Bali

Author: Girish Karnad
Translator: Ramgopal Bajaj
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मौजूदा समय में नैतिक ईमानदारी का अभिप्राय सिर्फ़ उसको सिद्ध कर देने-भर से होता है। वह कोई सामाजिक संस्था हो या राजनीतिक अथवा न्यायिक, उसको भी हमसे जवाब-तलब करने का अधिकार है, उसे संतुष्ट करने के लिए बस इतना काफ़ी है कि हम सबूतों के आधार पर अपनी पवित्रता को साबित कर दें। और, दुर्भाग्य से ईश्वरीय सत्ता भी उसी श्रेणी में आ गई लगती है। लेकिन नैतिकता की एक कसौटी अपना आत्म भी है और यही वह प्रामाणिक कसौटी है जो हमें हिप्पोक्रेसी और सच साबित कर दिए गए असत्यों की तहों में दुबके सतत दरों से हमें मुक्त करती है, हमारे पार्थिव संसार में सचाई और नैतिकता की व्यावहारिक स्थापना करती है।

यह नाटक इसी कसौटी के बारे में है। नाटक का विषय पशु-बलि है और कथा बताती है कि बलि आख़िर बलि है, वह जीते-जागते जीव की हो या आटे से बने पशु की। हिंसा तो तलवार चलाने की क्रिया में है, इसमें नहीं कि वह किस पर चलाई गई है।

हिंसा का यह विषयनिष्ठ, सूक्ष्म और उद्वेलक विश्लेषण गिरीश कारनाड ने एक पौराणिक कथा के आधार पर किया है जिसे उन्होंने तेरहवीं सदी के एक कन्नड़ महाकाव्य से लिया है। गिरीश कारनाड के नाटक हमेशा ही सभ्यता के शाश्वत द्वन्द्वों को रेखांकित करते हैं, यह नाटक भी उसका अपवाद नहीं है।

More Information
Language Hindi
Format Hard Back, Paper Back
Publication Year 2015
Edition Year 2015, Ed. 1st
Pages 80p
Translator Ramgopal Bajaj
Editor Not Selected
Publisher Radhakrishna Prakashan
Dimensions 22 X 14.5 X 1
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Girish Karnad

Author: Girish Karnad

गिरीश कारनाड

1938, माथेरान, महाराष्ट्र में जन्मे गिरीश कारनाड की मातृभाषा कन्नड़ है। गणित की सर्वोच्च परीक्षा में सफल होकर ‘रोड्स स्कॉलर’ के रूप में ऑक्सफ़ोर्ड गए।

1963 में ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस, मद्रास में नौकरी। 1970 में ‘भाषा फ़ेलोशिप’, नौकरी से त्याग-पत्र और स्वतंत्र लेखन की शुरुआत। पहला नाटक 'ययाति' 1968 में छपा और चर्चा का विषय बना। 'तुगलक' के लेखन-प्रकाशन और बहुभाषी अनुवादों-प्रदर्शनों से राष्ट्रीय स्तर के नाटककार के रूप में प्रतिष्ठा। 1971 में 'हयवदन' का प्रकाशन, अभिमंचन। 2015 में 'बलि'; 2017 में 'शादी का एलबम', 'बिखरे बिम्ब और पुष्प'; 2018 में

'टीपू सुल्तान के ख्वाब' का प्रकाशन। पूना के फ़िल्म संस्थान में प्रधानाचार्य, त्याग-पत्र और इस नए सशक्त अभिव्यक्ति-माध्यम के प्रति दिलचस्पी। सन् 1988 से कुछ वर्ष पहले तक ‘संगीत नाटक अकादेमी’, नई दिल्ली के अध्यक्ष रहे।

‘संस्कार’, ‘वंशवृक्ष’, ‘काड़ू’, ‘अंकुर’, ‘निशान्त’, ‘स्वामी’ और 'गोधूलि' जैसी राष्ट्रीय-अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर पुरस्कृत एवं प्रशंसित फ़‍िल्मों में अभिनय-निर्देशन। 'मृच्छकटिक' पर आधारित फ़‍िल्मालेख, 'उत्सव' के लेखक-निर्देशक तथा एक लोकप्रिय दूरदर्शन धारावाहिक के महत्त्वपूर्ण अभिनेता के रूप में बहुचर्चित।

सम्मान : ‘तुगलक’ के लिए ‘संगीत नाटक अकादेमी पुरस्कार’, 'हयवदन' के लिए ‘कमलादेवी चट्टोपाध्याय पुरस्कार’, 'रक्त कल्याण' के लिए ‘साहित्य अकादेमी पुरस्कार’ तथा साहित्य में समग्र योगदान के लिए ‘भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार’।

निधन : 10 जून, 2019

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