Pathar Ke Neeche Dabe Hue Hath

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Pathar Ke Neeche Dabe Hue Hath
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राजकमल चौधरी की कहानियाँ परमाणु में पर्वत के समावेश की कहानियाँ हैं, जो मानव-जीवन के अनछुए प्रसंगों से उठाकर लाई गई हैं, जिनमें राजकमल की सारी की सारी कहानी-कला मौजूद है और लगता ऐसा है कि इनमें कोई कला नहीं दिखाई गई है। जनजीवन का सत्य ज्यों का त्यों रख दिया गया है। सच्ची घटनाएँ तो अख़बारी रिपोर्टों में बयान होती हैं, कहानी में घटनाएँ सच की तरह आती हैं। घटनाएँ सच हों, इससे ज़्यादा ज़रूरी है कि वे सच लगें भी। राजकमल की कहानियों की यह ख़ास विशेषता है कि वे सारी घटनाएँ सच हों या न हों, सच लगती अवश्य हैं।

धर्म, साहित्य, नौकरी, व्यापार, फ़िल्म, सामाजिक जीवन-यापन...तमाम क्षेत्रों की विकृतियों का इतनी सूक्ष्मता से यहाँ पर्दाफ़ाश किया गया है कि वे अचानक तार-तार हो जाती हैं। छोटे-छोटे स्वार्थों की पूर्ति, क्षणिक मनोवेगों की पुष्टि के लिए मनुष्य किस सीमा तक गिर सकता है; संन्यासी और सिद्ध योगी और यहाँ तक कि देवता की छवि रखनेवाला भी पल-भर में कैसा जानवर हो जाता है; ख़ूँख़ार जानवर कैसा गऊ हो जाता है; शेर की दहाड़ और आतंक का मालिक पल-भर में कैसे गीदड़, चूहा, केंचुआ, चींटी हो जाता है और रेंगने लगता है—मानव-जीवन की इसी उठा-पटक का एलबम है—राजकमल की कहानियाँ।

 

More Information
Language Hindi
Format Hard Back
Publication Year 2002
Edition Year 2023, Ed. 2nd
Pages 228p
Translator Not Selected
Editor Dev Shankar Naveen
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 22 X 14.5 X 2
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Rajkamal Chaudhary

Author: Rajkamal Chaudhary

राजकमल चौधरी

जन्म : 13 दिसम्बर, 1929 को अपने ननिहाल रामपुर हवेली में। पितृग्राम महिषी (सहरसा, बिहार)।

शिक्षा : इंटरमीडिएट आर्ट्स में नामांकन, किन्तु उसे छोड़कर भागलपुर आकर इंटरमीडिएट कॉमर्स में प्रवेश। मारवाड़ी कॉलेज, भागलपुर से 1955 में आई.कॉम.। 1953 में गया कॉलेज से बी.कॉम। लेखन की शुरुआत भागलपुर से ही हो गई थी। शिक्षा पूरी करने के बाद अधिकतर कलकत्ता में रहे।

प्रकाशित कृतियाँ : हिन्दी में—‘अग्निस्नान’, ‘शहर था शहर नहीं था’, ‘नदी बहती थी’, ‘ताश के पत्तों का शहर’, ‘मछली मरी हुई’ (उपन्यास); ‘बीस रानियों के बाइस्कोप’, ‘एक अनार : एक बीमार’ (लघु उपन्यास); ‘मुक्ति-प्रसंग’, ‘कंकावती’, ‘इस अकाल वेला में’, ‘स्वरगन्धा’, ‘ऑडिट रिपोर्ट’, ‘विचित्रा’ (कविता-संग्रह); ‘मछली जाल’, ‘सामुद्रिक एवं अन्य कहानियाँ’ (कहानी-संग्रह)।

मैथिली में—‘आदिकथा’, ‘पाथर फूल’, ‘आन्दोलन’ (उपन्यास); ‘स्वरगन्धा’, ‘कविता राजकमलक’ (कविता-संग्रह); ‘एकटा चंपाकली विषधर’, ‘कृति राजकमलक’ (कहानी-संग्रह)।

अनूदित कृतियाँ—मूल बांग्ला से शंकर के उपन्यास ‘चौरंगी’ और वाणी राय के उपन्यास ‘चोखे आमार तृष्णा’ का हिन्दी अनुवाद।

हिन्दी और मैथिली की कई पत्रिकाओं का सम्पादन किया। अन्तिम वर्षों में पूरी तरह स्वतंत्र लेखन।

राजकमल चौधरी रचनावली (खंड) में समग्र रचनाकर्म संकलित।

19 जून, 1967 को पटना के अस्पताल में लम्बी बीमारी के बाद निधन।

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