, शिरोधार्य कर उन्होंने हिन्दी में लिखना प्रारम्भ किया। शिवानी की पहली लघु रचना ‘मैं मुर्गा हूँ’ 1951 में ‘धर्मयुग’ में छपी थी। इसके बाद आई उनकी कहानी ‘लाल हवेली’ और तब से जो लेखन-क्रम शुरू हुआ, उनके जीवन के अन्तिम दिनों तक अनवरत चलता रहा। उनकी अन्तिम दो रचनाएँ ‘सुनहुँ तात यह अकथ कहानी’ तथा ‘सोने दे’ उनके विलक्षण जीवन पर आधारित आत्मवृत्तात्मक आख्यान हैं।

1979 में शिवानी जी को ‘पद्मश्री’ से अलंकृत किया गया। उपन्यास, कहानी, व्यक्ति-चित्र, बाल उपन्यास और संस्मरणों के अतिरिक्त, लखनऊ से निकलनेवाले पत्र ‘स्वतंत्र भारत’ के लिए शिवानी ने वर्षों तक एक चर्चित स्तम्भ ‘वातायन’ भी लिखा। उनके लखनऊ स्थित आवास-66, गुलिस्ताँ कालोनी के द्वार लेखकों, कलाकारों, साहित्य-प्रेमियों के साथ समाज के हर वर्ग से जुड़े उनके पाठकों के लिए सदैव खुले रहे।

निधन : 21 मार्च, 2003 (दिल्ली)।

 

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