प्रस्तुत संकलन की कहानियाँ रोटी, सेक्स एवं सुरक्षा के जटिल व्याकरण से जूझते आम जनजीवन की त्रासदी की कथा कहती हैं। राजकमल की मैथिली कहानियों के पात्र जहाँ सामाजिक मान्यताओं के व्यूह में फँसकर भी अपनी परम्पराओं के मानदंड में परहेज़ से रहते हैं, वहाँ इनकी हिन्दी कहानियों के पात्र महानगरीय जीवन के कशमकश में टूट-बिखर जाते हैं। यौन-विकृतियाँ इनकी मैथिली एवं हिन्दी—दोनों भाषाओं की कहानियों का प्रमुख विषय है और दोनों जगह यह अर्थतंत्र द्वारा ही संचालित होती हैं। ये कहानियाँ कहानीकार की गहन जीवनानुभूति और तीक्ष्णतम अभिव्यक्ति का सबूत पेश करती हैं। राजकमल की कहानियाँ न केवल विषय के स्तर पर, बल्कि भाषा एवं शिल्प की अन्यान्य प्रविधियों के स्तर पर भी एक चुनौती है जो कई मायने में सराहनीय भी है और ग्रहणीय भी। इनकी कहानियों का सबसे बड़ा सच है कि जहाँ इनकी कहानी ख़त्म होती है, उसकी असली शुरुआत वहीं से होती है।
Language | Hindi |
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Binding | Hard Back, Paper Back |
Publication Year | 1995 |
Edition Year | 2024, Ed. 5th |
Pages | 163p |
Translator | Not Selected |
Editor | Dev Shankar Naveen |
Publisher | Rajkamal Prakashan |
Dimensions | 19 X 12.5 X 1.5 |