Machhali Mari Hui

Edition: 2023, Ed. 9th
Language: Hindi
Publisher: Rajkamal Prakashan
As low as ₹225.00 Regular Price ₹250.00
10% Off
In stock
SKU
Machhali Mari Hui
- +
Share:

हिन्दी के प्रख्यात रचनाकार राजकमल चौधरी की बहुचर्चित-बहुप्रशंसित कृति है ‘मछली मरी हुई’। लेखक ने अपनी इस महत्त्वाकांक्षी कृति में जहाँ महानगर कलकत्ता के उद्योग जगत की प्रामाणिक और सजीव तस्वीर प्रस्तुत की है, वहीं आनुषंगिक विषय के रूप में समलैंगिक स्त्रियों के रति-आचरण का भी इस उपन्यास में सजीव चित्रण किया है। इसमें ठनकती हुई शब्दावली और मछली के प्रतीक का ऐसा सर्जनात्मक प्रयोग किया गया है कि समलैंगिक रति-व्यापार तनिक भी फूहड़ नहीं हुआ है। इन पात्रों को लेखक की करुणा सर्वत्र सींचती रहती है।

उपन्यास का प्रमुख पात्र निर्मल पद्मावत हिन्दी उपन्यास साहित्य का अविस्मरणीय चरित्र है। हिंस्र पशुता और संवेदनशीलता का, आक्रामकता और उदासी का, सजगता और अजनबीपन का, शक्ति और दुर्बलता का ऐसा दुर्लभ मिश्रण हिन्दी के शायद ही किसी उपन्यास में मिलेगा।

‘मछली मरी हुई’ के अधिकांश पात्र मानसिक विकृतियों के शिकार हैं, पर उपन्यासकार ने उनके कारणों की तरफ़ संकेत कर अपनी सामाजिक प्रतिबद्धता का परिचय दिया है। यह प्रतिबद्धता उद्योगपतियों के व्यावसायिक षड्यंत्र, भ्रष्ट आचरण आदि की विवेकपूर्ण आलोचना के रूप में भी दिखाई देती है। इस उपन्यास के केन्द्रीय पात्र निर्मल पद्मावत की कर्मठता, मज़दूरों के प्रति उदार दृष्टिकोण, छद्म आचरण के प्रति घृणा, किसी भी हालत में रिश्वत न देने की दृढ़ता, ऊपर से हिंस्र जानवर जैसा दिखने पर भी अपनी माँ, पत्नी और अन्य स्त्रियों के प्रति गहरी संवेदनशीलता—ये सारी बातें उपन्यासकार के गहरे नैतिकता-बोध के प्रमाण हैं।

More Information
Language Hindi
Binding Hard Back, Paper Back
Publication Year 1966
Edition Year 2023, Ed. 9th
Pages 172p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 22.5 X 14.5 X 1.5
Write Your Own Review
You're reviewing:Machhali Mari Hui
Your Rating
Rajkamal Chaudhary

Author: Rajkamal Chaudhary

राजकमल चौधरी

जन्म : 13 दिसम्बर, 1929 को अपने ननिहाल रामपुर हवेली में। पितृग्राम महिषी (सहरसा, बिहार)।

शिक्षा : इंटरमीडिएट आर्ट्स में नामांकन, किन्तु उसे छोड़कर भागलपुर आकर इंटरमीडिएट कॉमर्स में प्रवेश। मारवाड़ी कॉलेज, भागलपुर से 1955 में आई.कॉम.। 1953 में गया कॉलेज से बी.कॉम। लेखन की शुरुआत भागलपुर से ही हो गई थी। शिक्षा पूरी करने के बाद अधिकतर कलकत्ता में रहे।

प्रकाशित कृतियाँ : हिन्दी में—‘अग्निस्नान’, ‘शहर था शहर नहीं था’, ‘नदी बहती थी’, ‘ताश के पत्तों का शहर’, ‘मछली मरी हुई’ (उपन्यास); ‘बीस रानियों के बाइस्कोप’, ‘एक अनार : एक बीमार’ (लघु उपन्यास); ‘मुक्ति-प्रसंग’, ‘कंकावती’, ‘इस अकाल वेला में’, ‘स्वरगन्धा’, ‘ऑडिट रिपोर्ट’, ‘विचित्रा’ (कविता-संग्रह); ‘मछली जाल’, ‘सामुद्रिक एवं अन्य कहानियाँ’ (कहानी-संग्रह)।

मैथिली में—‘आदिकथा’, ‘पाथर फूल’, ‘आन्दोलन’ (उपन्यास); ‘स्वरगन्धा’, ‘कविता राजकमलक’ (कविता-संग्रह); ‘एकटा चंपाकली विषधर’, ‘कृति राजकमलक’ (कहानी-संग्रह)।

अनूदित कृतियाँ—मूल बांग्ला से शंकर के उपन्यास ‘चौरंगी’ और वाणी राय के उपन्यास ‘चोखे आमार तृष्णा’ का हिन्दी अनुवाद।

हिन्दी और मैथिली की कई पत्रिकाओं का सम्पादन किया। अन्तिम वर्षों में पूरी तरह स्वतंत्र लेखन।

राजकमल चौधरी रचनावली (खंड) में समग्र रचनाकर्म संकलित।

19 जून, 1967 को पटना के अस्पताल में लम्बी बीमारी के बाद निधन।

Read More
Books by this Author
New Releases
Back to Top