आमतौर पर लोगों के दिलों में ‘एनडीटीवी वाले रवीश’ के नाम से एक बड़ी पहचान। बिहार के मोतिहारी ज़िले के गाँव जितवारपुर से चलकर दिल्ली शहर में ‘स्थायी पता’ की तलाश करनेवाले। लप्रेक का नया कॉन्सेप्ट शुरू करनेवाले। ‘क़स्बा’ के ब्लॉगर। आज के हमारे समय में इनका सबसे बड़ा परिचय—‘रवीश की रिपोर्ट’ वाले, ‘प्राइम टाइम’ वाले रवीश कुमार। हिन्दी में पहली किताब ‘इश्क़ में शहर होना’ नाम से छपी, जिसका बाद में अंग्रेज़ी अनुवाद ‘अ सिटी हैप्पेंस इन लव’ नाम से प्रकाशित हुआ है। 2018 में अंग्रेज़ी में पहली किताब ‘द फ्री वॉइस’ नाम से प्रकाशित हुई जो मराठी और कन्नड़ में भी अनूदित हो चुकी है। अब यही किताब ‘बोलना ही है’ नाम से राजकमल प्रकाशन के उपक्रम ‘सार्थक’ से प्रकाशित।
‘रेमन मैगसेसे पुरस्कार’, ‘राजकमल प्रकाशन सृजनात्मक गद्य सम्मान’, ‘रामनाथ गोयनका अवार्ड’, ‘राष्ट्रीय शरद जोशी सम्मान’ आदि से सम्मानित।