पाश्चात्य और भारतीय सभ्यता-संस्कारों के बीच पुल बनाता, एक संवेदनशील तथा शालीन मुस्लिम परिवार का मार्मिक दस्तावेज़। लेखक ने वर्तमान के माध्यम से अतीत के कथाचित्र का सजीव चित्रण किया है और साहित्य की एक सशक्त प्रविधि 'फैंटेसी' का बख़ूबी प्रयोग करते हुए उपन्यास को एक नए सौन्दर्यशास्त्र से सृजित किया है।
उपन्यास में एक निम्न मध्यवर्गीय लेकिन कर्मशील मुस्लिम परिवार की कई पीढ़ियों की जीवनगाथा का रोचक ब्योरा प्रस्तुत किया गया है। उनकी संस्कृति व सामाजिक सरोकारों के साथ-साथ यह उपन्यास ग्रामीण जीवन की गहनता, प्रकृति प्रेम, खेत-खलिहानों के दृश्यों का भी सफ़र करता है। भारतीयता की जड़ें कितनी सशक्त, गहरी और शाश्वत हैं और उनका प्रभाव कितना दूरगामी है, यह उपन्यास इस सच्चाई को स्थापित करता है। पाश्चात्य संस्कृति में पले बच्चे जिन्हें देशी रहन-सहन, खानपान, भाषा और अपनी दुर्व्यवस्था से अजीब-सा परहेज़ था, उनका सहज रूपान्तरण एक ख़ूबसूरत प्रक्रिया है।
लेखक ने नए और पुराने जीवन और समाज को बिना किसी टकराहट के एक शृंखला में बाँधने और सामंजस्य बनाने का एक सार्थक और अनिवार्य कार्य किया है जो आज के समय की आवश्यकता भी है।
इस उपन्यास में आज की कम्प्यूटर, मैसेज, ई-मेल की इलेक्ट्रॉनिक दुनिया और तेज़ रफ़्तार भौतिक जीवन के बीच सम्बन्धों, रिश्तों और संवेदनाओं को कैसे जीवित रखा जा सकता है, इन पहलुओं को भी सरल भाषा में सँजोया गया है। भाषा की रवानगी कृति की पठनीयता को बढ़ाती है और पाठक के अन्तर्मन से एक रिश्ता भी बनाती है।
Language | Hindi |
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Binding | Hard Back |
Translator | Not Selected |
Editor | Not Selected |
Publication Year | 2010 |
Edition Year | 2010, Ed. 1st |
Pages | 143p |
Publisher | Rajkamal Prakashan |
Dimensions | 22.5 X 14.5 X 1 |