Kavita Ke Prasthan

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Kavita Ke Prasthan
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‘कविता के प्रस्थान’ को आधुनिक हिन्दी की कविता की सम्पूर्ण पड़ताल कहा जा सकता है। एक गम्भीर और सजग शोध जिसका उद्देश्य सिर्फ़ इतिहास-क्रम प्रस्तुत करना नहीं, बल्कि कविता के इतिहास के वैचारिक प्रस्थान-बिन्दुओं और पड़ावों को रेखांकित करना भी है। बल्कि वही ज़्यादा है।

आधुनिक हिन्दी के आरम्भिक विकास और उसमें कविता की उपस्थिति को विभिन्न रचनाओं, कृतियों और विचार-सरणियों के सोदाहरण विवेचन से लेकर उसके बाद 'कविता क्या है’ इस पूरी बहस का विस्तृत परिचय देते हुए पुस्तक वर्तमान कविता तक पहुँचती है। हिन्दी कविता के इस बृहत् वृत्तान्त में कविता और उसके साथ-साथ चल रही आलोचना, दोनों का सर्वांग परिचय हमें मिलता है। साथ ही उन तमाम विवादों और प्रयोगों का भी जो हिन्दी काव्येतिहास में कभी दिलचस्प और कभी निर्णायक मोड़ रहे हैं। 'प्रतिमानों की राजनीति’ और 'काव्यशास्त्रीय प्रस्थान-बिन्दु’ शीर्षक आलेख इस लिहाज़ से ख़ास तौर पर पठनीय हैं।

आलोचना को जो चीज़ सबसे ज़्यादा मदद पहुँचाती है, वह रचना ही है, लेखक की इस मूल धारणा के चलते यह आलोचना-पुस्तक अध्येताओं के लिए जितनी उपयोगी होगी, उससे ज़्यादा विचारोत्तेजक होगी। उनका मानना है कि आलोचना को कोई काव्यशास्त्र पहले से प्राप्त नहीं होता, अपना शास्त्र उसे ख़ुद गढ़ना पड़ता है और उसी तरह सदैव रचनारत रहना होता है जैसे अपने वृत्त में कविता ख़ुद रहती है।

व्यवस्थित अध्ययन और सन्दर्भ सामग्री के विपुल प्रयोग के कारण हिन्दी कविता के विद्यार्थियों के लिए यह पुस्तक विशेष रूप में उपादेय साबित होगी।

More Information
Language Hindi
Format Hard Back
Publication Year 2016
Edition Year 2016, Ed 1st
Pages 196p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
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Sudhir Ranjan Singh

Author: Sudhir Ranjan Singh

सुधीर रंजन सिंह 

जन्म : 28 अक्टूबर, 1960

कविता-संग्रह : ‘और कुछ नहीं तो’ और ‘मोक्षधरा’। 

काव्य-अनुरचना : ‘भर्तृहरि : कविता का पारस पत्थर’। 

आलोचना : ‘हिन्दी समुदाय और राष्ट्रवाद’, ‘कविता के प्रस्थान’ और ‘कविता की समझ’। 

वृत्तान्त : ‘भारिया : पातालकोट का जीवन-छन्द’।

सम्पादन : ‘अद्यतन हिन्दी आलोचना’ और आर.पी. नरोन्हा की पुस्तक ‘अ टेल टोल्ड बाई एन इडियट’ का हिन्दी अनुवाद ‘एक अनाड़ी की कही कहानी’।

ई-मेल : singhranjansudhir@gmial.com

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