Himmat Jounpuri

‘हिम्मत जौनपुरी’ एक ऐसे निहत्थे की कहानी है जो जीवन-भर जीने का हक़ माँगता रहा, सपने बुनता रहा, परन्तु आत्मा की तलाश और सपनों के संघर्ष में उलझकर रह गया। यह बम्बई के उस फ़िल्मी माहौल की कहानी भी है जिसकी भूल-भुलैया और चमक-दमक आदमी को भटका देती है और वह कहीं का नहीं रह जाता।
राही मासूम रज़ा की चिर-परिचित शैली का ही कमाल है कि इसमें केवल सपने या भूल-भुलैया का तिलस्मी यथार्थ नहीं, बल्कि उस समाज की भी कहानी है, जिसमें जमुना जैसी पात्र चाहकर भी अपनी असली ज़िन्दगी बसर नहीं कर सकती। एक तरफ़ इसमें व्यंग्यात्मक शैली में सामाजिक खोखलेपन को उजागर करता यथार्थ है तो दूसरी तरफ़ हैं भावनाओं की उत्ताल लहरें।
राही मासूम रज़ा साहब ने ‘हिम्मत जौनपुरी’ को माध्यम बनाकर एक ऐसे सामान्य व्यक्ति के अरमान के टूटने और बिखरने को जिस नए अन्दाज़ और तेवर के साथ लिखा है, वह उनके अन्य उपन्यासों से बिलकुल अलग है।
Language | Hindi |
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Format | Hard Back |
Publication Year | 1995 |
Edition Year | 1995, Ed. 1st |
Pages | 125p |
Translator | Not Selected |
Editor | Not Selected |
Publisher | Rajkamal Prakashan |
Dimensions | 18.5 X 12.5 X 1 |
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