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“फ़ैज़ की शाइरी ऐसे ज़िन्दा इशारों का पर्याय है जो दर्द की चीख़ और कराह को कसकर अन्दर ही अन्दर दबाये और छुपाये हुए हैं, मगर जो दरअस्ल दबाये दबते हैं न छुपाये छुपते।”
“फ़ैज़ की शाइरी एक ऐसा संगीत है जो मालूम तो होता है रोमानी, मगर असलन् इजतिहारी है–अपने रोमानी तेवर में भी ख़ालिसन् इन्क़िलाबी। यानी संघर्षों में उसका जन्म हुआ है।”
‘फ़ैज़’ के कलाम में वह नर्मी और मिठास है जो मन को मोह
लेती है। जिस गहरी समझ, भावनागत निश्छलता और कलात्मकता से प्रेमानुभूतियों को उन्होंने सामाजिक समस्याओं के साथ मिलाकर पेश किया है, वह अपने-आपमें अभूतपूर्व है। उनकी नज़्में उर्दू
की बेहतरीन नज़्में हैं और नज़्म की सारी विशेषताएँ और भी निखर-सँवरकर उनकी ग़ज़लों में ढल गई हैं।
‘फ़ैज़’ मानवीय मूल्यों की गरिमा के महान नायक हैं। उनकी शाइरी में मानवीय सम्बन्धों की प्रेममय सहजता उजागर हुई है, जिसका लक्ष्य हर तरह के ज़ोर-ज़ुल्म और शोषण-व्यवस्था का उन्मूलन है। उनके दावों और अमल में, कथनी और करनी में कहीं टकराव नहीं, उनके व्यक्तित्व की यह विशिष्टता उनके काव्य की भी शक्ति और विशिष्टता है। भारत और पाकिस्तान के साथ-साथ विश्व-भर में उनकी असाधारण लोकप्रियता इसका एक ज्वलन्त प्रमाण है।

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Language Hindi
Format Hard Back, Paper Back
Publication Year 2010
Edition Year 2023, Ed. 5th
Pages 220p
Price ₹299.00
Translator Not Selected
Editor Editor One Name
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 21.5 X 14 X 1
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Faiz Ahmed 'Faiz'

Author: Faiz Ahmed 'Faiz'

फ़ैज़ अहमद ‘फ़ैज़’

जन्म : 1911, गाँव काला कादर, सियालकोट।

शिक्षा : आरम्भिक धार्मिक शिक्षा मौलवी मुहम्मद इब्राहिम मीर सियालकोटी से प्राप्त की। मैट्रिक स्कॉच मिशन स्कूल और स्नातकोत्तर मुरे कॉलेज, सियालकोट से। वामपंथी विचारधारा के जुझारू पैरोकार फ़ैज़ ने 1936 में ‘प्रगतिशील लेखक संघ’ की एक शाखा पंजाब में आरम्भ की। 1935 में एम.इ.ओ.कॉलेज, अमृतसर और बाद में हेली कॉलेज ऑफ़ कॉमर्स, लाहौर में अध्यापन। 1938-1942 के दौरान उर्दू मासिक 'अदबे लतीफ़' का सम्पादन। कुछ समय तक फ़ैज़ ब्रिटिश इंडियन आर्मी में भी रहे जहाँ 1944 में उन्हें लेफ्टिनेंट कर्नल के पद पर पदोन्नत किया गया था। 1947 में सेना से इस्तीफ़ा देने के बाद 'पाकिस्तान टाइम्स' के पहले प्रधान सम्पादक बने। 1959 से 1962 तक पाकिस्तान आर्ट्स काउंसलिंग के सचिव रहे। 1964 में लन्दन से वापस आने के बाद फ़ैज़ कराची में अब्दुल्लाह हारुन कॉलेज के प्रिंसिपल नियुक्त हुए। 1951 में फ़ैज़ को रावलपिंडी षड्यंत्र केस में चार साल की जेल भी हुई, जहाँ उन्होंने जीवन की कड़वी सच्चाइयों से सीधा साक्षात्कार किया।

प्रमुख रचनाएँ : ‘नक़्शे-फ़रियादी’ (1941), ‘दस्ते-सबा’ (1953), ‘ज़िन्दाँनामा’ (1956), ‘मीज़ान’ (1956), ‘दस्त तहे-संग’ (1965), ‘सरे-वादी-ए-सीना’ (1971), ‘शामे-शह्रे-याराँ’ (1979), ‘मेरे दिल मेरे मुसाफ़िर’ (1981), ‘सारे सुख़न हमारे’ (फ़ैज़-संग्रह) लंदन से और ‘नुस्ख़हा-ए-वफ़ा’ (फ़ैज़-संग्रह) पाकिस्तान से, 'पाकिस्तानी कल्चर' (उर्दू और अंग्रेज़ी में; 1984)।

फ़ैज़ की रचनाओं का अंग्रेज़ी, रूसी, बलोची, हिन्‍दी सहित दुनिया की अनेक भाषाओं में अनुवाद हो चुका है।

पुरस्कार : ‘लेनिन पीस प्राइज़’, ‘द पीस प्राइज़’ (पाकिस्तानी मानवाधिकार सोसायटी), ‘निगार अवार्ड’, ‘द एविसेना अवार्ड’, ‘निशाने-इम्तियाज़’ (मरणोपरान्‍त)। 1984 में मृत्यु से पहले ‘नोबेल प्राइज़’ के लिए नामांकन हुआ था।

निधन : 20 नवम्बर, 1984 को लाहौर में।

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