Zinda Hone ka Sabut

Author: Jabir Husain
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Zinda Hone ka Sabut
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लोग कहते हैं, ‘सूरज को अँधेरी खाई में गिरते देखना अशुभ है।’ ‘अँधेरी खाई में कहाँ गिरता है सूरज। वह तो बस एक करवट लेकर हरे–भरे खेतों में उगी फ़सलों के बीच छिप जाता है, कुछ घंटों के बाद दोबारा अपना सफ़र शुरू करने के लिए। एक बार, आसमान पर छाये बादलों के एक आवारा टुकड़े ने खेतों की गोद में गिरते सूरज को पूरी तरह अपनी मुट्ठियों में बन्द कर लिया था। हम

दोनों कुछ लम्हों के लिए काँप गए थे। हमारे शहर का सूरज डूबने के पहले ही काले धब्बों की ओट में छिप गया था। मुझे नहीं मालूम, उस दिन और क्या हुआ था, पर मेरी और तुम्हारी आँखों ने कुछ लम्हों के बाद ही देखा कि सूरज आवारा बादलों की मुट्ठी से निकलकर दोबारा आसमान और ज़मीन जहाँ मिलते हैं, वहाँ दूर–दूर तक फैल गया और इसकी लाल–सुर्ख किरणों ने पूरे क्षितिज को अपने विशाल दायरे में समेट लिया।

जिन पाठकों ने जाबिर हुसेन की पिछली डायरियाँ पढ़ी हैं, उन्हें इस संकलन का नया कथा–शिल्प ज़रूर पसन्द आएगा।

More Information
Language Hindi
Format Hard Back
Publication Year 2013
Edition Year 2013, Ed. 1st
Pages 151p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 22 X 14 X 1.5
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Author: Jabir Husain

जाबिर हुसेन

अंग्रेज़ी भाषा एवं साहित्य के प्राध्यापक रहे। जेपी तहरीक में बेहद सक्रिय भूमिका निभाई। 1977 में मुंगेर से बिहार विधान सभा के लिए चुने गए। काबीना मंत्री बने। बिहार अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष रहे।

बिहार विधान परिषद् के सभापति रहे। राज्य सभा के सदस्य रहे।

हिन्दी-उर्दू में दो दर्जन से ज़्यादा किताबें प्रकाशित। उर्दू-फ़ारसी की लगभग 50 पांडुलिपियों का सम्पादन। उर्दू-हिन्दी की कई पत्रिकाओं का सम्पादन।

प्रमुख कृतियाँ : ‘रेत से आगे’, ‘चाक पर रेत’, ‘ये शहर लगै मोहे बन’ (हिन्दी-उर्दू), ‘डोला बीबी का मज़ार’, ‘रेत पर खेमा’, ‘ज़िन्दा होने का सबूत’, ‘लोगाँ, जो आगे हैं’, ‘अतीत का चेहरा’, ‘आलोम लाजावा’, ‘ध्वनिमत काफी नहीं’, ‘दो चेहरों वाली एक नदी’ (गद्य); कविता—‘कातर आँखों ने देखा’, ‘रेत-रेत लहू’, ‘एक नदी रेत भरी’, ‘उर्दू—अंगारे और हथेलियाँ’, ‘सुन ऐ कातिब’, ‘बे-अमां’, ‘बिहार की पसमांदा मुस्लिम आबादियाँ’।

सम्पादन : छह जिल्दों में बहार हुसेनाबादी का सम्पूर्ण साहित्य, ‘मेरा सफ़र तवील है’ : अखतर पयामी, ‘दीवारे शब’, ‘दयारे शब’, ‘हिसारे शब’, ‘निगारे शब’ (उर्दूनामा के अंक)।

सम्मान : 2005 में उर्दू कथा-डायरी ‘रेत पर खेमा’ के लिए ‘साहित्य अकादेमी पुरस्कार’। 2012 में नवें विश्व हिन्दी सम्मेलन (जोहान्सबर्ग, दक्षिण अफ़्रीका) में ‘विश्व हिन्दी सम्मान’।

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