भाषा, विचार, साहित्य, दर्शन, संस्कृति, इतिहास और समाजशास्त्र समेत मानव, उसके वर्तमान और भविष्य को लक्षित आलोचना के विराट व्यक्तित्व रामविलास शर्मा का लेखन न केवल परिमाण में विपुल है, बल्कि चिन्तन की लगभग सभी सम्भव दिशाओं में मौलिक दृष्टि तथा गहन अध्ययन से प्रसूत पथ-निर्देशक अवधारणाओं का विशाल आगार है।
उनको पढ़ना हिन्दी मेधा के शिखर से गुजरना है। साहित्य-रचना के मर्म तक पहुँचने के लिए उनकी आलोचकीय जिज्ञासा रस, लय, शब्द-संयोजन आदि की पड़ताल करते हुए भाषा-विज्ञान, भाषा-इतिहास और दर्शनशास्त्र तक पहुँची। मार्क्सवादी विश्व-दृष्टि उनके चिन्तन और विवेचन की अविचल आधारभूमि रही, लेकिन उसे भी उन्होंने अपनी सीमा नहीं बनने दिया।
आलोचना-समीक्षा करते समय उन्होंने सिद्धान्तों या प्रतिमानों को विशेष महत्त्व नहीं दिया। उनके अनुसार, 'प्रतिमान आलोचना की अग्रभूमि में स्थित नहीं हैं। प्रत्येक रचना अपना प्रतिमान गढ़ती है; आलोचक उसका अन्वेषण करते हुए रचनाकार की विश्व-दृष्टि, उसकी परिस्थिति, परिवेश और यथार्थ-चित्रण का मूल्यांकन करता है।'
यह डॉ. रामविलास शर्मा के सम्पूर्ण आलोचनात्मक लेखन की प्रस्तुति है, जिसकी प्रतीक्षा हिन्दी संसार को लम्बे समय से थी। गत कई वर्षों के अथक परिश्रम के फलस्वरूप तैयार अठारह खंडों की इस रचनावली में रामविलास जी के विचारपरक लेखन को सुचिन्तित क्रम से संकलित किया गया है।
रचनावली के इस पहले खंड में रामविलास जी के अवदान पर केन्द्रित डॉ. कृष्णदत्त शर्मा की विस्तृत प्रस्तावना के अलावा रामविलास जी की ‘प्रेमचन्द’ तथा ‘प्रेमचन्द और उनका युग’ पुस्तकों को शामिल किया गया है। रामविलास जी का मानना था कि, ‘प्रेमचन्द की आवाज भारत की अजेय जनता की आवाज है, इसीलिए प्रेमचन्द आज भी हमारे साथ हैं।’ इन पुस्तकों में उन्होंने प्रेमचन्द के व्यक्ति तथा कथाकार, दोनों पर दृष्टिपात किया है।
Language | Hindi |
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Binding | Hard Back, Paper Back |
Publication Year | 2022 |
Edition Year | 2022, Ed. 1st |
Pages | 9204p |
Translator | Not Selected |
Editor | Vijay Mohan Sharma |
Publisher | Rajkamal Prakashan |
Dimensions | 22 X 14 X 14 |