हिन्दी रचना-परम्परा में ऐसे कम ही लेखक हुए हैं जो साहित्यिक तथा रचनात्मक मूल्यों की स्थापना तथा रक्षा करते हुए जनसाधारण की दैनंदिन रुचि का हिस्सा बनने में भी सफल हुए। विभिन्न कारणों से गम्भीर और लोकप्रिय की जो धाराएँ हिन्दी समाज में समानान्तर बहती रही हैं, कम ही लेखक उनके ऊपर पुल बाँध पाए; और जो ऐसा कर सके उनमें अग्रणी नाम है—गौरा—पन्त ‘शिवानी’।
साहित्य-जगत में केवल शिवानी के नाम से ख्यात इस लेखिका ने अपनी कहानियों को एक ऐसे दरवाज़े की तरह खड़ा किया जिसमें प्रवेश का आकर्षण साधारण मध्यवर्गीय पाठकों को अन्ततः साहित्य के दुर्गम प्रदेशों तक ले गया। उन्होंने अपनी लेखनी के बल पर पाठकों को साहित्य की सत्ता के प्रति उन्मुख और उत्सुक किया।
भारतीयता यानी भारत के सांस्कृतिक-सामाजिक बिम्बों के वाहक मध्यवर्गीय हिन्दी समाज के भीतरी प्रश्नों, अकुलाहटों, आकांक्षाओं और आशा-निराशाओं को शिवानी ने अपनी कहानियों के कलेवर में इस तरह साधा कि तत्कालीन समाज उसमें अपना पूरा-पूरा अक्स देख पाया।
शिवानी की कथा-प्रतिभा को इसलिए भी एक संस्था की तरह देखा जा सकता है कि उन्होंने साहित्य में मन-रंजन के तत्त्व को एक ऊर्ध्वमुखी तथा नवोन्मेषकारी व्यस्तता के सूप में स्थापित किया, और अपने रचनात्मक उद्यम से इस अन्धविश्वास को आधारहीन कर दिया कि मनोरंजक साहित्य समाज का नैतिक और वैचारिक उत्थान नहीं कर सकता।
इस पुस्तक के दो खंडों में संकलित शिवानी का सम्पूर्ण कथा-संसार पाठकों को पात्रों, स्थितियों, स्वप्नों, संघर्षों, विडम्बनाओं और प्रसन्नताओं की ऐसी विराट और लगभग अनन्त दुनिया से परिचित कराएगा जिसमें हमारी आज की ज़िन्दगी के विस्तार भी दिखाई देते हैं।
इस खंड में 37 कहानियाँ संकलित हैं जिनमें उनकी ‘लाल हवेली', ‘विप्रलब्धा’ और ‘अपराधी कौन’ जैसी चर्चित रचनाएँ शामिल हैं।
Language | Hindi |
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Binding | Hard Back, Paper Back |
Publication Year | 2013 |
Edition Year | 2024, Ed. 5th |
Pages | 862p |
Translator | Not Selected |
Editor | Mrinal Pande |
Publisher | Radhakrishna Prakashan |
Dimensions | 22.3 X 14.3 X 7.3 |