Rehan Par Ragghu

Author: Kashinath Singh
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Rehan Par Ragghu
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‘रेहन पर रग्घू’ प्रख्यात कथाकार काशीनाथ सिंह की रचना-यात्रा का नव्य शिखर है। भूमंडलीकरण के परिणामस्वरूप संवेदना, सम्बन्ध और सामूहिकता की दुनिया में जो निर्मम ध्वंस हुआ है — तब्दीलियों का जो तूफान निर्मित हुआ है — उसका प्रामाणिक और गहन अंकन है ‘रेहन पर रग्घू’। यह उपन्यास वस्तुतः गाँव, शहर, अमेरिका तक के भूगोल में फैला हुआ अकेले और निहत्थे पड़ते जा रहे समकालीन मनुष्य का बेजोड़ आख्यान है।

उपन्यास में केन्द्रीय पात्र रघुनाथ की व्यवस्थित और सफल ज़िन्दगी चल रही है। सब कुछ उनकी योजना और इच्छा के मुताबिक़। अचानक कुछ ऐसा घटित होता है कि उनके जीवन का अर्जित यथार्थ इतना महत्त्वाकांक्षी, आक्रामक, हिंस्र हो जाता है कि मनुष्यता की तमाम सारी आत्मीय, कोमल अच्छी चीजे़ं टूटने, बिखरने, बरबाद होने लगती हैं। इस महाबली आक्रान्ता के प्रतिरोध का जो रास्ता उपन्यास के अन्त में अख़्तियार किया गया, वह न केवल विलक्षण और अचूक है, बल्कि ‘रेहन पर रग्घू’ को यादगार व्यंजनाओं से भर देता है।

‘रेहन पर रग्घू‘ नए युग की वास्तविकता की बहुस्तरीय गाथा है। इसमें उपभोक्तावाद की क्रूरताओं का विखंडन है ही, साथ में शोषित-प्रताड़ित जातियों के सकारात्मक उभार और नई स्त्री की शक्ति एवं व्यथा का दक्ष चित्रांकन भी है। दरअसल ‘रेहन पर रग्घू’ में वास्तविकताओं, चरित्रों, लोकेल, उपकथाओं आदि का ऐसा सधा हुआ अकाट्य अन्तर्गुम्फन है कि उसे एक प्रौढ़ रचनात्मकता के रूप में दर्ज किया जाना चाहिए। देशज सच्चाइयों, कल्पना, काव्यात्मकता, झीनी दार्शनिकता का सहमेल उपन्यास को मूल्यवान आभा से समृद्ध बनाता है।

संक्षेप में कहें, ‘रेहन पर रग्घू’ बीते दो दशक के यथार्थ का ऐसा औपन्यासिक रूपान्तरण है जो काशीनाथ सिंह और हिन्दी उपन्यास दोनों को एक नई गरिमा प्रदान करता है।

—अखिलेश

More Information
Language Hindi
Format Hard Back, Paper Back
Publication Year 2008
Edition Year 2014, Ed. 4th
Pages 164p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 22 X 14 X 1.5
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Kashinath Singh

Author: Kashinath Singh

काशीनाथ सिंह

काशीनाथ सिंह का जन्म 1 जनवरी, 1937 को बनारस, उत्तर प्रदेश के जीयनपुर गाँव में हुआ। उनकी आरम्भिक शिक्षा गाँव के पास के विद्यालयों में हुई। काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से हिन्दी में एम.ए. (1959) और पी-एच.डी. (1963) किया। इसी विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में प्रोफेसर एवं विभागाध्यक्ष रहे।

उनकी प्रकाशित कृतियाँ हैं—‘लोग बिस्तरों पर’, ‘सुबह का डर’, ‘आदमीनामा’, ‘नई तारीख़’, ‘सदी का सबसे बड़ा आदमी’, ‘कल की फटेहाल कहानियाँ’, ‘कहानी उपखान’, ‘पत्ता-पत्ता बूटा-बूटा’, ‘प्रतिनिधि कहानियाँ’, ‘दस प्रतिनिधि कहानियाँ’ (कहानी-संग्रह); ‘काशी का अस्सी’, ‘अपना मोर्चा’, ‘रेहन पर रग्घू’, ‘महुआचरित’, ‘उपसंहार’ (उपन्यास); ‘घोआस’ (नाटक); ‘हिन्दी में संयुक्त क्रियाएँ’ (शोध); ‘आलोचना भी रचना है’ (समीक्षा); ‘याद हो कि न याद हो’, ‘आछे दिन पाछे गए’, ‘घर का जोगी जोगड़ा’ (संस्मरण); ‘गपोड़ी से गपशप’, ‘बातें हैं बातों का क्या’, ‘हंसा करो पुरातन बात’ (साक्षात्कार)।

‘अपना मोर्चा’ उपन्यास का जापानी एवं कोरियाई भाषाओं में अनुवाद। जापानी में कहानियों का अनूदित संग्रह। कई कहानियों के भारतीय और अन्य विदेशी भाषाओं में अनुवाद। उपन्यास और कहानियों की रंग-प्रस्तुतियाँ। तीसरी दुनिया के लेखकों-संस्कृतिकर्मियों के सम्मेलन के सिलसिले में जापान-यात्रा (नवम्बर, 1981)।

उन्हें ‘भारत भारती पुरस्कार’, ‘कैफ़ी आज़मी अवार्ड’, ‘कथा सम्मान’, ‘समुच्चय सम्मान’, ‘शरद जोशी सम्मान’, ‘साहित्य भूषण सम्मान’, ‘रचना समग्र पुरस्कार’ और ‘रेहन पर रग्घू’ उपन्यास के लिए ‘साहित्य अकादेमी पुरस्कार’ से पुरस्कृत किया गया है।

सम्प्रति : बनारस में रहकर स्वतंत्र लेखन।

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