Mokshadhara

Poetry
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Mokshadhara
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सुधीर रंजन सिंह के पहले संग्रह और 'मोक्षधरा' के बीच लम्बा अन्तराल है। कारण सम्भवत: ऐतिहासिक है। ’90 के बाद की घटनाओं ने कुछ समय के लिए उन कवियों के कवि-कर्म को बाधित किया जो कविता में भविष्य को फलित करने की चेष्टा कर रहे थे। पुरानी काव्य-भंगिमाएँ बेअसर हो गई थीं।

यह आकस्मिक नहीं कि सुधीर रंजन सिंह ने पिछले काव्य-अभ्यास को पकड़े रहने के बजाय भर्तृहरि के काव्य-श्लोकों की अनुरचना का मार्ग पकड़ा। भर्तृहरि की नैतिक दृष्टि और विकल अन्त:ऊर्जा ने नई काव्य-स्फूर्ति पैदा कर दी। एक बिलकुल नई ज़मीन मिल गई। विकल अन्त:ऊर्जा ‘अनन्त प्रकृति’ में प्रवेश का द्वार है, जिससे गुज़रते हुए सन्तुलन बनाना आसान नहीं होता। सुधीर रंजन सिंह कवि के साथ-साथ आलोचक भी हैं। सन्तुलन बनाने में उनका आलोचनात्मक विवेक सहयोग करता है। आधुनिक कविता के काव्यशास्त्र में आलोचना का पक्ष काफी वजनदार है। सुधीर रंजन सिंह की आलोचनात्मक भंगिमा और कुछ नहीं विकल्प की चेतना है। यह ‘निद्रा अनुभव’ से बाहर निकालती है। मनुष्य और समाज को समझने की दृष्टि देती है।

सुधीर रंजन सिंह संकट के अनुभवों से बिना अलग हुए उल्लास और मुक्ति के उस संसार को रचने की चेष्टा करते हैं, जिसमें जीवन का अर्थ स्पन्दित होता है। उस अर्थ की लालसा, जो किसी अन्य पीड़ाहारक दिलासा से अधिक ज़रूरी है, उनकी कविता को गढ़ने का काम करती है। इस काम में ‘स्मृति की क्रीड़ा’ भूमिका निभाती है। स्मृति की क्रीड़ा यानी अनुभवों का प्रवाह। ‘मोक्षधरा’ ऐतिहासिक अनुभवों को आत्मचेतना के स्तर पर रचने और 'उत्कर्ष लोक' तैयार करने का सफल प्रयास है।

 

More Information
Language Hindi
Format Hard Back
Publication Year 2014
Edition Year 2014, Ed. 1st
Pages 136p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 22 X 14.5 X 1.5
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Editorial Review

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Sudhir Ranjan Singh

Author: Sudhir Ranjan Singh

सुधीर रंजन सिंह 

जन्म : 28 अक्टूबर, 1960

कविता-संग्रह : ‘और कुछ नहीं तो’ और ‘मोक्षधरा’। 

काव्य-अनुरचना : ‘भर्तृहरि : कविता का पारस पत्थर’। 

आलोचना : ‘हिन्दी समुदाय और राष्ट्रवाद’, ‘कविता के प्रस्थान’ और ‘कविता की समझ’। 

वृत्तान्त : ‘भारिया : पातालकोट का जीवन-छन्द’।

सम्पादन : ‘अद्यतन हिन्दी आलोचना’ और आर.पी. नरोन्हा की पुस्तक ‘अ टेल टोल्ड बाई एन इडियट’ का हिन्दी अनुवाद ‘एक अनाड़ी की कही कहानी’।

ई-मेल : singhranjansudhir@gmial.com

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