Hindi Aalochana Ki Beesvin Sadi-Hard Cover

Author: Nirmala Jain
ISBN: 9788171190553
Edition: 2000, Ed. 2nd
Language: Hindi
Publisher: Radhakrishna Prakashan
Special Price ₹127.50 Regular Price ₹150.00
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Hindi Aalochana Ki Beesvin Sadi-Hard Cover
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हिन्दी आलोचना अपनी लम्बी ऐतिहासिक यात्रा में हर नए रचनात्मक प्रयास के प्रति निरन्तर जागरूक रहकर अपने दायित्व का निर्वाह करती रहीं। इस प्रक्रिया में समसामयिकता का आग्रह अधिक प्रबल हो गया। आलोचना में परम्परा का बल हमेशा गरिमा और महत्त्व प्रदान करता है। आलोचना के इतिहास की सही समझ सिर्फ़ रचनात्मक साहित्य के सन्दर्भ में ही हो सकती है। आलोचना के इतिहास की बात करते हुए इस तथ्य को ध्यान में रखना बहुत ज़रूरी है कि आधुनिक युग के साहित्य में जो ख़ास बात घटित हुई, वह यह थी कि साहित्य व्यक्ति-सत्ता या वर्ग-सत्ता से हटकर समाज-सत्ता की वस्तु हो गया। हिन्दी आलोचना ने इस समय जो दबाव महसूस किया, उसका सम्बन्ध अपने युग की बदली मनोरुचि से था। अतः बीसवीं सदी की आलोचना को सैद्धान्तिक ग्रन्थ और निबन्ध, विद्वत्तापूर्ण शोध, साहित्येतिहास ग्रन्थ तथा पुस्तक समीक्षाएँ मिलीं। इसी परम्परा से हिन्दी आलोचना का क्रम आगे बढ़ता रहा।

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Language Hindi
Binding Hard Back
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Isbn 10 8171190553
Publication Year 1992
Edition Year 2000, Ed. 2nd
Pages 108p
Price ₹150.00
Publisher Radhakrishna Prakashan
Dimensions 22 X 14 X 1
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Nirmala Jain

Author: Nirmala Jain

डॉ निर्मला जैन

हिन्दी की जानी-मानी आलोचक निर्मला जैन का जन्म सन् 1932 में दिल्ली के व्यापारी परिवार में हुआ। उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय से बी.ए., एम.ए., पीएच.डी. और डी.लिट की उपाधियाँ प्राप्त कीं।

लेडी श्रीराम कॉलेज (1956-70) और फिर दिल्ली विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग (1970-1996) में अध्यापन किया। इस दौरान वे हिन्दी विभाग की अध्यक्ष (1981-84) और कई वर्षों तक दक्षिण-परिसर में विभाग की प्रभारी प्रोफ़ेसर रहीं।

प्रकाशन : 1962 से अनेक मौलिक ग्रन्थों की रचना, अनुवाद और सम्पादन।

प्रमुख रचनाएँ : ‘आधुनिक हिन्दी काव्य में रूप-विधाएँ’, ‘रस-सिद्धान्त और सौन्दर्यशास्त्र’, ‘आधुनिक साहित्य : मूल्य और मूल्यांकन’, ‘हिन्दी आलोचना का दूसरा पाठ’, ‘कथा-समय में तीन हमसफ़र’, ‘दिल्ली : शहर-दर-शहर’, -‘ज़माने में हम’, ‘पाश्चात्य साहित्य-चिन्तन’, ‘कविता का प्रति-संसार’ (आलोचना); 'उदात्त के विषय में’, 'बांग्ला साहित्य का इतिहास’, 'समाजवादी साहित्य : विकास की समस्याएँ’, 'भारत की खोज’, 'एडविना और नेहरू’, 'सच, प्यार और थोड़ी-सी शरारत’ (अनुवाद) ; ‘नई समीक्षा के प्रतिमान’, ‘साहित्य का समाजशास्त्रीय चिन्तन’, ‘महादेवी साहित्य’ (4 खंड), ‘जैनेन्द्र रचनावली’ (12 खंड)।

पुरस्कार : ‘सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार’, ‘रामचन्द्र शुक्ल पुरस्कार’, ‘हरजीमल डालमिया पुरस्कार’, ‘तुलसी पुरस्कार’, ‘केन्द्रीय हिन्दी संस्थान’ (आगरा) का ‘सुब्रह्मण्यम भारती सम्मान’, ‘हिन्दी अकादमी’ का ‘साहित्यकार सम्मान’, ‘साहित्य अकादेमी’ का ‘अनुवाद पुरस्कार’, ‘संतोष कोली स्‍मृति सम्‍मान’ आदि।

सम्प्रति : स्वतंत्र लेखन।

 

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