Hansa Karo Puratan Baat

Author: Kashinath Singh
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Hansa Karo Puratan Baat
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‘हंसा करो पुरातन बात’ कथाकार-उपन्यासकार काशीनाथ सिंह के साक्षात्कारों का संकलन है। इस किताब में उनके 1989 से 2022 तक के साक्षात्कार हैं। साक्षात्कारों को प्रकाशन-क्रम से रखा गया है ताकि पाठक उनकी रचनात्मक और वैचारिक यात्रा को प्रामाणिकता के साथ समझ सकें।
काशीनाथ जी से जुड़ा वह हर सवाल यहाँ मौजूद है जिसमें एक पाठक की जिज्ञासा हो सकती है। ये सभी साक्षात्कार वे हैं जो उनकी पूर्व-प्रकाशित दोनों पुस्तकों, ‘गपोड़ी से गपशप’ और ‘बातें हैं बातों का क्या’ में नहीं हैं। ‘परिशिष्ट’ में ऐसे साक्षात्कार हैं जिनमें सीधे-सीधे सवाल-जवाब की पद्धति नहीं है, लेकिन साक्षात्कारकर्ता या पत्र-पत्रिका ने उन्हें ‘बातचीत’ या ‘बातचीत पर आधारित’ कहा है।
इन साक्षात्कारों में ‘सदी का सबसे बड़ा आदमी’ कहानी के प्रति उनका मोह दृष्टिगोचर होता है। ‘काशी का अस्सी’ को वे अपना सर्वश्रेष्ठ उपन्यास तथा ‘अपना मोर्चा’ को भूमिका मात्र मानते हैं। सामासिक संस्कृति की पक्षधरता और मनुष्यता में उनका विश्वास भी प्रकट होता है। कहानी लेखन में बदलाव, कहानी से संस्मरण की ओर शिफ्ट होने के कारण, देश-विदेश-छात्र राजनीति एवं वर्तमान लेखन पर उनके विचार इन साक्षात्कारों में अभिव्यक्त हैं।

More Information
Language Hindi
Format Hard Back
Publication Year 2023
Edition Year 2023, Ed. 1st
Pages 296p
Translator Not Selected
Editor Shashi Kumar Singh
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 22.5 X 14.5 X 2.5
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Kashinath Singh

Author: Kashinath Singh

काशीनाथ सिंह

काशीनाथ सिंह का जन्म 1 जनवरी, 1937 को बनारस, उत्तर प्रदेश के जीयनपुर गाँव में हुआ। उनकी आरम्भिक शिक्षा गाँव के पास के विद्यालयों में हुई। काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से हिन्दी में एम.ए. (1959) और पी-एच.डी. (1963) किया। इसी विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में प्रोफेसर एवं विभागाध्यक्ष रहे।

उनकी प्रकाशित कृतियाँ हैं—‘लोग बिस्तरों पर’, ‘सुबह का डर’, ‘आदमीनामा’, ‘नई तारीख़’, ‘सदी का सबसे बड़ा आदमी’, ‘कल की फटेहाल कहानियाँ’, ‘कहानी उपखान’, ‘पत्ता-पत्ता बूटा-बूटा’, ‘प्रतिनिधि कहानियाँ’, ‘दस प्रतिनिधि कहानियाँ’ (कहानी-संग्रह); ‘काशी का अस्सी’, ‘अपना मोर्चा’, ‘रेहन पर रग्घू’, ‘महुआचरित’, ‘उपसंहार’ (उपन्यास); ‘घोआस’ (नाटक); ‘हिन्दी में संयुक्त क्रियाएँ’ (शोध); ‘आलोचना भी रचना है’ (समीक्षा); ‘याद हो कि न याद हो’, ‘आछे दिन पाछे गए’, ‘घर का जोगी जोगड़ा’ (संस्मरण); ‘गपोड़ी से गपशप’, ‘बातें हैं बातों का क्या’, ‘हंसा करो पुरातन बात’ (साक्षात्कार)।

‘अपना मोर्चा’ उपन्यास का जापानी एवं कोरियाई भाषाओं में अनुवाद। जापानी में कहानियों का अनूदित संग्रह। कई कहानियों के भारतीय और अन्य विदेशी भाषाओं में अनुवाद। उपन्यास और कहानियों की रंग-प्रस्तुतियाँ। तीसरी दुनिया के लेखकों-संस्कृतिकर्मियों के सम्मेलन के सिलसिले में जापान-यात्रा (नवम्बर, 1981)।

उन्हें ‘भारत भारती पुरस्कार’, ‘कैफ़ी आज़मी अवार्ड’, ‘कथा सम्मान’, ‘समुच्चय सम्मान’, ‘शरद जोशी सम्मान’, ‘साहित्य भूषण सम्मान’, ‘रचना समग्र पुरस्कार’ और ‘रेहन पर रग्घू’ उपन्यास के लिए ‘साहित्य अकादेमी पुरस्कार’ से पुरस्कृत किया गया है।

सम्प्रति : बनारस में रहकर स्वतंत्र लेखन।

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