डॉ. रामविलास शर्मा ने इस महत्त्वपूर्ण कृति में यह स्पष्ट किया है कि ‘नयी कविता’ के विकास की क्या प्रक्रिया रही तथा अस्तित्ववादी भावबोध ने इसे किस प्रकार और किस हद तक प्रभावित किया है। ‘तार सप्तक’ के पहले और बाद की नयी कविता की विषयवस्तु और इसके स्वरूप का विवेचन करते हुए इसमें इसकी अन्तर्वर्ती धाराओं का भी परिचय दिया गया है, साथ ही तत्त्ववाद की मूल दार्शनिक मान्यताओं की रोशनी में लेखक ने यह सिद्ध करने का प्रयास किया है कि ‘हिन्दी में अस्तित्ववाद एक अराजकतावादी धारा है’, तथा अस्तित्ववादी कवियों ने प्रायः ‘समस्त इतिहास की व्यर्थता’ सिद्ध करते हुए ‘पूँजीवादी दृष्टिकोण से यथार्थ को देखा और परखा’ है। इसी क्रम में उनका यह सन्तोष ज़ाहिर करना भी महत्त्व रखता है कि ‘हिन्दी में पिछले बीस साल में बहुत-सी कविता अस्तित्ववाद से अलग हटकर हुई है।’
नयी कविता के मुख्य स्वरों को प्रस्तुत ग्रन्थ में बड़ी प्रामाणिकता और ईमानदारी के साथ रेखांकित किया गया है तथा अज्ञेय, शमशेर, मुक्तिबोध और नागार्जुन जैसे प्रमुख कवियों के लिए अलग-अलग अध्याय देकर उनके कृतित्व का पैना विश्लेषण किया है। ‘मुक्तिबोध का पुनर्मूल्यांकन’ शीर्षक विस्तृत लेख मुक्तिबोध को ज़्यादा तर्कसंगत दृष्टि से प्रस्तुत करता है। साथ ही इस नये संस्करण में पहली बार शामिल एक और महत्त्वपूर्ण लेख ‘कविता में यथार्थवाद और नयी कविता’ हिन्दी कविता की यथार्थवादी धारा को फिर से पहचानने का आग्रह करता है, जिसमें नागार्जुन और केदारनाथ अग्रवाल की कविता पर विस्तार से विचार किया गया है।
Language | Hindi |
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Binding | Hard Back |
Publication Year | 1978 |
Edition Year | 2022, Ed. 11th |
Pages | 269P |
Translator | Not Selected |
Editor | Not Selected |
Publisher | Rajkamal Prakashan |
Dimensions | 22 X 14.2 X 2.2 |