Oak Mein Boonden

Author: ZABIR HUSSAIN
Edition: 2018, Ed. 1st
Language: Hindi
Publisher: Rajkamal Prakashan
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Oak Mein Boonden
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जाबिर हुसेन की कथा डायरियाँ अपने समय की बेरहमी से रू-ब-रू कराती हैं। सच्चाई की परतें खोलती हैं। उसी प्रकार, उनकी कविताएँ भी समाज की विसंगतियों से तकरार करती हैं। वो अपने कथ्य, लहज़े और डिक्शन से पाठकों को सम्मोहित करने की कोशिश नहीं करते।

उनकी तहरीरों में वर्तमान समय अपनी बारीकियों के साथ उभरता है। लेकिन, वो इसे किसी कटुता के दबाव से गम्भीर नहीं बनाते। सहजता उनकी कविताओं की वास्तविक पहचान है।

‘ओक की बूँदें’ उनका चौथा काव्य-संग्रह है। एक प्रकार से, यह संग्रह हाल ही में प्रकाशित उनकी काव्य-पुस्तक ‘कातर आँखों ने देखा’ का सृजनात्मक विस्तार है।

जाबिर हुसेन कविताओं में अपने दीर्घ सामाजिक सरोकारों के प्रति सम्मान का जो सूक्ष्म और मर्मस्पर्शी अहसास भरते हैं, वो बेहद अनोखा है। वर्तमान संग्रह की कविताएँ इस कथन पर मुहर लगाती हैं।

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Language Hindi
Binding Hard Back
Publication Year 2018
Edition Year 2018, Ed. 1st
Pages 144p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
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ZABIR HUSSAIN

Author: ZABIR HUSSAIN

जाबिर हुसेन

अंग्रेज़ी भाषा एवं साहित्य के प्राध्यापक रहे। जेपी तहरीक में बेहद सक्रिय भूमिका निभाई। 1977 में मुंगेर से बिहार विधान सभा के लिए चुने गए। काबीना मंत्री बने। बिहार अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष रहे।
बिहार विधान परिषद् के सभापति रहे। राज्य सभा के सदस्य रहे।
हिन्दी-उर्दू में दो दर्जन से ज़्यादा किताबें प्रकाशित। उर्दू-फ़ारसी की लगभग 50 पांडुलिपियों का सम्पादन। उर्दू-हिन्दी की कई पत्रिकाओं का सम्पादन।

प्रमुख कृतियाँ : ‘रेत से आगे’, ‘चाक पर रेत’, ‘ये शहर लगै मोहे बन’ (हिन्दी-उर्दू), ‘डोला बीबी का मज़ार’, ‘रेत पर खेमा’, ‘ज़िन्दा होने का सबूत’, ‘लोगाँ, जो आगे हैं’, ‘अतीत का चेहरा’, ‘आलोम लाजावा’, ‘ध्वनिमत काफी नहीं’, ‘दो चेहरों वाली एक नदी’ (गद्य); कविता—‘कातर आँखों ने देखा’, ‘रेत-रेत लहू’, ‘एक नदी रेत भरी’, ‘उर्दू—अंगारे और हथेलियाँ’, ‘सुन ऐ कातिब’, ‘बे-अमां’, ‘बिहार की पसमांदा मुस्लिम आबादियाँ’।

सम्पादन : छह जिल्दों में बहार हुसेनाबादी का सम्पूर्ण साहित्य, ‘मेरा सफ़र तवील है’ : अखतर पयामी, ‘दीवारे शब’, ‘दयारे शब’, ‘हिसारे शब’, ‘निगारे शब’ (उर्दूनामा के अंक)।

सम्मान : 2005 में उर्दू कथा-डायरी ‘रेत पर खेमा’ के लिए ‘साहित्य अकादेमी पुरस्कार’। 2012 में नवें विश्व हिन्दी सम्मेलन (जोहान्सबर्ग, दक्षिण अफ़्रीका) में ‘विश्व हिन्दी सम्मान’।

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