Anuvad Mimansa

Literary Criticism
Author: Nirmala Jain
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Anuvad Mimansa
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साधारणत: और इधर ज़्यादातर लोग किसी पाठ को एक भाषा से दूसरी भाषा में उल्था करने को ही अनुवाद मान लेते हैं। हिन्दी में यह प्रवृत्ति और भी ज़्यादा देखने में आती है। बहुत कम ऐसे अनुवादक हैं जो अनुवाद को अगर रचना-कर्म नहीं तो कम से कम एक कौशल का भी दर्जा देते हों।

वरिष्ठ हिन्दी आलोचक निर्मला जैन की यह पुस्तक अनुवाद के रचनात्मक, कलात्मक और प्रविधिगत पहलुओं को विश्लेषित करते हुए उसकी महत्ता और गम्भीरता को बताती है। अनुवाद दरअसल क्या है, गद्य और पद्य के अनुवाद में क्या फ़र्क़ है; मानविकी और साहित्यिक विषयों का अनुवाद अन्य विषयों के सूचनापरक अनुवाद से किस तरह अलग होता है, उसमें अनुवादक को क्या सावधानी बरतनी होती है; एक संस्कृति से दूसरी संस्कृति में पाठ के भावान्तरण में क्या दिक्‍़क़तें आती हैं, लोकभाषा और बोलियों के किसी मानक भाषा में अनुवाद की चुनौतियाँ क्या हैं, और अनुवाद किस तरह सिर्फ़ पाठ के भाषान्तरण का नहीं, बल्कि भाषा की समृद्धि का भी साधन हो जाता है—इन सब बिन्दुओं पर विचार करते हुए यह पुस्तक अनुवाद के इच्छुक अध्येताओं के लिए एक विस्तृत समझ प्रदान करती है।

निर्मला जी की समर्थ भाषा और व्यापक अध्ययन से यह विवेचन और भी बोधक और ग्राह्य हो जाता है। उदाहरणों और उद्धरणों के माध्यम से उन्होंने अपने मन्तव्य को स्पष्ट किया है, जिससे यह पुस्तक अनुवाद का कौशल विकसित करने में सहायक निर्देशिका के साथ-साथ अनुवाद-कर्म को लेकर एक विमर्श के स्तर पर पहुँच जाती है।

More Information
Language Hindi
Format Hard Back, Paper Back
Publication Year 2018
Edition Year 2018, Ed. 1st
Pages 80p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 22.5 X 14 X 1
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Editorial Review

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Nirmala Jain

Author: Nirmala Jain

डॉ निर्मला जैन

हिन्दी की जानी-मानी आलोचक निर्मला जैन का जन्म सन् 1932 में दिल्ली के व्यापारी परिवार में हुआ। उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय से बी.ए., एम.ए., पीएच.डी. और डी.लिट की उपाधियाँ प्राप्त कीं।

लेडी श्रीराम कॉलेज (1956-70) और फिर दिल्ली विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग (1970-1996) में अध्यापन किया। इस दौरान वे हिन्दी विभाग की अध्यक्ष (1981-84) और कई वर्षों तक दक्षिण-परिसर में विभाग की प्रभारी प्रोफ़ेसर रहीं।

प्रकाशन : 1962 से अनेक मौलिक ग्रन्थों की रचना, अनुवाद और सम्पादन।

प्रमुख रचनाएँ : ‘आधुनिक हिन्दी काव्य में रूप-विधाएँ’, ‘रस-सिद्धान्त और सौन्दर्यशास्त्र’, ‘आधुनिक साहित्य : मूल्य और मूल्यांकन’, ‘हिन्दी आलोचना का दूसरा पाठ’, ‘कथा-समय में तीन हमसफ़र’, ‘दिल्ली : शहर-दर-शहर’, -‘ज़माने में हम’, ‘पाश्चात्य साहित्य-चिन्तन’, ‘कविता का प्रति-संसार’ (आलोचना); 'उदात्त के विषय में’, 'बांग्ला साहित्य का इतिहास’, 'समाजवादी साहित्य : विकास की समस्याएँ’, 'भारत की खोज’, 'एडविना और नेहरू’, 'सच, प्यार और थोड़ी-सी शरारत’ (अनुवाद) ; ‘नई समीक्षा के प्रतिमान’, ‘साहित्य का समाजशास्त्रीय चिन्तन’, ‘महादेवी साहित्य’ (4 खंड), ‘जैनेन्द्र रचनावली’ (12 खंड)।

पुरस्कार : ‘सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार’, ‘रामचन्द्र शुक्ल पुरस्कार’, ‘हरजीमल डालमिया पुरस्कार’, ‘तुलसी पुरस्कार’, ‘केन्द्रीय हिन्दी संस्थान’ (आगरा) का ‘सुब्रह्मण्यम भारती सम्मान’, ‘हिन्दी अकादमी’ का ‘साहित्यकार सम्मान’, ‘साहित्य अकादेमी’ का ‘अनुवाद पुरस्कार’, ‘संतोष कोली स्‍मृति सम्‍मान’ आदि।

सम्प्रति : स्वतंत्र लेखन।

 

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