हाल के दशकों में जिन कवियों ने अपनी प्रतिभा और काव्य-व्यवहार से सर्वाधिक चकित और विस्मित किया है, उनमें सुधीर रंजन सिंह अग्रणी हैं। हिन्दी कविता के लगभग एकरस हो रहे स्वर को सुधीर ने अपनी कविताओं से न केवल भंग किया बल्कि उसे अनेक रंगों, रसों, ध्वनियों से सघन और संकुल किया। नितान्त अछूते, अनाघ्रात विषयों को कविता के कक्ष में आबद्ध करते हुए सुधीर रंजन ने कहन और प्रस्तुति की नई प्रविधि विकसित की जिसके अगले संस्करण के तौर पर इस नए संग्रह को देखा और परखा जा सकता है। कविता के ब्रह्मांड में व्यतीत ये परिवर्तन इतने सूक्ष्म एवं तरंगरूप हैं कि ज़रा-सी असावधानी पाठक को इस सम्पूर्ण ऐश्वर्य से वंचित कर सकती है। प्रस्तुत संग्रह 'शायद’ भी इसी सावधानी की माँग करता है, क्योंकि कई स्तरों पर यहाँ पारम्परिक सौन्दर्य-बोध विखंडित एवं निरस्त होता है :
गिद्ध आँखों से देखें तो
मुरदा होना सबसे सुन्दर होना है
इसीलिए यह पूरी कविता-पुस्तक जीवन का जयघोष है। अनेकानेक व्यक्तियों, चरित्रों, प्रसंगों, अनुभूतियों से समृद्ध यह संग्रह भाषा को भी नई भंगिमा से बरतता और अन्वेषित करता है। इसका एक उदाहरण ‘बैठना क्रिया से अभिप्राय’ कविता है जो सीधे-सीधे एक क्रिया का फलित पाठ है—सात अलग-अलग स्थितियों में, जो मिलकर सम्पूर्ण जीवन-पक्ष रचती हैं और एक गहरे राजनीतिक आशय से सारगर्भित होती हैं। 'धूप से पीठ टिकाए’ जैसे अनेक स्थल हैं जो हमें रोक लेते हैं। ऐसा अमूर्तन पहले नहीं मिलता। सुधीर के यहाँ होनेवाले ये भाषिक 'विचलन’ एक सर्वथा नए जीवन-बोध से उद्धृत हैं जिसका एक अप्रतिम उदाहरण है 'धन्य’ शीर्षक कविता जो पुन: अपने अन्दरूनी आशय में राजनीतिक है पर ऊपर से ऐसा भास नहीं होता। यही कारण है कि ये कविताएँ गम्भीर पाठ की अपेक्षा करती हैं।
सुधीर ने कुछ नए चरित्र भी रचे हैं। इनमें विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं 'सड़क किनारे के मैकेनिक’, 'दर्जी’, 'सोनाराम लोहार’ और 'गायें’। यहाँ गायें भी चरित्र की तरह हैं। बेहद मार्मिक। सुधीर शायद पहली बार कविता की खोजबत्ती को अन्दर की तरफ़ घुमाते हैं जिसका परिणाम है 'आत्मस्वीकृति’ जैसी विलक्षण कविता। 'बिना किसी ग़लती और भूल के मैं कोई काम नहीं कर सकता था।’ इसी आभ्यन्तरीकरण का शायद यह देय हो कि कवि ने मृत्यु एवं अन्त के आभास को लेकर कुछ गहरी कविताएँ लिखी हैं। सुधीर की कविताओं में सान्द्रता एवं बौद्धिक त्वरा बढ़ी है। जीवन के सन्धान, भाषा के आकस्मिक प्रयोग एवं बिम्बों की शृंखला इस संग्रह को विशिष्ट बनाते हैं। शायद, और यही तो नाम है इस पुस्तक का, सुधीर अकेले कवि हैं अपनी पीढ़ी के जो अत्यन्त संयत एवं धीर भाव से गहरी उत्तेजना की सृष्टि करते हैं और शान्त प्रतीत होती सतह को भी घूर्णों से भर देते हैं। सुधीर की कविता भविष्य की वाणी है—किसी एक यात्रा के पहले कई गुना अधिक भोगी भटकन।
—अरुण कमल
Language | Hindi |
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Binding | Hard Back |
Publication Year | 2018 |
Edition Year | 2018, Ed. 1st |
Pages | 112p |
Translator | Not Selected |
Editor | Not Selected |
Publisher | Rajkamal Prakashan |