Ek Gandharv Ka Duswapna

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Ek Gandharv Ka Duswapna

अक्सर देखा गया है कि संगीत, कला और साहित्य से जुड़े लोग अपनी एक निजी और आन्तरिक दुनिया में रमे रहते हैं। वे बाहरी दुनिया की बड़ी-से-बड़ी घटनाओं को भी निरपेक्ष भाव से लेते हैं। उनके भीतरी संसार में बाहर के घटनाचक्र का, यथार्थ का प्रवेश कुछ विचित्र क़ि‍स्म के ऊहापोह और उथल-पुथल पैदा करता है।

उपन्यास का नायक भवनाथ ऐसा ही एक संगीतज्ञ है—बजाने-गाने में मस्त। चारों ओर की चीख़-पुकार में उसे खोए हुए सुरों का ख़याल आता है। वह दिव्यास्त्रों की तरह दिव्यरागों की कल्पना करता है। गन्धर्व कौन-सा सुर जगाते होंगे, कौन-सा राग मूर्त करते होंगे, हमसे कहीं ऊपर उनका सुर होगा—ऐसा सोचता रहता है। संगीत की खोई हुई दुनिया के झिलमिले सपने आते और चले जाते।

गन्धर्व के बहाने हरी चरन प्रकाश द्वारा रचा गया एक बेहद मार्मिक और रोचक उपन्यास है—‘एक गन्धर्व का दुःस्वप्न’।

स्वतंत्रता-प्राप्ति से लेकर आज तक के सामाजिक-राजनीतिक घटनाचक्रों को इस उपन्यास में बड़ी बेबाकी से रेखांकित किया गया है। चाहे वह महात्मा गांधी की हत्या हो या फिर बाबरी मस्जिद के विध्वंस से उपजे दंगे-फ़साद, वह मंडल-कमंडल की राजनीति हो या फिर जाति-धर्म की—देश की सम्प्रभुता को ख़तरे में डालनेवाले तत्त्वों को बड़ी संजीदगी से बेनक़ाब किया गया है इस उपन्यास में।

More Information
Language Hindi
Format Hard Back
Publication Year 2008
Edition Year 2008, Ed. 1st
Pages 175p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 22 X 14.5 X 1.5
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Author: Haricharan Prakash

हरी चरन प्रकाश

जन्‍म : 10 नवम्‍बर, 1950; फ़ैज़ाबाद, उत्तर प्रदेश।

प्रमुख कृतियाँ : ‘जीविका जीवन’, ‘उपकथा का अन्त’, ‘गृहस्‍थी का रजिस्‍टर’ (कहानी-संग्रह); ‘एक गन्धर्व का दुःस्वप्न’ (उपन्‍यास)।

कार्य : उत्तर प्रदेश सिविल सेवा में वर्षों कार्य के बाद अब सेवानिवृत्‍त।

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