Kavita Ka Prati Sansar

Author: Nirmala Jain
Edition: 2023, Ed. 3rd
Language: Hindi
Publisher: Radhakrishna Prakashan
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Kavita Ka Prati Sansar

रचना, आलोचना का अनिवार्य संदर्भ भी होती हैं और उसके लिए चुनौती भी । दोनो के बीच सम्बन्ध स्थित्यात्मक न होकर गत्यात्मक होता है । पूर्ववर्ती और सहवर्ती साहित्य प्रतिमानों के निर्धारण के लिए आलोचना को आमंत्रित करता है और अनुवर्ती साहित्य अक्सर पूर्वनिर्मित प्रतिमानों की अपर्याप्तता का बोध जगाता है । हर महत्वपूर्ण रचना मूल्यांकन के प्रतिमानों की उपलब्ध व्यवस्था के बीच से अपने लिए प्रासंगिक प्रतिमानों की तलाश ही नहीं कर लेती, बल्कि नए प्रतिमानों के लिए आधार भी प्रस्ता- वित करती है । प्रतिमानों के सस र में शाश्वत कुछ नहीं होता । इस वास्तविकता का अहसास आलो- चना को परमुखापेक्षी होने से बचाता है । 'कविता का प्रति संसार' रचनात्मक साहित्य वो संदर्भ की अनिवार्यता के अहसास से प्रेरित ऐसे ही आलोचनात्मक लेखों का सग्रह है । 'समय-समय' पर लिखे गए इन लेखों में निर्मला जैन ने गहरे सरो- कार के साथ प्रखर शैली में प्रतिमानों का प्रश्न भी उठाया हए और रचनाओं का विश्लेषण भी किया हैं । इन लेखों में वे मुद्दे उठाए गए हैं जो प्रतिमानों कं संदर्भ में अक्सर सामने आते हैं । साथ ही आधु- निक हिंदी कविता की विशिष्ट उपलब्धियों को सर्वथा मौलिक दृष्टि से देखा-परखा गया है । इस संकलन का प्रमुख आकर्षण विषय का विस्तार और प्रतिमानों की विविधता है । यह पुस्तक रचना और आलोचना की सही पहचान कराती है ।

More Information
Language Hindi
Binding Hard Back
Publication Year 1994
Edition Year 2023, Ed. 3rd
Pages 123p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Radhakrishna Prakashan
Dimensions 22.5 X 14.5 X 1.5
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Nirmala Jain

Author: Nirmala Jain

डॉ निर्मला जैन

हिन्दी की जानी-मानी आलोचक निर्मला जैन का जन्म सन् 1932 में दिल्ली के व्यापारी परिवार में हुआ। उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय से बी.ए., एम.ए., पीएच.डी. और डी.लिट की उपाधियाँ प्राप्त कीं।

लेडी श्रीराम कॉलेज (1956-70) और फिर दिल्ली विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग (1970-1996) में अध्यापन किया। इस दौरान वे हिन्दी विभाग की अध्यक्ष (1981-84) और कई वर्षों तक दक्षिण-परिसर में विभाग की प्रभारी प्रोफ़ेसर रहीं।

प्रकाशन : 1962 से अनेक मौलिक ग्रन्थों की रचना, अनुवाद और सम्पादन।

प्रमुख रचनाएँ : ‘आधुनिक हिन्दी काव्य में रूप-विधाएँ’, ‘रस-सिद्धान्त और सौन्दर्यशास्त्र’, ‘आधुनिक साहित्य : मूल्य और मूल्यांकन’, ‘हिन्दी आलोचना का दूसरा पाठ’, ‘कथा-समय में तीन हमसफ़र’, ‘दिल्ली : शहर-दर-शहर’, -‘ज़माने में हम’, ‘पाश्चात्य साहित्य-चिन्तन’, ‘कविता का प्रति-संसार’ (आलोचना); 'उदात्त के विषय में’, 'बांग्ला साहित्य का इतिहास’, 'समाजवादी साहित्य : विकास की समस्याएँ’, 'भारत की खोज’, 'एडविना और नेहरू’, 'सच, प्यार और थोड़ी-सी शरारत’ (अनुवाद) ; ‘नई समीक्षा के प्रतिमान’, ‘साहित्य का समाजशास्त्रीय चिन्तन’, ‘महादेवी साहित्य’ (4 खंड), ‘जैनेन्द्र रचनावली’ (12 खंड)।

पुरस्कार : ‘सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार’, ‘रामचन्द्र शुक्ल पुरस्कार’, ‘हरजीमल डालमिया पुरस्कार’, ‘तुलसी पुरस्कार’, ‘केन्द्रीय हिन्दी संस्थान’ (आगरा) का ‘सुब्रह्मण्यम भारती सम्मान’, ‘हिन्दी अकादमी’ का ‘साहित्यकार सम्मान’, ‘साहित्य अकादेमी’ का ‘अनुवाद पुरस्कार’, ‘संतोष कोली स्‍मृति सम्‍मान’ आदि।

सम्प्रति : स्वतंत्र लेखन।

 

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